गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

करकरे तुझे सलाम


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
ककरकरे तुझे सलाम

अमलेन्दु उपाध्याय

26/11 ब्लैक नवंबर, केवल मुंबई पर हमला नहीं था, बल्कि यह हमला धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान और समूचे भारतीय गणतंत्र के साथ साथ इंसानियत पर भी हमला था। इस हमले में मुंबई एटीएस के बहादुर महानिदेशक हेमंत करकरे और दो अन्य अधिकारियों समेत 20 सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। यूं तो हर मुठभेड़ में ( जो वास्तविक हो ) में किसी न किसी सैनिक को जान गंवानी पड़ती है लेकिन करकरे की पीठ पर वार किया गया और हत्यारे करकरे का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।
जब जब मुंबई हादसे और करकरे का जिक्र आ रहा है तो बार बार ब्लैक नवंबर से महज दो या तीन दिन पहले करकरे का वह वक्तव्य याद आ जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मालेगांव बमकांड में पकड़े गए आतंकवादियों के पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध हैं। करकरे के इस बयान के बाद ही भगवा गिरोह के कई बड़े गददीदारों के बयान आए थे कि 'एटीएस की सक्रियता संदिग्ध है'। देखने में आया कि करकरे के इस बयान के तुरंत बाद ही मुंबई पर हमला हो गया।
क्या करकरे की शहादत एटीएस को चुनौती है कि अगर करकरे की बताई लाइन पर चले तो अंजाम समझ लो? करकरे की बात अब सही लग रही है , क्योंकि हमलावर आतंकवादी मोदिस्तान गुजरात के कच्छ के रास्ते ही बेरोक टोक और बेखौफ मुंबई तक पहुंचे थे। इससे पहले भी कई बार खुलासे हो चुके हैं कि देश में आरडीएक्स और विस्फोटकों की खेप गुजरात के रास्ते ही देश भर में पहुंची। भगवा गिरोह गुजरात को अपना रोल मॉडल मानता है और परम-पूज्य हिंदू हृदय समा्रट रणबांकुरे मोदी जी महाराज घोषणाएं कर चुके हैं कि गुजरात में आतंकचाद को कुचल देंगे।ष्लेकिन तमाशा यह है कि जो लोग 26 नवंबर की शाम तक करकरे को खलनायक साबित करने पर आमादा थे अचानक 27 नवंबर को उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्हें अपने कर्मों पर इतना अधिक अपराधबोध होने लगा कि वो करकरे की विधवा को एक करोड़ रुपए की मदद देने पहुंच गए। लेकिन जितनी ईमानदारी और बहादुरी का परिचय करकरे ने दिया उससे दो हाथ आगे बढ़कर उनकी विधवा पत्नीष्ने एक करोड़ रुपए को लात मारकर करकरे की ईमानदारी और बहादुरी की मिसाल को कायम रखकर ऐसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारकर संदेश दे दिया कि जीते जी जिस बहादुर को खरीद नहीं पाए उसकी शहादत को भी एक करोड़ रुपए में खरीद नहीं सकते हो गुजरात में मंदिर गिराने वाले भगवा तालिबानों!
ब्लैक नवंबर से रतन टाटा को 4000 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को कई हजार करोड़ रुपए और सौ से अधिक जानों का नुकसान हो सकता है। करकरे समेत 20 जाबांज सिपाहियों की शहादत से सैन्य बलों को नुकसान हो सकता है, लेकिन इसका फायदा सिर्फ और केवल सिर्फ भगवा गिरोह को हुआ है और उसने यह फायदा उठाने का भरपूर प्रयास भी किया है। करकरे की शहादत के बाद अब लंबे समय तक मालेगांव की जांच ठंडे बस्ते में चली जाएगी और गिरफ्तार भगवा आतंकवादी ( कृपया हिंदू आतंकवादी न पढ़ें चूंकि हिंदू आतंकवादी हो ही नहीं सकता! ) न्यायिक प्रक्रिया में सेंध लगाकर बाहर भी आ जाएंगे और जो राज ,करकरे खोलने वाले थे, वह हमेशा के लिए दफन भी हो जाएंगे।
हमारे पीएम इन वेटिंग का दल लाशों की राजनीति करने में कितना माहिर है, इसका नमूना 27 नवंबर को ही मिल गया। 27 नवंबर को जब मुंबई बंधक थी, सैंकड़ों जाने जा चुकी थीं और एनकाउंटर चल रहा था, ठीक उसी समय टीवी चैनलों पर एक राजस्थानी हसीन चेहरा ( जो रैंप पर अपने जलवे बिखरने के कारण भी सुर्खियों में रहा है ) आतंकवाद पर विफल रहने के लिए कांग्रेस और केंद्र सरकार को कोस रहा था और ' भाजपा को वोट / आतंक को चोट ' का नारा दे रहा था। अगर आतंक पर चोट के लिए भाजपा को वोट देना जरुरी है तो 26 नवंबर की रात से लेकर 29 नवंबर तक आतंक को कुचल देने वाले मोदी जी महाराज, पीएम इन वेटिंग, दुनिया के नशे में से पापी पाकिस्तान का नामो निशान मिटा देने की हुकार भरने वाले हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे किस दड़बे में छिपे थे? ये वीर योध्दा कमांडो के साथ क्यों लड़ाई में शामिल नहीं थे? भगवा गिरोह कहता है कि केंद्र सरकार नपुंसक है, हम भी मान लेते हैं कि केंद्र सरकार नपुंसक है। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले और मुंबई, सूरत, अहमदाबाद की सड़कों पर कांच की बोतलों पर स्त्रियों को नग्न नचाने और सामूहिक बलात्कार करने वाले वो बहादुर भगवा शूरवीर किस खोह में छिपे थे? मुंबई के पुलिस महानिदेशक को, वर्दी उतारकर आने पर यह बताने कि मुबई किसके बाप की है ,चुनौती देने वाले मराठा वीर राज ठाकरे कहां दुबक गए थे ? पाक आतंकी तो वर्दी उतार कर आए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रो0 गिलानी पर थूकने वाले वीर मुंबई में थूकने क्यों नहीं गए?
याद होगा कि बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद भाजपा ने कांग्रेस से पूछा था कि वह इंसपैक्टर शर्मा को श्शहीद मानती है या नहीं ? ठीक यही सवाल आज हम अडवाणी जी और परम प्रतापी मोदी जी से पूछना चाहते हैं कि वे करकरे को शहीद मानते हैं कि नहीं ? अगर नहीं तो मोदी करकरे की विधवा को एक करोड़ रुपए देने क्यों गए थे ? यदि इसलिए गए थे कि करकरे शहीद हैं तो स्वीकार करो कि करकरे ने जो कहा था कि मालेगांव के आतंकवादियों के आईएसआई से संबंध हैं, सही है और मुंबई हमला आईएसआई ने इसी सत्य पर पर्दा पर डालने के लिए कराया है।
मुंबई हादसा एनडीए सरकार द्वारा देश के साथ किए गए उस विश्वासघात का परिणाम है, जब भाजपा सरकार ने आतंकवाद के मुख्य सा्रेत खूुखार आतंकवादियों को सरकारी मेहमान बनाकर कंधार तक पहुचाया था और आज तक उस विश्वासघात के लिए भाजपा ने देश से माफी नहीं मांगी है, जिसके चलते आतंकी घटनाओं से बारबार भारत का सीना चाक होता है और करकरे जैसे बहादुर जांबाज सिपाही शहीद होते हैं। आखिर वह कौन सा कारण है कि मोहनचंद शर्मा की अंत्येटि में पहुंचने वाले लोग करकरे को आखरी सलाम करने नहीं पहुंचते हैं और 20 सैनिकों की शहादत के बाद भी उन्हें ये देश नपुंसक नजर आता है ???????
करकरे भले ही आज नहीं है, लेकिन करकरे की शहादत आतंकवाद विरोधी लड़ाई को हमेशा ज्योतिपुंज बनकर रास्ता दिखाती रहेगी और उनका यह मंत्र कि 'आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है' आतंकविरोधी मिशन को पूरा करने का हौसला देता रहेगा। करकरे तुझे लाख लाख सलाम।
( लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं।)
रकरे तुझे सलाम

अमलेन्दु उपाध्याय

26/11 ब्लैक नवंबर, केवल मुंबई पर हमला नहीं था, बल्कि यह हमला धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान और समूचे भारतीय गणतंत्र के साथ साथ इंसानियत पर भी हमला था। इस हमले में मुंबई एटीएस के बहादुर महानिदेशक हेमंत करकरे और दो अन्य अधिकारियों समेत 20 सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। यूं तो हर मुठभेड़ में ( जो वास्तविक हो ) में किसी न किसी सैनिक को जान गंवानी पड़ती है लेकिन करकरे की पीठ पर वार किया गया और हत्यारे करकरे का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।
जब जब मुंबई हादसे और करकरे का जिक्र आ रहा है तो बार बार ब्लैक नवंबर से महज दो या तीन दिन पहले करकरे का वह वक्तव्य याद आ जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मालेगांव बमकांड में पकड़े गए आतंकवादियों के पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध हैं। करकरे के इस बयान के बाद ही भगवा गिरोह के कई बड़े गददीदारों के बयान आए थे कि 'एटीएस की सक्रियता संदिग्ध है'। देखने में आया कि करकरे के इस बयान के तुरंत बाद ही मुंबई पर हमला हो गया।
क्या करकरे की शहादत एटीएस को चुनौती है कि अगर करकरे की बताई लाइन पर चले तो अंजाम समझ लो? करकरे की बात अब सही लग रही है , क्योंकि हमलावर आतंकवादी मोदिस्तान गुजरात के कच्छ के रास्ते ही बेरोक टोक और बेखौफ मुंबई तक पहुंचे थे। इससे पहले भी कई बार खुलासे हो चुके हैं कि देश में आरडीएक्स और विस्फोटकों की खेप गुजरात के रास्ते ही देश भर में पहुंची। भगवा गिरोह गुजरात को अपना रोल मॉडल मानता है और परम-पूज्य हिंदू हृदय समा्रट रणबांकुरे मोदी जी महाराज घोषणाएं कर चुके हैं कि गुजरात में आतंकचाद को कुचल देंगे।ष्लेकिन तमाशा यह है कि जो लोग 26 नवंबर की शाम तक करकरे को खलनायक साबित करने पर आमादा थे अचानक 27 नवंबर को उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्हें अपने कर्मों पर इतना अधिक अपराधबोध होने लगा कि वो करकरे की विधवा को एक करोड़ रुपए की मदद देने पहुंच गए। लेकिन जितनी ईमानदारी और बहादुरी का परिचय करकरे ने दिया उससे दो हाथ आगे बढ़कर उनकी विधवा पत्नीष्ने एक करोड़ रुपए को लात मारकर करकरे की ईमानदारी और बहादुरी की मिसाल को कायम रखकर ऐसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारकर संदेश दे दिया कि जीते जी जिस बहादुर को खरीद नहीं पाए उसकी शहादत को भी एक करोड़ रुपए में खरीद नहीं सकते हो गुजरात में मंदिर गिराने वाले भगवा तालिबानों!
ब्लैक नवंबर से रतन टाटा को 4000 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को कई हजार करोड़ रुपए और सौ से अधिक जानों का नुकसान हो सकता है। करकरे समेत 20 जाबांज सिपाहियों की शहादत से सैन्य बलों को नुकसान हो सकता है, लेकिन इसका फायदा सिर्फ और केवल सिर्फ भगवा गिरोह को हुआ है और उसने यह फायदा उठाने का भरपूर प्रयास भी किया है। करकरे की शहादत के बाद अब लंबे समय तक मालेगांव की जांच ठंडे बस्ते में चली जाएगी और गिरफ्तार भगवा आतंकवादी ( कृपया हिंदू आतंकवादी न पढ़ें चूंकि हिंदू आतंकवादी हो ही नहीं सकता! ) न्यायिक प्रक्रिया में सेंध लगाकर बाहर भी आ जाएंगे और जो राज ,करकरे खोलने वाले थे, वह हमेशा के लिए दफन भी हो जाएंगे।
हमारे पीएम इन वेटिंग का दल लाशों की राजनीति करने में कितना माहिर है, इसका नमूना 27 नवंबर को ही मिल गया। 27 नवंबर को जब मुंबई बंधक थी, सैंकड़ों जाने जा चुकी थीं और एनकाउंटर चल रहा था, ठीक उसी समय टीवी चैनलों पर एक राजस्थानी हसीन चेहरा ( जो रैंप पर अपने जलवे बिखरने के कारण भी सुर्खियों में रहा है ) आतंकवाद पर विफल रहने के लिए कांग्रेस और केंद्र सरकार को कोस रहा था और ' भाजपा को वोट / आतंक को चोट ' का नारा दे रहा था। अगर आतंक पर चोट के लिए भाजपा को वोट देना जरुरी है तो 26 नवंबर की रात से लेकर 29 नवंबर तक आतंक को कुचल देने वाले मोदी जी महाराज, पीएम इन वेटिंग, दुनिया के नशे में से पापी पाकिस्तान का नामो निशान मिटा देने की हुकार भरने वाले हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे किस दड़बे में छिपे थे? ये वीर योध्दा कमांडो के साथ क्यों लड़ाई में शामिल नहीं थे? भगवा गिरोह कहता है कि केंद्र सरकार नपुंसक है, हम भी मान लेते हैं कि केंद्र सरकार नपुंसक है। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले और मुंबई, सूरत, अहमदाबाद की सड़कों पर कांच की बोतलों पर स्त्रियों को नग्न नचाने और सामूहिक बलात्कार करने वाले वो बहादुर भगवा शूरवीर किस खोह में छिपे थे? मुंबई के पुलिस महानिदेशक को, वर्दी उतारकर आने पर यह बताने कि मुबई किसके बाप की है ,चुनौती देने वाले मराठा वीर राज ठाकरे कहां दुबक गए थे ? पाक आतंकी तो वर्दी उतार कर आए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रो0 गिलानी पर थूकने वाले वीर मुंबई में थूकने क्यों नहीं गए?
याद होगा कि बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद भाजपा ने कांग्रेस से पूछा था कि वह इंसपैक्टर शर्मा को श्शहीद मानती है या नहीं ? ठीक यही सवाल आज हम अडवाणी जी और परम प्रतापी मोदी जी से पूछना चाहते हैं कि वे करकरे को शहीद मानते हैं कि नहीं ? अगर नहीं तो मोदी करकरे की विधवा को एक करोड़ रुपए देने क्यों गए थे ? यदि इसलिए गए थे कि करकरे शहीद हैं तो स्वीकार करो कि करकरे ने जो कहा था कि मालेगांव के आतंकवादियों के आईएसआई से संबंध हैं, सही है और मुंबई हमला आईएसआई ने इसी सत्य पर पर्दा पर डालने के लिए कराया है।
मुंबई हादसा एनडीए सरकार द्वारा देश के साथ किए गए उस विश्वासघात का परिणाम है, जब भाजपा सरकार ने आतंकवाद के मुख्य सा्रेत खूुखार आतंकवादियों को सरकारी मेहमान बनाकर कंधार तक पहुचाया था और आज तक उस विश्वासघात के लिए भाजपा ने देश से माफी नहीं मांगी है, जिसके चलते आतंकी घटनाओं से बारबार भारत का सीना चाक होता है और करकरे जैसे बहादुर जांबाज सिपाही शहीद होते हैं। आखिर वह कौन सा कारण है कि मोहनचंद शर्मा की अंत्येटि में पहुंचने वाले लोग करकरे को आखरी सलाम करने नहीं पहुंचते हैं और 20 सैनिकों की शहादत के बाद भी उन्हें ये देश नपुंसक नजर आता है ???????
करकरे भले ही आज नहीं है, लेकिन करकरे की शहादत आतंकवाद विरोधी लड़ाई को हमेशा ज्योतिपुंज बनकर रास्ता दिखाती रहेगी और उनका यह मंत्र कि 'आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है' आतंकविरोधी मिशन को पूरा करने का हौसला देता रहेगा। करकरे तुझे लाख लाख सलाम।
( लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं।)

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

बलात्कारी नहीं हो सकता मेरी भारत मां का बेटा


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
बलात्कारी नहीं हो सकता मेरी भारत मां का बेटा
--अमलेन्दु उपाध्याय

जब कोई बेटा अपने ही भाई के खून से अपनी भारत मां का आंचल गीला करे तो वो बेटा माफी के लायक नहीं है। नन से बलात्कार करते हुए 'भारत मां की जय' का नारा लगाने वाला मेरी भारत मां का बेटा नहीं हो सकता.....लेकिन अडवाणी जी, राजनाथ जी आपका?

पिछले दिनों लगातार हुए चर्चों पर हमलों और ननों से बलात्कार के बाद देश भर में तेजी से यह मांग उठी कि आतंकवादी संगठन बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया जाए। लेकिन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का यह कहकर विरोध किया कि बजरंग दल सिमी जैसा राष्ट्रद्रोही संगठन नहीं है। इस मुल्क में यह अजब तमाशा है कि अब राष्ट्रवादी होने का प्रमाणपत्र ब्लैक में वे लोग बेच रहे हैं, जिनके ऊपर न केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का वातावरण तैयार करने का आरोप है, बल्कि वो अंग्रेजों के एजेंट भी थे और 15 अगस्त 1947 को ''बेमिसाल गद्दारी का दिन'' भी बता रहे थे ।
हाल ही में मालेगांव बम विस्फोट में गिरफ्तार आतंकवादियों साध्वी प्रज्ञा और समीर कुलकर्णी , फर्जी शंकराचार्य सुधाकर द्विवेदी उर्फ स्वामी अमृतानंद की गिरफ्तारी के बाद देश की चिंताएं बढ़ गई हैं। चलिए राजनाथ सिंह की ही बात बड़ी करते हैं कि सिमी और बजरंग दल को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता! बजरंग दल आर.एस.एस. का बगलबच्चा है। आर एस एस वह संगठन है, जिसके विषय में तेल्लिचेरी(केरल) के दंगों की जांच रपट पर जस्टिस विथ्याथिल ने स्पष्ट कहा था कि-' निसंदेह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक बागी सांप्रदायिक संगठन है।.. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने तेल्लिचेरी के हिंदुओं में मुसलमान विरोधी भावनाएं भड़काने और दंगे की पृष्ठभूमि तैयार करने में सक्रिय भाग लिया।'( डी.आर. गोयल द्वारा 'सांप्रदायिक टकराव की राजनीति' में 'सैकुलर डेमोक्रेसी से उध्दृत)
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें संघ गिरोह अब अपनी बपौती बताने पर तुला है, ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पत्र लिखकर कहा था-'आर.एस.एस. की गतिविधियों से सरकार और राज्य दोनों के अस्तित्व को खतरा था।...संघ के लोग और ज्यादा राजद्रोहात्मक गतिविधियों में निमग्न होते जा रहे हैं।' अब क्या कहेंगे राजनाथ सिंह?
अगर कहा जाए कि सिमी और बजरंग दल में क्या समानता है? तो यही समानता है कि मोदी जी की पुलिस और बंद गले के कोट-पैंट के अंदर खाकी नेकर पहनने वाले शिवराज पाटिल की पुलिस अभी तक सिर्फ सिमी को दोषी ठहरा रही है, लेकिन उसे देशद्रोही साबित नहीं कर पाई है ( यूं तो पुलिस/सी.बी.आई. ने तो जिन्ना का गुणगान करने वाले एक बड़े नेता को भी हवाला कांड का आरोपी बताया था लेकिन वह अदालत से बरी हो गए), जबकि बजरंग दल का सेनापति दारा सिंह, आस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस और उसके बेटों को जिंदा जलाकर मारने के जुर्म में दोषी ठहराया जा चुका है। साथ ही देश में हाल ही में हुए जिन बड़े बम धमाकों में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग हुआ है, वह रसायन कानपुर में बजरंगदल के कार्यकर्ता प्रयोग कर रहे थे। इसलिए सिमी और बजरंग दल को राजनाथ के मुताबिक एक तराजू में नहीं तौला जाना चाहिए?
मालेगांव बम विस्फोट में जिस तरह से परत दर परत खुल रही है, इससे यह साबित हो रहा है कि कई सैन्य अफसर आतंकी वारदात में शामिल थे और संघ कबीला बाकायदा स्कूल खोलकर बम बनाने, हथियार चलाने और आतंकवादी बनाने की ट्रेनिंग दे रहा है। यह स्थिति बहुत चिंताजनक है। चूंकि सिमी, लश्कर,हूजी या हरकत-उल-अंसार का न तो अवाम में कोई आधार है और न सुरक्षा बलों में इनकी कोई घुसपैठ है।लेकिन कई हजार पूर्व सैन्य अफसर और सैनिक, संघ और उसके गिरोह में शामिल संगठनों से जुड़े हुए हैं।
मालेगांव, संघ कबीले के फासिज्म की ओर बढ़ते कदमों की आहट को बयां करता है। पहले संघ गिरोह राम जन्म भूमि/बाबरी मस्जिद विवाद का जन्म देने वाले फैजाबाद के पूर्व कलक्टर के.के. नायर और उसकी पत्नी शकुंतला नायर को सांसद बनाकर अपने फासिस्ट इरादों को जाहिर कर चुका है। बाद में यशवंत सिंहा, जगमोहन, भुवनचंद्र खंडूरी, टी.पी.एस. रावत, वी.पी. सिंहल जैसे सैन्य और प्रशासनिक अफसरों को अपने सियासी मुखौटे भाजपा के जरिए सीधे सीधे सत्ता में भागीदार बनाकर अपने खतरनाक मंसूबों को जाहिर कर चुका है। संघ को लग गया है कि अब इस मुल्क में सत्ता उसे जनता के द्वारा नहीं मिलेगी इसलिए वह देशद्रोहात्मक गतिविधियों के द्वारा ही सत्ता पर कब्जा करना चाहता है।
अभी तक हमारी सेना का चरित्र धर्मनिरपेक्ष रहा था और ऐसे देशद्रोही हमारी सेना में नहीं थे, जो देश तोड़ने वाली आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हों। सांप्रदायिक दंगों वाले स्थानों पर सेना को ही स्थिति संभालने के लिए भेजा जाता है, क्योंकि पुलिस और पी.ए.सी. जैसे अर्ध्दसैनिक बलों को सांप्रदायिक माना जाता है और हाशिमपुरा, मेरठ, मलियाना के दंगों में इन बलों की भूमिका भी साबित हो चुकी है। इस कांड से अब सेना से भरोसा टूटना शुरु हो जाएगा। मालेगांव को सिर्फ काउंटर टेररिज्म कह कर टाला नहीं जा सकता है। मालेगांव की घटना सिमी, लश्कर,हूजी से कई हजार करोड़ गुना खतरनाक है, जो न सिर्फ हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान को चोट पहुंचाती है बल्कि देश पर मर मिटने वाले शहीदों के बलिदान को भी झुठलाने की कोशिश करती है। कारगिल शहीदों के कफनचोर इस कदर देशद्रोही निकलेंगे, अंदाज लगाना कठिन था!
यहां एक तथ्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि भारत विभाजन के बाद भारत में जो मुसलमान रह गए थे, वह, वे लोग थे जिन्होंने सांप्रदायिक आधार पर पाकिस्तान जाना कुबूल नहीं किया था। इसलिए स्वतंत्र भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता कभी भी अपना आधार नहीं बना पाई।परंतु जमात-ए-इस्लामी और मुस्लिम लीग के जो अवशेष भारत में रह गए थे, वे मुस्लिमों में अपना आधार तलाशने की कोशिश कर रहे थे और हिंदू सांप्रदायिक उनका अंदरूनी सहयोग कर रहे थे। आश्चर्य है कि पुरानी दिल्ली के झंडेवालान से जहां से मुस्लिम लीग का मुखपत्र छपता था, उस स्थान को संघ कबीले से जुड़े संगठनों ने खरीदा। जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी व आर एस एस के प्रमुख गुरु गोलवरकर के विचारों में जबर्दस्त साम्य है।
रामपुर(उ.प्र.) में 1952 में जमात के अधिवेशन में उसके बड़े नेता मौलाना लईस ने कहा था कि-'राष्ट्रीयता और देशभक्ति शैतानी बीमारियां हैं, जो इंसानियत को तबाह कर रही हैं।' 1960 में इन्हीं मौलाना लईस ने भारतीय संविधान की आलोचना करते हुए कहा था कि-'हमारा भारत के संविधान से बुनियादी मतभेद है,क्योंकि इसमें अवाम को वह जगह दी गई है, जो खुदा को दी जानी चाहिए। हमारी राय में सारी बुराइयों की जड़ यही है।' ( सिमी इसी जमात से जुड़ा है)
और देखने में आया कि कानपुर से पकड़े गए आतंकवादी बाबा अमृतानंद ने भी कहा था कि 'धर्म पहले है, राष्ट्र बाद में' और पूर्व एन.डी.ए. सरकार भी मौलाना लईस से प्रेरित होकर 'संविधान समीक्षा आयोग' बना चुकी है? संघ प्रमुख गोलवरकर ने 15 अगस्त 1947 को बेमिसाल गद्दारी का दिन यूं ही नहीं कह दिया था। ऐसा वेवजह नहीं है कि संघ की शाखाओं में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को प्रणाम नहीं किया जाता है बल्कि भगवा ध्वज को प्रणाम किया जाता है और 'जन-गण-मन' नहीं गाया जाता बल्कि 'नमस्ते सदा वत्सले' गाया जाता है। इसलिए बिना कोई देर किए बजरंगदल को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाना चाहिए।
एक घटना पढ़ी थी कि एक बार शिवाजी के एक कमांडर ने सूरत नगर को लूटकर वहां के मुगल शासक की सुंदर शहजादी को बंधक बना लिया और शिवाजी के समक्ष पेश करते हुए कहा कि-'महाराज! मैं आपके लिए यह अमूल्य उपहार लाया हूं।' इतना सुनते ही शिवाजी की आंखें अंगारे की तरह दहकने लगीं। उन्होंने उस सरदार से कहा कि तुमने न केवल अपने धर्म का अपमान किया है, वरन् अपने महाराज के माथे पर भी कलंक का टीका लगाया है।' फिर उस शहजादी से कहा-'बेटी! तुम कितनी सुंदर हो। काश मेरी मां भी तुम्हारी तरह सुंदर होती तो मैं भी ऐसा ही सुंदर होता।' फिर उस शहजादी को ढेर सारे उपहार देकर सैनिक सुरक्षा में वापस भेजकर सूरत के मुस्लिम शासक से इस गलती के लिए माफी मांगी। बजरंगियों को कर्णवती की राखी की लाज रखने वाले हुमायूं से परहेज हो सकता है, कम से कम शिवाजी से ही कोर्इ्र सीख ले ली होती।
उड़ीसा में बजरंग दल के लोग न केवल हत्याएं कर रहे थे बल्कि नन के साथ बलात्कार करते समय 'भारत मां की जय' का नारा भी लगा रहे थे। जब इस मुल्क में भारत मां का नारा लगाया जाता है, तो इस मुल्क में रहने वाले आपस में भाई- बहन हुए। और जब कोई बेटा अपने ही भाई के खून से अपनी भारत मां का आंचल गीला करे तो वो बेटा माफी के लायक नहीं है। नन से बलात्कार करते हुए 'भारत मां की जय' का नारा लगाने वाला मेरी भारत मां का बेटा नहीं हो सकता.....लेकिन अडवाणी जी, राजनाथ जी आपका?
( लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं।)

अमलेन्दु उपाध्याय

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

Baat ke mayne: मीडिया और अमर के बीच बाटला

Baat ke mayne: मीडिया और अमर के बीच बाटला

मीडिया और अमर के बीच बाटला


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
मीडिया और अमर के बीच बाटला
ऐसी रिपोर्टिंग से बचना चाहिए जो दिलों को तोडती हो, क्योंकि जब दिल टूटते हैं तो देश टूटता है और निस्संदेह देश की कीमत हमारी नौकरी, हमारे व्यवसाय, हमारे राजनीतिक हित और टीआरपी से बहुत ज्यादा है
दिल्ली के जामियानगर में सपा नेता अमर सिंह और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी की एक सभा के तत्काल बाद अमर सिंह की बाइट लेने का प्रयास कर रहे पत्रकारों के ऊपर उग्र लोगों की एक भीड ने हमला कर दिया। यह हमला अमर सिंह के उस भाषण का त्वरित फल था, जिसमें उन्होंने बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए जामियानगर में उत्तेजना फैलाने का प्रयास किया था। अमर सिंह बडबोले और बिना जनाधार के नेता हैं। अगर सोली सोराबजी के शब्दों को उधार ले लिया जाए तो वे फर्जी नेता ह। फिलहाल, सत्यव्रत चतुर्वेदी की सलाह मानने की जरूरत नहीं है। यहां अमर सिंह से एक सवाल तो पूछा जा सकता है कि वे एनकाउंटर को फर्जी बताने में इतनी देर कैसे कर गए? जो तर्क वे आज दे रहे हैं उसे तो एनकाउंटर के अगले दिन भी दिया जा सकता था। लेकिन पहली बार एनकाउंटर पर उन्होंने सवाल तब उठाया जब गृहमंत्री शिवराज पाटिल से उनका वाकयुद्ध हो गया और सपा ने यह महसूस कर लिया कि कांग्रेस उसे भाव नहीं दे रही है। और अगर अमर सिंह मुठभेड की न्यायिक जच के मसले पर राजनीतिक रोटियां नहीं सेंक रहे थे तो उसके लिए उन्हें जामियानगर नहीं, बल्कि ७-रेसकोर्स जाना चाहिए था। सनद रहे कि मायावती के ऊल-जलूल बयान के जवाब में सपा के उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक अध्यक्ष और मुलायम सिंह के अनुज शिवपाल सिंह यादव का जो प्रथम बयान आया, उसमें उन्होंने बाटला हाउस एनकाउंटर पर कोई सवाल नहीं उठाया था, बल्कि अपने दल का बचाव करते हुए आजमगढ में आतंकवादियों की उपस्थिति के लिए बसपा सांसद अकबर अहमद डंपी के उस बयान को जिम्मेदार ठहराया था, जिसमें डंपी ने कहा था कि एसटीएफ वाले आएं तो उन्हें मारना।सपा के बडबोले महासचिव यह कहने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहे कि अगर एनकाउंटर फर्जी है, तो हत्यारे पुलिसकर्मियों को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का आशीर्वाद प्राप्त है। अमर सिंह शब्दों के तीर जान-बूझकर निशाने पर नहीं चला रहे हैं। जान-बूझकर वे निशाने से बचाकर तीर चला रहे हैं, ताकि परमाणु करार पर कांग्रेस का समर्थन करके उनके दल की इजराइल और अमरीकापरस्त जो छवि बन गई है, उससे किसी प्रकार छुटकारा भी मिल जाए और प्रधानमंत्री का वरदहस्त भी हासिल रहे। अगर एनकाउंटर फर्जी है, जैसा कि अमर सिंह का मानना है और मुझे भी संदेह है, तो क्या अमर सिंह इस बात का जवाब दे पाएंगे कि जिस दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने एनकाउंटर को अंजाम दिया वह दिल्ली पुलिस मनमोहन सिंह के अधीन है और मनमोहन सिंह की कुर्सी आज अमर सिंह और मुलायम सिंह के कारण सुरक्षित है। तो क्या इस कथित फर्जी एनकाउंटर (अगर ऐसा है) के लिए अकेले वाई. एस. डडवाल और शिवराज पाटिल ही जिम्मेदार हैं? अमर सिंह, मुलायम सिंह या मनमोहन सिंह की कोई जिम्मेदारी नहीं है? अगर वाकई में अमर सिंह को इस एनकाउंटर पर कोई गुस्सा है तो उन्हें तत्काल सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से अपने सारे रिश्ते समाप्त कर लेने चाहिए। अन्यथा, उनके मगरमच्छी आंसुओं पर आजमगढ के लोग एक शेर में अपने दर्द को बयां करेंगे - ’हमारे कत्ल की साजिश में तुम हिस्सा न लो वरना/ जमाना अपने दौर का तुम्हें कातिल बताएगा।‘रही बात जामिया के एक गुट द्वारा पत्रकारों पर हमला, तो यह घटना निंदनीय है। लेकिन क्या मीडिया और खासतौर पर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया ने इस प्रकरण पर अपना काम ठीक ढंग से अंजाम दिया है? मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। वह जनता का, आम आदमी का प्रतिनिधि है। क्या मीडिया ने आजमगढ की छवि बिगाडने में पुलिस के प्रवक्ता की भूमिका नहीं निभाई? क्या आजमगढ के सारे मुसलमान आतंकवादी और दाऊद इब्राहिम के चेले हैं? माफ करें, जिस दिन आजमगढ के सारे मुसलमान आतंकवादी हो गए, उस दिन मुल्क में हाहाकार मच जाएगा। लगभग पांच लाख की आबादी आजमगढ में मुसलमानों की है। एक या दो दर्जन आतंकवादियों ने सारे देश की सांसें रोक दी थीं। तसव्वुर कीजिए कि हमारे मीडिया के साथी ५ लाख लोगों को अगर आतंकवादी बना देंगे तो इस मुल्क का क्या हाल होगा? अभी कानपुर में एक विस्फोट हुआ। विस्फोट के तुरंत बाद हमारे टीवी चैनल चिल्लाने लगे कि आतंकवादियों ने नया मॉड्यूल अपना लिया है। अब सिरिंज का प्रयोग बम बनाने में होने लगा है। एक टीवी चैनल ने ज्ञान बिखेरा कि सिरिंज साइकिल के अगले टायर में रखा गया था। लेकिन शाम तक उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) का बयान आ गया कि यह आतंकवादी घटना नहीं थी और इसमें सुतली बम का प्रयोग किया गया था, जो अमूमन कानपुर के अपराधी करते हैं। बाद में मालूम पडा कि यह देसी बम, जो वस्तुतः भारी पटाखे थे, एक हिंदू दुकानदार की दुकान पर बिक्री के लिए दो मुस्लिम युवक देने आए थे और साइकिल खडी करके पानी पीने चले गए। इतने में साइकिल गिर गई और विस्फोट हो गया। इस तथ्य की जानकारी समाचार पत्रों में तो आई, लेकिन हमारे न्यूज चैनल ने न तो यह जानकारी दी और न अपनी करतूत पर माफी के दो शब्द कहे।हमारे अधिकांश मीडिया के साथी ’जेहादी तत्त्व‘ शब्द का प्रयोग बार-बार कर रहे हैं। लेकिन इनमें से कितने लोग ’जेहाद‘ की अवधारणा से परिचित हैं? बिल्कुल नहीं, और वे तथाकथित बडे पत्रकार तो बिल्कुल नहीं, जो एनडीए सरकार के कार्यकाल में प्रसार भारती को एक करोड रुपये सालाना की चपत लगा रहे थे। उन्हें आडवाणी ने बता दिया ’जेहादी तत्त्व‘ और वे गाने लगे जेहाद-जेहाद।जेहाद का फतवा तो हर मुसलमान भी नहीं दे सकता है तो गैर मुसलमान कैसे दे सकता है? और आडवाणी को जेहाद का फतवा देने का अधिकार बिल्कुल नहीं है।अभी उत्तर प्रदेश में एक घटना हुई। एक दंपती बाइक पर सवार होकर पटाखों से भरा झोला लेकर जा रहा था। रास्ते में रेलवे फाटक पर बाइक टकरा गई और दोनों पति-पत्नी के परखच्चे उड गए। इत्तेफाक से मरने वाले दंपती गुप्ता थे। अगर कहीं बदनसीबी से यह घटना दाढी-टोपी वाले टखनों से ऊंचे पायचे का पाजामा पहनने वाले किसी शख्स के साथ हुई होती, तो तत्काल थैले में आरडीएक्स ढूंढा जाने लगता और उसके आजमगढ से संफ तलाशे जाते।दाऊद इब्राहिम आतंकवादी माफिया डॉन है, ठीक है, लेकिन दाऊद का एक दायां हाथ रोमेश शर्मा भी तो है। क्या किसी ने रोमेश शर्मा को भी आतंकवादी कहा? यह दोहरा चरित्र मीडिया के लिए ठीक नहीं, राजनेताओं के लिए तो ठीक है।इस सबके बावजूद जामिया के क्रुद्ध लोगों का पत्रकारों पर हमला कतई जायज नहीं था। इसका कारण है कि फिर तो वही साबित हो जाएगा, जो हमारे भद्रजन साबित करना चाहते हैं। दूसरे, रिपोर्टिंग करने फील्ड में जो पत्रकार जाते हैं वे अपने चैनल या अपने मीडिया समूह की नीति तय करने की स्थिति में नहीं होते हैं। उनके कुछ निजी विचार हो सकते हैं, कोई राजनीतिक विचारधारा हो सकती है, जो रिपोर्टिंग में भी झलक सकती है। लेकिन वे वही करते हैं, जो प्रोड्यूसर कहता है और प्रोड्यूसर वही कहता है जो चैनल का मालिक हुक्म देता है। मालिक के अपने व्यापारिक व राजनीतिक हित हैं। उनमें से कई ठेकेदार और बिल्डर ह और कुछ राजनेता। इसलिए इनमें से कुछ वह करते हैं जो सरकार कहती है, कुछ वह करते हैं जो भाजपा कहती है और कुछ वह करते हैं जो अमर सिंह कहते हैं। लेकिन वे ऐसा कुछ भी नहीं करते, जो आम आदमी कहता और चाहता है, जब तक कि उससे टीआरपी न बढे। इसलिए मीडिया (इलेक्ट्राॅनिक) की हरकतों से क्षुब्ध लोगों को इन निरीह रिपोर्टरों पर गुस्सा नहीं उतारना चाहिए। अमर सिंह को भी चाहिए कि वे इन रिपोर्टरों को पिटवाने के स्थान पर उन चैनल मालिकों से संयम बरतने को कहें, जो उनके अभिन्न मित्र भी हैं और उत्तर प्रदेश में सपा शासनकाल में जिनमें से कई उफत भी हुए हैं।ऐसे नाजुक समय में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन आतंकी घटनाओं में मरने वाले न हिंदू थे और न मुसलमान। वे सिर्फ और सिर्फ एक अदद बेगुनाह हिंदुस्तानी थे, जिन्होंने अपने हिंदुस्तानी होने की कीमत अदा की है।इस समय मीडिया से जुडे हमारे मित्रों की अहम जिम्मेदारी है कि पुलिस की बताई कहानी को अंतिम निष्कर्ष बनाकर न दिखाएं। यह वह पुलिस है जो आरुषि केस में मां-बाप को दुश्चरित्र होने का खिताब दे सकती है और मोदी व उनके हनुमान वंजारा से प्रेरणा लेकर शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह पर एक दर्जन से अधिक शोधग्रंथ लिखने वाले प्रख्यात साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. विनायक सेन को माओवादी बताकर प्रताडत कर सकती है। ऐसे नाजुक दौर में टीआरपी की चिंता छोड कर वस्तुस्थिति ही बतानी चाहिए और ऐसी रिपोर्टिंग से बचना चाहिए जो दिलों को तोडती हो, क्योंकि जब दिल टूटते हैं तो देश टूटता है और निस्संदेह देश की कीमत हमारी नौकरी, हमारे व्यवसाय, हमारे राजनीतिक हित और टीआरपी से बहुत ज्यादा है।
--अमलेन्दु उपाध्याय ( लेखक राजनीतिक समीक्षक और स्वतंत्र पत्रकार हैं ]
इस लेख को ख़बर एक्स्प्रेस्स्स डॉट कॉम, हिन्दी मीडिया डॉट इन, दिव्य हिमाचल [समाचारपत्र शिमला ] और डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट [समाचार पत्र लखनऊ ] ने प्रकाशित किया है.

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

कैफी का आजमगढ ही क्यों है आतंक का निशाना?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
The article written by me on the Azamgarh and terrorism was published www.khabarexpress.com and www.newswing.com . you may visit theese sites to view the original articles.

कैफी का आजमगढ ही क्यों है आतंक का निशाना?





‘मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों में बॉट लिया भगवान को / धरती बॉटी , सागर बॉटा मत बॉटो इन्सान को’ और ‘क्या करेगा प्यार वो राम से क्या करेगा प्यार वो कुरान से / जन्म लेकर गोद में इंसान की कर ना पाया प्यार जो इंसान से’ ‘ जैसे कवितामयी नारे देने वाले हिन्दुस्तानी तहजीब के अजीम शायर मरहूम कैफी आजमी और‘‘वोल्गा से गंगा’ जैसी कालजयी कृति लिखकर हिन्दुस्तानी सभ्यता और संस्कृति को एक नई सोच देने वाले महापण्डित राहुल सॉकृत्यायन की सरजमीन अब बम पैदा कर रही है।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एक एन्काउन्टर में मारे गये और गिरफतार किये गये तथाकथित आतंकवादियों के कारण आजमगढ अब दुनिया के नक्शे पर दहशत के पर्याय के रुप में उभर कर आया है। जैसा कि दिल्ली पुलिस और गुजरात पुलिस का दावा है ( जो गलत भी हो सकता है ) कि दिल्ली अहमदाबाद और वाराणसी समेत हिन्दुस्तान के विभिन शहरो में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मुख्य साजिशकर्ता और कर्ता-धर्ता यही तालीमयाफता नौजवान थे। हालॉकि पुलिस द्वारा गढी गई कहानी में इतने ज्यादा उलझे हुए पेंच हैं कि किसी विवेकशील प्राणी को इस कहानी पर भरोसा करने में अभी काफी वक्त लगेगा।

जो पहला सवाल जेहन में कौंधता है वो इस पूरे शूट आउट पर सवालिया निशान लगाने के लिये पर्याप्त है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि उसे मुखबिरों से ही सूचना मिली थी कि बटला हाउस में आतंकवादी रह रहे हैं। अगर पुलिस का मुखबिर तन्त्र इतना सजग और सटीक था तो मुखबिर यह सूचना देने में नाकाम क्यो रहा कि दिल्ली में बम फटने वाले हैं और वो किन स्थानों पर फटेंगे ? दूसरा और अहम सवाल है कि गुब्बारे बेचने वाले जिस बच्च्ेा को चश्मदीद गवाह बताया जा रहा है उसे कई दिनों तक कहॉ छुपाकर रखा गया और क्यो ? तीसरा अहम सवाल यह है कि क्या एन्काउन्टर में मरने वाले और गिरफतार किये गये तथाकथित आतंकवादियों के चेहरे पुलिस द्वारा जारी किये गये स्केच से मिलते हैं ? और चौथा अहम सवाल कि क्या मृतक आतंकियों और गिरफतार आतंकियों की शिनाख्त परेड चश्मदीद गवाह से कराई गई ? अन्तिम और पॉचवा सवाल कि अब तो कहीं बम नहीं फटेंगे ? चकि पुलिस का दावा है कि उसने मास्टरमाइण्ड आतंकियों का पर्दाफाश कर दिया है। जब तक इन सवालों के जवाब दिल्ली पुलिस के पास नहीं होते तब तक उसकी शूट आउट कहानी अगर सही है तो सही होते हुए भी सन्देह के घेरे में रहेगी।

याद होगा कि जब अहमदाबाद बम विस्फोट काण्ड के अभियुक्त के रुप में अबू बशर पकडा गया था तब भी दावा किया गया था कि सिमी और इण्डियन मुजाहिदीन का मास्टरमाइण्ड पकडा गया है । लेकिन इस मास्टरमाइण्ड के गुजरात पुलिस की सेवा में होने के बाद भी दिल्ली में धमाके हो गये। इसका क्या मतलब निकाला जाये ? क्या अबू बशर इन धमाकों में शामिल नहीं था ? और अगर धमाकों का मुख्य कमाण्डर बशर ही था तो गुजरात पुलिस दो महीने तक उसके साथ क्या करती रही ? या फिर दिल्ली की पुलिस लापरवाह साबित हुई जिसने गुजरात पुलिस की सूचना पर कोई ध्यान नहीं दिया ? इन सारे सवालों के पीछे जो उत्तर निकल कर आयेगा वो या तो इन तथाकथित आतंकवादियों को बेगुनाह साबित करेगा अन्यथा गुजरात पुलिस को नाकारा और दिल्ली पुलिस को लापरवाह। बहरहाल यह सहज प्रश्न दिल्ली और गुजरात दोनों की पुलिस को परेशान करते रहेंगे।

अगर दिल्ली पुलिस का यह दावा सही मान लिया जाये कि इन विस्फोटों के पीछे इन आजमगढवासी नौजवानों का ही हाथ था ( ऐसा यकीन ना करने के अलावा अभी चारा ही क्या है?) तो हमें मौजूदा आजमगढ के आर्थिक और सामाजिक माहौल को समझना पडेगा। वर्ष २००२ के विधानसभा चुनावों के दौरान मुझे आजमगढ की फूलपुर और सरायमीर विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करने का अवसर मिला। मैं यह देखकर चौंक गया कि वहॉ पजेरो, सफारी, क्वालिस जैसी लग्जरी गाडियॉ बहुत बडी संख्या में नजर आ रही थीं। इन गाडियों पर नम्बर एम० एच० सीरीज के थे। एक बारगी लगा कि संभवतः किसी प्रत्याशी ने इन गाडियों को किराये पर लिया है। लेकिन स्थानीय लोगों से तहकीकात करने पर मालूम हुआ कि यह गाडिया स्थानीय लोगों की हैं और ९० फीसदी मुसलमानों की हैं।

कारण बहुत साफ था कि सरायमीर इलाके के अधिकॉश परिवारों के लोग मुम्बई और महाराष्ट्र के विभिन्न शहरो में यूपी के भैये बन कर बरसों पहले गये थे और अपनी हेकडी और लडाकू प्रवृत्ति के कारण मुम्बई की अर्थव्यवस्था पर हावी हो गये। आजमगढ में मुझे कई मदरसे देखने को मिले जिनमें एक सरकारी इन्टर कालेज से ज्यादा छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे थे । मालूम हुआ कि ये सारे मदरसे इन्हीं भैयों के आर्थिक सहयोग से चलते हैं।

इसी तरह २००७ के विधान सभा चुनाव में मैं गोरखपुर से आजमगढ के रास्ते से गुजरा तो एक गॉवनुमा कस्बे में भारतीय स्टेट बैंक की विदेशी मुद्रा विनिमय सुविधा प्रदत्त शाखा देखकर आश्चर्य हुआ। मालूम पडा कि उस गॉव व आस पास के गॉवों से बडी तादात में लोग दुबई और खाडी देशों में नौकरी करते हैं और वहॉ से घर पर रियाल और दीनार भेजते हैं। इस समृद्धि का अन्दाजा उस गॉव में संगमरमर के फर्श वाले घर और चमचमाती हुई मस्जिदें देखकर हुआ।

आजमगढ के लोगों की यह समृद्धि ही उनकी दुश्मन बन बैठी। महाराष्ट्र और गुजरात के लोगों को यह पुरबिये भैये अपने दुश्मन नजर आने लगे और यह व्यावसायिक प्रतिद्वन्दिता शनैः शनैः साम्प्रदायिक तनाव में बदल गई। आजमगढ में जो समृद्धि आई उसके परिणामस्वरुप अब ऊॅचे पायचे का पाजामा पहनने वाले मौलवियों के घर में इन्जीनियर, डॉक्टर, मैनेजर और कम्प्यूटर प्रोफेशनल्स की एक नई तालीमयाफता पीढी तैयार होने लगी।

यह उच्च शिक्षा इन आर्थिक सम्पन्न घरों के लिये नासूर बन जायेगी इसका अन्दाजा लगाना कठिन था। यह उच्च शिक्षित कम उम्र नौजवानों का तबका अलगाववादियों के लिये भी सॉफट टारगेट था और उनके आर्थिक प्रतिद्वन्दियों के लिये भी। गौर तलब यह है कि जिन भी नौजवानों पर इल्जाम लगे हैं उनकी उम्र बमुश्किल १७ बरस से लेकर २५ बरस के बीच है। यदि गौर किया जाये तो ६ दिसम्बर १९९२ को जब बाबरी मस्जिद को कुछ लाख गुण्डों ने गिराया और उसके बाद मुम्बई, सूरत अहमदाबाद की सडकों पर जिस तरीके से हैवानियत और वहशीपन का जो खेल खेला गया उन घटनाओं के ये बालमन मूक साक्षी थे। सडकों पर जलते टायरों में जिन्दा जलाये जाते लोग, कॉच की बोतलों पर नंगी नचाई जाती औरतों और बलात्कार की वीडियो रिकॉर्डिंग की घटनाऍ इन दिलों में बरसों बरस सुलगती रहीं।

१९८६ में लखनऊ में सम्पन्न विज्ञान कॉग्रेस में यह तथ्य रेखांकित किया गया था कि ४ से ५ साल का बच्चा धर्म से बेखबर होता है और ५ से ८ साल तक का बच्चा धर्म को समझने लगता है और किशोरावस्था तक आते आते वो धर्म के प्रति कट्टर हो जाता है। ६ दिसम्बर १९९२ को माओं के कलेजों से चिफ हुए यह मासूम चेहरे इस कदर बहशी और रक्तपिपासु हो जायेंगे, इस बात का अन्दाजा ना तो बाबरी मस्जिद गिराने वाले गुण्डों को रहा होगा और ना मुम्बई सूरत अहमदाबाद की सडकों पर बलात्कार और हत्याऍ करते कट्टर शूरवीरों को।

विज्ञान का नियम है कि हर कि्रया की प्रतिकि्रया होती है। लेकिन यह प्रतिक्रिया इतनी वीभत्स और बहशियाना होगी इसका अन्दाजा लगाना कठिन था। जो समझदार और सच्चे हिन्दुस्तानी हैं उनकी नजर में न कि्रया सही थी और ना प्रतिक्रिया को जायज ठहराया जा सकता है।

यह आग अभी ठण्डी भी ना होने पाई थी कि इसके ऊपर सियासी रोटियॉ सेंकने का काम प्रारम्भ हो गया है। शुरुआत हुई उ०प्र० की मुख्यमन्त्री मायावती के ऊलजलूल और बेहद बेहूदा बयान से। सुश्री मायावती को हिन्दुस्तान की हर बीमारी का वायरस मुलायम सिंह ही दिखाई देते हैं। परमाणु करार के मसले पर मुसलमानों की पहले से नाराजगी झेल रहे मुलायम सिंह को एक बार और घेरने का इससे बेहतर और सुनहरा मौका भला मायावती को कहॉ मिलता?

यह शूट आउट समाजवादी पार्टी के लिये भी गले की फॉस बन गया है। एक तो सपा के एक नेता के पुत्र का नाम इस काण्ड में आया है। दूसरे कॉग्रेस के साथ सपा का हनीमून अभी शुरु भी नहीं हो पाया था कि उसे नजर लग गई है। सपा की दिक्कत यह है कि परमाणु करार पर कॉग्रेस के पाले में जाकर उसने पहले ही मुस्लिम मतदाताओं को अपने खिलाफ कर लिया है और रही सही कसर इस शूट आउट ने पूरी कर दी है। आजमगढी मुसलमानों के दिल में यह फॉस गढ गई है कि मुलायम सिंह शिवराज पाटिल और डडवाल के सहयोगी हैं। सपा की समस्या यह है कि अगर वो इस शूट आउट के विरोध में उतरती है तो उसका मनमोहन सिंह से रिश्ता खराब हो जायेगा, जो वो कतई नहीं चाहती। चकि तब उसकी नम्बर एक दुश्मन मायावती सपा नेताओं को सताने लगेंगी।

उधर सपा यह चाहती थी कि आजमगढ के मुसलमानों को सबक सिखाये। चकि हाल ही के लोकसभा उपचुनाव में वहॉ मुसलमानों ने बसपा प्रत्याशी अकबर अहमद डम्पी को वोट देकर जिता दिया था जिसके चलते एक समय म जिले की सभी विधानसभाई सीटें जीतने वाली सपा के प्रत्याशी और पूर्वान्चल में ’’ मिनी मुलायम ‘‘ के रुप में मशहूर बलराम सिंह यादव बुरी तरह हारे । अब सपा नेतृत्व अजब -गजब द्वन्द में है कि आजमगढियों को सबक सिखाये कि अपने समीकरण ठीक करे।

मौजूदा हालात में अगर यह शूट आउट झूठा है, जैसा कि अधिकॉश आजमी भाइयों का मानना है तो यह बेहद चिन्ता जनक है चकि तब हमारी पुलिस अपनी नाकामी छिपाने के लिये देश के होनहार भविष्य को जबर्दस्ती आतंकवाद के रास्ते पर डाल रही है। इसके विपरीत अगर पुलिस का दावा सही है तो यह और भी ज्यादा चिन्ताजनक है। दोनों ही परिस्थितियों में यह कहना समीचीन होगा कि एक भस्मासुर को पैदा किया जा रहा है। एक पुरानी कहावत है कि जो दूसरों के लिये गड्ढा खोदता है एक दिन उसी में गिरता है। पाकिस्तान और अमरीका के साथ हम इस कहावत को चरितार्थ होते देख रहे हैं। जो फिदायीन और मुजाहिदीन पाकिस्तान ने भारत के लिये तैयार किये थे वो आज उसके लिये बवाल-ए-जान बने हुए हैं और साम्यवादी सोवियत संघ के खात्मे के लिये अमरीका द्वारा तैयार किये गये मुल्ला उमर और ओसामा बिन लादेन आज उसी के सिरदर्द साबित हो रहे है। एक शायर के लफजों में बस इतना ही--’’ वक्त हर जुल्म तुम्हारे तुम्हें लौटा देगा / वक्त के पास कहॉ रहम-ओ-करम होता है ?‘‘

--अमलेन्दु उपाध्याय ( लेखक राजनीतिक समीक्षक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

सोमवार, 1 सितंबर 2008

सोम्दा के बहाने हमारे बुद्धिजीवी, पत्रकार और नैतिकता के सवाल


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
"सोमनाथ चटर्जी " के मुद्दे पर हिन्दी मीडिया डॉट इन पर मेरा ३० अगस्त को और emsindia.com पर २९ अगस्त को प्रकाशित लेख "सोमदा के बहाने हमारे बुद्धिजीवी, पत्रकार और नैतिकता के सवाल " पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से भी अवगत कराने का कष्ट करें साभार
अमलेंदु उपाध्याय

सोमदा के बहाने हमारे बुद्धिजीवी, पत्रकार और नैतिकता के सवाल
अमलेन्दु उपाध्याय
भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने लोकसभा सदस्य और लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से निष्कासित क्या किया देश के बड़े बुद्धिजीवी और वरिष्ठ पत्रकार बेचैन हो गये। इनमें से अधिकांश को कोई आश्चर्य इसलिये नही हुआ, चूँकि उनका मानना था कि माकपा एक कट्टर दल है और वहॉ तानाशाही का बोलबाला है।
हमारे देश में एक चलन रहा है कि स्वयं को ज्ञानवान साबित करने के लिये और देशभक्त साबित करने के लिये वामपंथियों को गाली दो। इस प्रवृत्ति का शिकार हमारा तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया भी रहा है। एक समाचार पत्र जो कभी देश के सबसे बडे पूंजीपति रहे घराने का है और उसकी सम्पादिका एक बड़ी साहित्यकार है और चूँकि एक बड़ी साहित्यकार की पुत्री हैं इसलिये भी बड़ी साहित्यकार है, ने एक पूरी मुहिम सरकार के पक्ष में चलाई और वामपंथियों को पानी पी पीकर कोसा। इन सम्पादिकाजी का जब इन्टरनेट पर ब्यौरा खॅगाला गया तो उसमें उनकी जीवनी में उनका घर खण्डवा दर्ज था लेकिन, जब उनका अखबार देहरादून से अपना संस्करण प्रारम्भ करता है तो उन्हें उत्तराखण्ड का गौरव बताता है। अखबार उन्हें उन दो लोगों में शुमार करता है जो उत्तराखण्ड को नई पहचान दे रहे हैं। है न काबिले तारीफ! अब सुन्दरलाल बहुगुणा, नारायणदत्त तिवारी जैसे लोग उत्तराखण्ड की पहचान नहीं रहे। यह समूह एक समय में आपातकाल का भी समर्थक रहा है। इस समाचारपत्र में एक वरिष्ठ पत्रकार की व्यथा थी कि चूँकि माकपा कट्टर है इसलिये सोम दा को उसने निकालकर बाहर कर दिया।यह बड़े पत्रकार बता रहे थे कि माकपा की सदस्य संख्या सत्ता में आने के बाद तीन गुनी हो गयी है। इसलिये माकपा के कैडर में प्रतिबद्धता की कमी है। तर्क कुछ माकूल सा लग सकता है, लेकिन फिर तो कॉग्रेस के कैडर में प्रतिबद्धता बची ही नहीं होगी चूँकि वो तो छ: दशक से सत्ता में है। यहॉ दो घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता है। पिछले बंगाल विधानसभा चुनाव से एक व्रष पहले माकपा ने अपने ७० विधायकों के टिकिट काटने की घोषणा कर दी, इसके बाद राज्यसभा के चुनाव हुए किसी भी माकपा विधायक ने क्रास वोटिंग नहीं की जबकि ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश में ''डिफरेन्ट विद अदर्स`` का दावा करने वाली पार्टी के विधायकों ने लालबहादुर शास्त्री के बेटे को वोट न देकर क्रास वोटिंग करके शराब व्यवसायी को बोट करके जिता दिया। जबकि अभी सपा के ६ सॉसदों ने अपना टिकिट पक्का न मानकर क्रॉस वोटिंग की। क्या माकपा का यह कैरेक्टर किसी दल में है?यहॉ एक बात तो इन तथाकथित बडे बुद्धिजीवियों और बडे पत्रकारों से पूछी जा सकती है कि भारतीय संविधान की वो कौन सी धारा है जिसमें यह प्रावधान है कि लोकसभा अध्यक्ष पार्टी का सदस्य नहीं माना जायेगा? यह भ्रम फैलाने का एक प्रयास है कि व्यक्ति संस्था से बड़ा होता है ताकि मनमोहन सिंह को देश से भी बड़ा साबित किया जा सके। आखिरकार सोमदा थे तो माकपा के ही सदस्य। और अगर सोमदा इसलिये स्वीकार्य थे कि उन्होंने पूरी निष्पक्षता से सदन चलाया। तो जो यह तर्क दे रहे हैं कि, अगर राष्ट्रपति माकपा कार्यकर्ता होता तो माकपा उससे भी इस्तीफा देने के लिये कहती, उन लोगों से यह भी तो कहा जा सकता है कि अगर सोमदा इतने ही पसन्द हैं तो अगला राष्ट्रपति सोमदा को ही बना दें?
इन वरिष्ठ पत्रकार महोदय को सोमदा के निष्कासन का दर्द है। लेकिन उन्हें ८४ वर्ष में साम्प्रदायिक ताकतों से संघर्ष करते सीताराम केसरी के अपमान पर कोई मलाल नहीं है। सोमदा के निष्कासन पर स्यापा करने वाले जरा यह भी तो बतायें कि क्या सोनिया की सात पीढि़यों में यह दम था कि वो नरसिंहाराव से सीधे पार्टी की कमान ले सके? क्या कॉग्रेस का स्व. केसरी से वो बर्ताव उचित था? याद कीजिये केसरी जी को एक तरीके से धक्के मारकर २४ अकबर रोड से बेदखल किया गया था।
अब संसदीय मर्यादा के पालन और लोकतांत्रिक परम्पराओं के ऊपर भाषण वो लोग दे रहे हैं जिन्होंने राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को २६ जून १९७५ को रबर स्टाम्प बनाकर आपातकाल थोपा था। अगर हमारे इन तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों की स्मृतिलोप नहीं हुई है तो जब संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी थी तब शपथग्रहण समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति स्व० शंकरदयाल शर्मा से रामविलास पासवान की अशिष्टता का भी जिक्र कर लिया होता। हाल ही में जब प्रतिभा ताई पाटिल राष्ट्रपति निर्वाचित हुईं तब एक क्लिपिंग बार बार दिखाई गई कि सोनिया उनके कन्धे पर हाथ रखकर सीधे खडे होने का इशारा कर रही हैं। यह संवैधानिक पदों के प्रति संसदीय आचरण है? इसी देश में लोगों ने लखनऊ में'' राजभवन ``घेरो`` कार्यक्रम होते देखा और बिहार के एक राज्यपाल के लिये -इसकी दूसरी टॉग भी तोड़ दो- का एक मुख्यमंत्री का उद्घोष भी और संसदीय आचरण पर भा।ण भी उन्हीं का?
एक और बडे स्तम्भकार हैं, जो लगभग १०० वर्ष के होने वाले हैं। और यह साहब पाकिस्तान को अपना वतन मानते है और चर्चा है कि इनके पिता ने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के खिलाफ गवाही देकर उन्हें फॉसी के फन्दे तक पहुँचवाया था और बदले में कनाट प्लेस पाया था। पता नहीं यह कितना सच है? ये बड़े स्तम्भकार अब बता रहे हैं कि चुनाव के बाद कारत हाशिये पर पहुँच जायेंगे। अब यह तो समय तय करेगा कि कौन हाशिये पर रहेगा और फ्रंटफुट पर। लेकिन प्रकाश कारत को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है (इन बुद्धिजीवियों की नजर से लेकिन मेरी दृष्टि में इसके लिये माकपा को श्रेय दिया जाना चाहिये) कि इकसठ साला लोकतंत्र में पहली बार किसी सरकार को एक राष्ट्रीय मुददे पर विश्वासमत पेश करने के लिये विवश होना पड़ा, वर्ना तो पहले कभी हरियाणा का एक मामूली सा पुलिस का सिपाही या किसी हत्याकाण्ड से जुड़े किसी एक न्यायिक आयोग की अन्तरिम रिपोर्ट भी सरकारों के विश्वासमत और अविश्वासमत का कारण बनती थी, भले ही ६ बरस बाद ही उन्हीं से समझौता हो जाये जिन पर हत्या का आरोप लगाया गया था।
वैसे इस मसले पर एक से बढकर एक तर्क आ रहे हैं। एक विश्लेषक बता रहे थे कि माकपा में सोमदा के मसले पर जबर्दस्त वैचारिक अर्न्तद्वन्द हैं। अब राजनीतिशास्त्र की प्रथम कक्षा का छात्र भी यह समझ सकता है कि वैचारिक अर्न्तद्वन्द वहीं होगा जहॉ विचार होगा। अब इसमें माकपा का क्या दोष है कि वहाँ विचार है वर्ना जहॉ विचार नहीं होता है वहाँ एक घटिया किस्म का दलाल भी किसी व्यक्ति की चालीस साल की राजनीति की अर्थी निकाल सकता है। इस मुददे पर माकपा को गाली देने से बेहतर होता हमारे बुद्धिजीवी इन दलों से कहते कि वो भी अपने यहॉ विचार को प्राथमिकता दें व्यक्ति को नहीं।
देश के बडे़ बुद्धिजीवी हैं मुद्राराक्षस जी। पिछले दो दशक से अधिक से मैं उनके लेख पढकर बहुत कुछ सीखता रहा हूँ। लेकिन, बलिहारी जाऊँ कॉमरेड कारत की कि कुल जमा १० दिनों में उन्होंने मुद्राराक्षस जी की भी जुबॉ बदल दी। १३ जुलाई को मुद्राराक्षस जी ने लिखा-'' देश के दलित आन्दोलन से उच्चवर्गीय वामपंथ इतना ज्यादा चिढ़ता रहा है कि जब बहुजन समाज पार्टी ने एटमी करार को लेकर कॉग्रेस पार्टी का विरोध किया तो वामपंथ की जबान तालू से चिपक गई है..........समूचे देश के दलित -पिछडे वर्ग की सबसे सशक्त नेता मायावती ने जिस वक्त एटमी करार के विरोध में बयान दिया , वामपंथ ने उनके इस निर्णय का स्वागत भी नहीं किया।..........`` लेकिन कारत का कारक मुद्राराक्षस जी पर इतना भारी पड़ा कि ठीक दो हफ्ते बाद ही उन्होंने वामपंथ के लिये लिखा-- '' उन्हें इस बात पर कोई शर्मिन्दगी नहीं होती कि वे गुजरात नरसंहार को सही ठहराने और उसके पक्ष में चुनाव करने वाली ताकतों के बगलगीर होकर राजनीति करते हैं।.........यही वजह है कि जब रुढि़वादी मौका देखता है तो गुजरात नरसंहार कराने वाले और उसके पक्ष में चुनाव प्रचार करने वाले तत्वों के साथ आराम से अपने सैद्धांतिकी तैयार कर लेता है।......वामपंथ चतुराई दिखाता रहा कि साम्प्रदायिकता के विरुद्ध असली लड़ाई मुलायम सिंह लडें और वामपंथ लड़ने का नाटक करता रहे....``
आपने देखा प्रकाश कारत का प्रभाव कि वो मुद्राराक्षस जो मायावती को दलितों और पिछड़ों का एकमात्र प्रतिनिधि बता रहे थे, कुल जमा १० दिन में ही मायावती को मोदी का हमराह बताने लगे। लेकिन मुद्राराक्षसजी उस उमर अब्दुल्ला को सेक्यूलर साबित करेंगे जो मोदी की आका वाजपेयी सरकार में बैठकर मोदी के कारनामों का समर्थन कर रहे थे और करार पर मुलायम सिंह के बगल में खड़े थे? उन्हें उस महबूबा मुफ्ती से भी कोई ऐतराज नहीं है जो दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन में खडी थीं और घाटी में '' मुजफफराबाद चलो`` का नारा लगा रही हैं? उन्हें अब बाबरी मस्जिद की कातिल और '' एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो`` का नारा लगा कर मुरलीमनोहर जोशी के कन्धों पर झूलने वाली उमा भारती भी सेक्यूलर नजर आ रही होंगी चूँकि अब वो अमर सिंह से सी डी राइटिंग की कला का पाठ पढ़ आईं है ?
अगर कारत और वर्द्धन कुछ गलत कर रहे हैं तो वो यह कि मायावती को प्रोजेक्ट कर रहे हैं। भारतीय वामपंथ की दुर्दशा का कारण ही यही है कि वो कभी मुलायम और लालू के पीछे चल देता है और कभी सोनिया के। मुलायम सिंह के विश्वासमत से सबक लेकर वामपंथियों को अब तीसरे मोर्चे की लगाम और कमान स्वयं लेनी होगी। रही बात सोम दा की, तो निसंदेह सोमदा अब तक के सबसे श्रेष्ठ लोकसभाध्यक्ष साबित हुए हैं और संसद की पारदर्शिता साबित करने के लिये उनके प्रयास भुलाये नहीं भुलाये जा सकते हैं। और अगर वो कुछ नैतिक कदम उठाने और संवैधानिक मर्यादा कायम रखने में कामयाब रहे हैं तो निश्चित रुप से इसलिये कि उन्होंने नैतिकता की शिक्षा कम्युनिस्ट पाठशाला में पाई है।
यह विवाद से परे है कि सोमदा एक अच्छे स्पीकर साबित हुए है लेकिन अगर वो एक अच्छे कार्यकर्ता भी इस वक्त... साबित होते तो एक नई नजीर बनती जिसका अवसर उन्होंने स्वयं खोया है। हमने देखा है कि जब व्यक्ति, दल पर भारी पड़ जाता है तो वो इन्दिरा गॉधी जिन्होंने अपनी हत्या से तीन दिन पहले घोषणा की थी कि उनके लहू का क़तरा-क़तरा इस मुल्क के काम आयेगा, इसी इन्दिरा गाँधी की तीसरी पीढ़ी का वारिस घोषणा करता है कि सरकार रहे या जाये करार होगा?
( लेखक राजनीतिक समीक्षक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

स्वाधीनता दिवस , अमरीका, करार और हमारी राष्ट्रीय भावना


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

अमलेन्दु उपाध्याय ------ अभी बमुश्किल एक दशक बीता होगा जब इस देश ने आज़ादी की पचासवीं सालगिरह मनायी होगी और देश की संसद ने समवेत स्वर से कई महत्वपूर्ण घोशनाएँ की थी। परन्तु यह घोषणाएं और हलफ एक दशक बाद ही संसद में टूटते दिखाई दिए। जब जब देश की आज़ादी का जश्न मनाया जाता है तब तब इस देश के अमर शहीदों की कुर्बानियों को याद किया जाता है कि किस प्रकार इन ज्ञात अज्ञात शहीदों ने कुर्बानियां देकर देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया. लेकिन जब पंचशील सिद्धांत के प्रणेता और आधुनिक भारत [ पूर्व नार्सिन्हाराओ - मनमोहन भारत ] के निर्माता प० जवाहर लाल नेहरु के सिद्धांतों को दफ़न करने के लिए मनमोहन सिंह मौजूद हों, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों को शीर्षासन कराने के लिए मुलायम सिंह मौजूद हों तो इस देश की आज़ादी का कैसा जश्न ? आज़ादी के बाद यह पहला अवसर है कि हमारी अर्थव्यवस्था और विदेश नीति की नकेल सीधे सीधे अमरीका के हाथ में है और हमारा नव्ध्नाध्य वर्ग स्वयं को अम्रीकमय होने में गौरवान्वित महसूस कर रहा है॥ बात अगर देश की आर्थिक विकास दर और उन्नति से शुरू की जाए तो सारी दुनिया में १९५० से १९६० के दशक में भारत की विकास दर बाकी दुनिया की तुलना में सर्वाधिक थी। यह वो दौर था कि जब प० नेहरु के नेतृत्व में सार्वजानिक क्षेत्र के भारी उद्योग लगाए जा रहे थे और भारत रोज़गार सृजन के क्षेत्र में भी नए प्रतिमान स्थापित कर रहा था . इस दौर में प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति भी बढ़ रही थी . हमारा धन बाँध बनाने में, विद्युत् परियोजनायों के क्रियान्वयन में , परिवहन के नए साधन विकसित करने में , कृषि क्षेत्र में नए अनुसंधानों और उद्योगों की अवस्थापना में तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में लग रहा था और अगर आज़ादी के तुंरत बाद के कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो यह वो दौर था जब साम्प्रदायिक दंगे भी कम हो रहे थे. प० नेहरु के समय में भारत विकास के नए प्रतिमान स्थापित कर रहा था और हमारा पडोसी देश चीन भी तरक्की की राह पर था . यही वो समय था जब सोवियत संघ अमरीका के लिए नयी चुनौती बन रहा था . ऐसे में अमरीका को भविष्य का ख़तरा भारत और रूस से ही था. उस समय हमारे खिलाफ जो षड़यंत्र अमरीका ने प्रारंभ किये वो बदस्तूर आज भी जारी हैं. १९६२ में चीन से हमारे ऊपर हमला कराया गया और ज़ाहिर है कि नया नया आजाद हुया एक गरीब मुल्क इस अप्रत्याशित हमले का मुकाबला नहीं कर साकता था. यह हमारी रण नीति में बदलाव का एक महत्वपूर्ण बिंदु साबित हुया/. जो धन हमारी विकास परियोजनायों में लग रहा था वो अब हथियारों में लगना प्रारंभ हो गया और हम विकास की दौड़ में पिछड़ने लग गए.

थोडा स्थिति सुधरना शुरू हुयी तो=अब इसी देश में इंदिरा गांधी ने पोखरण परीक्षण कराकर देश की ताक़त सारी दुनिया को दिखलाई थी । यह वो समय था जब हम अमरीका की आँख की सबसे बड़ी किरकिरी बन गए थे. यह सारी बातें हम इसलिए दोहरा रहे हैं क्योंकि आज़ादी के साथ साल के बाद मनमोहन सरकार और उसके अमरीकी दुमछल्ले यह प्रचार कर रहे हैं कि ऊर्जा जरूरते पूरी करने के मामले में देश में भारी अकाल है और बिना अमरीका की दुम बने हम यह जरूरतें पूरी नहीं कर सकते. जब हमने पोखरण -एक किया था तब न तो हमने कहीं से तकनीक चुराई थी और न किसी ने हमें यह तकनीक मुहैया कराई थी . उस समय हमने यूरेनियम पाने के लिए अमरीका के सामने हाथ नहीं फैलाए थे ? फिर जो काम इंदिरा गांधी कर सकती थीं वो हौसला उनके वंशज क्यों नहीं दिखा पा रहे हैं?



पोखरण -१ के बाद अमरीका ने हर संभव कोशिश हमें तोड़ने और और देश में अशांति फैलाने के लिए की थी . जब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो यह अमरीका समर्थक सरकार थी और अमरीका यह बात सरकार तक पहुचाने में सफल रहा कि पाकिस्तान परमाणु बम बना चूका है और परीक्षण करने वाला है.बस हमारे नादाँ हुक्मरानों ने पोखरण -२ कर लिया और अमरीका ने हमारे ऊपर पाबंदियां आयद कर दीं . यहाँ जो बात चिन्हित किये जाने योग्य है वो यह है कि इन प्रतिबंधों के बाद भी हमारी आर्थिक विकास दर कम नहीं हुयी और न मुद्रा स्फीति की दर इतनी तेजी से बड़ी जितनी तेजी से हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के सफल [ ?] नेतृत्व में बड़ी. कारण साफ़ था कि उस समय अमरीका की दादागिरी के खिलाफ पूरा देश एकजुट था और यह आम सहमती बन गयी थी कि भूखे नंगे रह लेंगे लेकिन अमरीका की दादागिरी नहीं सहेंगे. वो लोग जो अमरीका के समर्थक थे या अमरीकी एजेंट थे , भी देशवासियों की इस भावना के आगे नतमस्तक थे. आज जब करार का मसला आया तो हम राष्ट्रीय एकता के सवाल पर बाँट गए . सरकार ने अमरीका के सामने हाथ फैलाया और घुटने टेके परन्तु मनमोहन, मुलायम और लालू के विश्वासघात पर भी हमारी राष्ट्रीय भावना उस प्रकार नहीं जागी जिस प्रकार पोखरण -२ के बाद जागी थी. बल्कि हमारा फूहड़ और संस्कृतिविहीन नव धनाड्य वर्ग देश बेचने के इस पुनीत कार्य में मनमोहन-मुलायम का सहयोगी था. इस घटना का जो फौरी नतीजा था वो हमारे सामने है कि महंगाई अपने चरम पर है , संसद " कैश फॉर वोट " कांड से शर्मसार हुयी है और देश की राजनीति पर दलालों और घटिया किस्म के जेब्क़तरे टायप छिछोरे राजनीतिज्ञों का वर्चस्व कायम हुया जिसके चलते देश बदनाम हुआ. सन १९४७ के बाद यह पहला अवसर है कि देश का प्रधानमंत्री इतना निरीह और बेबस है कि उसे दलील देनी पद रही है कि मानसून अच्छा आयेगा तो महंगाई रुकेगी. क्या इसका जवाब यह दिया जा सकता है कि फिर सत्र्कार भी मानसून ही चलाये साओउथ ब्लोक में मनमोहन का क्या काम है? पोखरण-२ पर हमारी राष्ट्रीयता जागृत हुयी चूंकि तब हमारे सामने दुश्मन के रूप में पाकिस्तान प्रोजेक्ट किया गया था.लेकिन परमाणु करार पर हमारी राष्ट्रीयता जागृत नहीं हुयी चूंकि हमारे सामने पाकिस्तान नहीं अमरीका था? क्या हमारी राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए एक पाकिस्तान का होना जरूरी है? पाकिस्तान के बाद हमारी राष्ट्रीयता का पैमाना चीन तय करता है. पोखरण-२ के बाद भाजपा गठबंधन सरकार ने अमरीका को सफाई दी थी कि यह परीक्षण तो उसने चीन के कारण किया था और जब करार पर बहस हुयी तो सपा शासनकाल में नॉएडा और गाजिअबाद में ज़मीनों पर कब्जे करने वाले और कालाबाजारी करने वाले और अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग में अवैध धन कमाने वाले भी चीन को कोस कोस कर अपनी देश्द्रोहिता को देशभक्ति साबित करने में लगे हुए थे. ६ दशक पुराने आजाद भारत को अमरीका एशिया में भारत को अपना सैन्य अनुचर बनाना चाहता है और इसके लिए अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री उदारीकरण और भूमंडलीकरण के साथ साथ परमाणु करार करके ज़मीनी आधार तैयार कर रहे हैं./ रिज़र्व बैंक मार्का अर्थशास्त्र हमारी कृषि, आधारभूत उद्योग और देशी वित्तीय प्रबंधन को नष्ट कर रहा है. ताकि जब हमारा वितीय संतुलन बिगडे और हमारे देसी य्द्योग धंधे चौपट हो तो हमारा गेंहू १०० रूपये किलो बिके तो अमरीकन बर्गर ५ रुपये का बिके तब अमरीका को हमारे देश से अफगानिस्तान , इरान और पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चों पर सैनिक मिल सकेंगे... आज काश्मीर जल रहा है. वो समय भी इस देश ने देखा है जब काश्मीर के राजा हरी सिंह ने काश्मीर को स्वतंत्र करने का निर्णय ले लिया था और पाकिस्तान कश्मीर में आ पहुंचा था. प० नेहरु प्रधानमंत्री थे. सुना है कि प० जी काश्मीर जा पहुंचे तो राजा हरी सिंह ने प० जी का रास्ता रुकवाया पर प० जी जा धमके और उनके बर्छियां लग गयी थी. उस समय कश्मीरी अवाम पाकिस्तानी घुसपैठियों को पकड़ पकड़ कर हिन्दुस्तानी फौजों को सौंपते थे. आज अगर आज़ादी ke एकसाथ साल बाद वही कश्मीरी अवाम "मुज़फ्फराबाद कूच" के लिए सड़कों पर निकल रहा है तो आप केवल पाकिस्तान को दोष देकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं. अगर कोई बेटा अपने बाप से नाराज़ hai to कुछ न कुछ कुसूर बाप का भी होगा? हमारा देशभक्त और सफल प्रधानमंत्री करार पर मार्केटिंग करने तो बुश से मिलने का वक़्त निकाल्सकता है लेकिन् जलते हुए कश्मीर को देखने के लिए प्रधानमंत्री के पास वक़्त नहीं है? आजाद मुल्क के इतिहास में यह पहला मौका है जब देश की नैय्या किसी काबिल राजनीतिग्य के हाथ न होकर एक मुनीम के हाथ में है. पहले प्रधानमंत्री राजनेता बनते थे अब चाटुकार बनते हैं. क्या ६ दशक की आज़ादी ka मतलब यही hai?


शनिवार, 2 अगस्त 2008

क्या सारे आतंकवादी मुसलमान हैं का " दूसरा भाग -----


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
क्या सारे आतंकवादी मुसलमान हैं का " दूसरा भाग ----- हिन्दुस्तान में ही गैर मुस्लिम आतंकवादी संगठनो की तादात मुस्लिम आतंकवादी संगठनो से ज्यादा है। फिर सारे आतंकवादी मुसलमान कैसे हो गए? मैं फिर कहना चाहूँगा और जोर देकर कहना चाहूँगा कि सिर्फ ओसामा बिन लादेन, मुल्ला उमर, शहीद बदर या कुछ सौ या कुछ हज़ार आतंकवादियों के आधार पर आप किसी एक मज़हब को आतंकवादी घोषित कैसे कर सकते हैं? ठीक उसी प्रकार जैसे आप किसी एक नरेंद्र मोदी , प्रवीण तोगडिया , आडवानी या अशोक सिंघल या बाल ठाकरे के कर्मों के आधार पर सारे हिन्दुओं को हत्यारा या फिरकापरस्त नहीं कह सकते !!! या सूरत, मुम्बई, और अहमदाबाद की सड़कों पर कांच की बोतलों पर औरतों को नंगी नचाने वालों के कुकर्मों के आधार पर आप हिन्दू धर्म को बलात्कारियों और हत्यारों का धर्म नहीं कह सकते!!! कुरान-शरीफ की सूर-अ - इब्राहीम की एक आयत कहती है कि -" ये सूरज, चाँद , सितारे ज़मीन आसमान सब अल्लाह तबारक अता आला ने नौ - अ - इंसानी के लिए बनाए हैं और अल्लाह तबारक अता आला इनका रब्बुलेआल्मीन है. सूना आपने ...क्या कहती है कुराने पाक ? ये सब नौ -अ-इंसानी के लिए बनाए गए हैं ...नौ अ मुसलमानी के लिए नहीं!!!!! जो मज़हब इतना उदात्त सन्देश देता हो बेंगलुरु, अहमदाबाद और जयपुर का बहशी दरिंदा -हत्यारा कम से कम मेरी नज़र में उस मज़हब को मानने वाला नहीं हो सकता!!!! इस मुल्क ने देखा कि कैसे इन हादसात पर भी ज़बरदस्त राजनीति हो रही है. अभी तक भाजपा को ऐसे नाज़ुक हालत में ओछी राजनीति करने के लिए जाना जाता था. लेकिन पिछले दो तीन दिनों में सरकार के लोगों की तरफ से जो जवाबी बयान बाजी हो रही है उससे कम से कम मेरे जैसे हिन्दुस्तानी का माथा शर्म से झुक जाता है . आम हिन्दुस्तानियों का ये दायित्व है कि संकट की इस घड़ी में आपसी भाईचारा , इंसानियत और हिंदुस्तानियत की रक्षा के लिए कदम से कदम मिलाकर एकजुट रहें और उन ताकतों के नापाक मंसूबों को ध्वस्त कर दें जो इस देश के अमन और चैन को नष्ट करना चाहते हैं. ये वो मुल्क है जहां से अगर गौतम बुद्ध ने अहिंसा परमो धर्मं: का पाठ पढाया तो, "वसुधैव कुटुम्बकम" का उद्घोष भी इसे सरज़मीन से हुआ तो हज़रात निजामुद्दें औलिया ने सारी दुनिया को मोहब्बत का पैगाम भी इसी सरज़मीन से दिया...यही ताकत हिन्दुस्तान का वजूद कायम रखेगी . इस वजूद को कायम रखने की जिम्मेदारी आम हिन्दुस्तानी की है राजनेताओं की नहीं. राजनेताओं से सिर्फ और सिर्फ लाशों पर रोटियां सेंकने और बयानबाजी की उम्मीद की जा सकती है... [ ye article www.newswing.com aur www.emsindia.com newsportals dwara praakishit kiyaa gayaa hai.}

गुरुवार, 31 जुलाई 2008

क्या सारे आतंकवादी मुसलमान हैं?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
"बात लगभग एक वर्ष पहले की है.एक बड़े राष्ट्रीयकृत मीडिया संस्थान में आतंकवाद पर अनौपचारिक चर्चा हो रही थी.एक सज्जन ने कहा कि सारे मुसलमानोंको आतंकवादी कैसे कहा जा सकता है/?बात कुछ कायदे की थी,परन्तु एक बड़े पत्रकार ने सवाल किया कि ठीक है सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सारे आतंकवादी तो मुसलमान हैं? प्रश्न कुछ ऐसा था कि पहले वाले सज्जन निरुत्तर हो गए. बाद में बहस चलती रही. अधिकांशत: बुद्द्धिजीवी ऐसा ही तर्क देते हैं.लेकिन कम से कम मैं तो ऐसे तर्क से सहमत नहीं हो सकता हूँ . अगर यह बात मान भी ली जाए कि सारे आतंकवादी मुसलमान हैं, तो फिर प्रभाकरण , भिन्दर्वाला , लाल्देंगा और परेश बरुआ भी मुसलमान हैं? दरअसल सारे आतंकवादियों को मुसलमान और मुसलमानों को आतंकवादी बताने वाली मानसिकता ही आतंकवादी पैदा कर रही है. इस गंभीर मुद्दे पर जिस प्रकार की ओछी राजनीति और बौध्हिक बहस हो रही है वो आतंकवाद को और बढ़ावा देने वाली ही है. मेरे एक मित्र हैं पेशे से इंजीनिअर हैं, पढ़े लिखे तहजीबयाफ्ता खानदान से ताल्लुक रखते हैं पिछले दिनों किराए पर मकान की तलाश में थे . एक हज़ार मकान देखे होंगे तब जाकर मकान मिला. जब सारी बात तय हो जाती थी तब मालिक मकान साहब पूछते थे किनाम क्या है? नाम के आगे खान सुनते ही उनका किराए पर मकान देने का इरादा बदल जाता था.अब आप तय करें कि जिस शरीफ खानदान के इंसान के साथ यह बर्ताव आम हो क्या वो आतंकवादी नहीं बनेगा? एक विद्वान का लेख पढ़ रहा था. वो विद्वान् बता रहे थे कि कोलकाता में जितनी मस्जिदें और मदरसे हैं उसकी तीन गुने बंगलादेश की सरहदी जिलों पर हैं. यह विद्वान् सारे मदरसों को आतंक वाद का अड्डा निरूपित कर रहे थे . अब अगर हमारे विद्वानों का यह हाल है तो जाहिलों का तो भगवान् ही मालिक है? मेरे मरहूम वालिद ने पहली बार जब कोई अक्षर लिखा था तो वो जगह एक मदरसा थी,सबसे पहले जिस भाषा में उन्होंने लिखना और पढ़ना सीखा वो भाषा फारसी थी और हिंदी उनहोंने तब सीखी जब उनकी उम्र २५ ओअर्ष थी. अब इन विद्वान् को कौन समझाए कि मेरे पिटा एक पुरानपंथी ब्रह्मण परिवार से थी और उनके लगभग सभी समकालीनों ने शिक्षा उन्ही मदरसों में पायी थी जिन्हें आज आतंकवाद का अड्डा बताया जा रहा है. क्या आपने कभी यह सर्वे करने की कोशिश की है कि देश भर की मस्जिदों में ७५% इमाम सरहदी बंगाल और बिहार के बाशिंदे होते हैं जो ७०० रूपये से १००० रूपये प्रतिमाह की पगार पर मस्जिदों में इमामत करते हैं. अब हमारे तथाकथित विद्वान् एक निष्कर्ष में इन सारे इमाम साहबान को आतंकवाद का पुरोधा साबित कर देंगे? लेकिन इसका कारण महज यह है कि सरहदी बंगाल और बिहार में गरीबी और गुरबत इन ऊंचे पायचे का पाजामा पहनने वालो को मजबूर कर देती है कि वो मदरसों में पढें ताकि आगे चलकर उन्हें रोटी मय्यस्सर हो सके . वरना कौन आदमी है जो आज के दौर में अपने बच्चो को अच्छी तालीम नहीं देना चाहेगा? एक शब्द बार बार बड़ी तीव्रता के साथ गूँज रहा है" जेहादी तत्व" . ये शब्द उन लोगों की ईजाद है जो तथाकथित राम मंदिर बनवाने के नाम पर अमरीका और कनाडा से अरबों डालर इकट्ठा करते हैं और आज तक देश को इस धन का कोई ब्योरा नहीं देते. जो लोग धर्म का मर्म नहीं समझ सकते वो जेहाद का उसूल भी नहीं समझ सकते!!! जिस दौर में जेहाद हुआ उसकी एक घटना का जिक्र करना उचित होगा. अरब की फौजों ने रोम को फतह कर लिया . खलीफा बग़दाद से रोम पहुंचे तो उन्होंने अपने सैनिको से पूछा कि रोम करर इमारतें सूना है बहुत खूबसूरत हैं? सैनिको ने जवाब दिया कि उन्हें नहीं मालूम. खलीफा ने पूछा क्यों? सैनिको ने जो जवाब दिया, वो इस मज़हब के करेक्टर को समझने के लिए काफी है. सैनिको ने जवाब दिया कि हुजूर इमारतों पर रोम वसियोम की औरतें खादी रहती हैं इसलिए हम कभी इन इमारतों को देख ही नहीं पाए.!!!जिस मज़हब यह करेक्टर हो , क्या वो मासूम और बेगुनाह बच्चो और औरतो के खून से अपना हाथ लाल कर सकता है? बेशक नहीं . इसलिए मैं कहता हूँ और जोर देकर कहता हूँ कि आतंकवादी किसी भी सूरत में मुसलमान नहीं हो सकता . और अगर वो यह दावा करे कि वो मुसलमान है तो यह जिम्मेदारी उलेमाओं पर आयद होती है कि उसे इस्लाम से बहिष्कृत करे. आतंकवाद का जो नमूना बेंगलुरु,अहमदाबाद और पहले जयपुर में देखने को मिला, यह नामूमना पूरे दुनिया में सबसे पहले श्रीलंकाई छापामारों लिट्टे ने अपनाया और लिट्टे को इस्रायली खुफिया एजेन्सी मोसाद ने प्रशिक्षित किया है . हिन्दुस्तान नम ही गैर मुस्लिम आतंकवादी संगठनो की तादात की ----------जारी भाग-२ में काल मूल रूप में पढने के लिए www.newswing.com पर क्लीक karen

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

मनमोहन ने मत तो जीता है पर विश्वास खोया है

आखिरकार देश के इतिहास में सर्वाधिक इमानदार और अ -सरदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में विश्वासमत हासिल कर ही लिया है । यह दीगर बात है किउनका नाम चौ० चरण सिंह के बाद इतिहास में इस मायनो में दर्ज हो गया है कि वो ऐसेर प्रधानमंत्री हैं जो अपने विश्वासमत पर ही संसद में बहस का उत्तर नही दे पाए। चौधरी साहेब तो संसद तक विश्वासमत हासिल करने नहीं जा पाए थे परन्तु मनमोहन सिंह इस मामले में अनूठे हैं कि वो संसद में विश्वासमत तो जीत गए परन्तु बहस का उत्तर नहीं दे पाए।
पिछले दिनों में देश ने संसद के जो नज़ारे देखे वो आम हिन्दुस्तानी के लिए शर्मसार करने वाले थे । यह नज़ारे सोचने के लिए विवश कर रहे थे कि क्या यह वही संसद है जहाँ कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू , डॉक्टर राममनोहर लोहिया , जयप्रकाशनारायण, चंद्रशेखर, इन्द्रजीत गुप्ता जैसे लोग देश की समस्याओं पर बहस किया करते थे? आज उसी संसद के प्रांगन में एक महिला की अध्यक्षता वाले मोर्चे की तरफ़ से खुलेआम बलात्कार , सुहागरात और वेश्याएं इस्तेमाल किए गए। यह सत्ता के गिरते चरित्र का द्योतक है।
सरकार के जीतने की खुशियाँ मनाई जा सकती हैं, और यह सत्ताधारी लोगों का अधिकार भी है, कि भले ही छल और कपट से सरकार बचायी गई लेकिन बच तो गई? अब मनमोहन बुश से किया वायदा पूरा कर सकेंगे । परन्तु इस जीत के पीछे असल कारन न तो कोयियो दलाल है, न यह बलात्कार और सुहागरात का नतीजा है, यह परिणाम है सिर्फ़ हमारे अन्दुरुनी मामलात में अमरीकी दखलंदाजी का.......
विश्वासमत के प्रथम दिन ही जब अमरीकी विदेश उप मंत्री रिचर्ड बौचेर का बयां आया कि अमरीका अल्पमत सरकार से भी समझौता करने को तैयार है उसी क्षण यह तय हो गया था कि सरकार तो बचेगी और उसे भाजपा बचायेगी। ऐसा निष्कर्ष बचकाना नहीं है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के तार मजबूती से अमरीका लॉबी से जुड़े हैं और बाउचर का बयां भाजपा के लिए खुली धमकी था । विश्वासमत से एन दी ऐ के ही सांसद क्यों गायब हुए?
दो दिनी बहस से एक बात और साफ़ हो गई कि सपा के बड़बोले महासचिव लंबे समय से प्रयासरत हैं कि लोग उन्हें नेता मान लें। लेकिन लोग उन्हें नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उनकी यह पीड़ा बार बार उभर कर आती है। वो नेता बन्ने का प्रयास करते हैं और जिनके लिए काम कर चुके होते हैं वही उन्हें उन पदवियों से नवाजने लगते हैं जिनसे यह महासचिव पीछा छुडाना चाहते हैं। इन महासचिव का बडबोलापन तो चूर चूर हो गया जब बसपा का एक भी सांसद सत्ता के खेमे में नहीं पहुँचा और सपा के ६ सांसद सपा से बगावत कर गए। क्या इसके बाद भी समाजवादी पार्टी सरकार की जीत पर खुशियाँ मनायेगी ?
अलबत्ता अमर सिंह की अतिसक्रियता का सपा और कांग्रेस को खासा नुक्सान हुआ । अगर सरकार की जीत दीअलों का नतीजा नहीं भी थी तब भी देश की जनता यह भरोसा करने को तैयार नहीं है कि मनमोहन सिंह ने इमानदारी से [ जो जुमला बार बार कहा जा रहा कि वो इमानदार हैं ] विश्वासमत हासिल किया है। मनमोहन सिंह भले ही फिलहाल अपनी सरकार बचने में सफल हो गए हों परन्तु लोगों को नार्सिम्हाराओ का विश्वासमत भी याद है जब इन्ही इमानदार प्रधानमंत्री जो उस समय वित्त मंत्री थे के सहयोग से उनहोंने सरकार तो बच्चा ली थी लेकिन ठीक उसी वक्त उ० प्र० से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था। और कांग्रेस उस स्थिति में पहुँच गई थी जिस स्थिति में १९७७ में भी नहीं पहुँची थी । १९९३ में कांग्रेस को लगा झटका अभी तक उसकी कमर तोडे हुए है । यह नार्सिन्हाराओ के कर्मों का फल है कि एक राष्ट्रिय पार्टी जिसका इस देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसकी नैय्या बचाने का दायित्व घटिया किस्म के दलाल निभा रहे हैं। नार्सिन्हाराओ ने कांग्रेस की जो कब्र खोदी थी उसमें कांग्रेस को दफनाने का काम मनमोहन सिंह पूरा कर चुके हैं।
सोनिया जी ने प्रधानमंत्री बन्ने से इंकार करके त्याग की एक नयी परिभाषा रची थी। लेकिन अगर मनमोहन सिंह २२ जुलाई को से ६ बजे राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप देते तो उनकी एक छवि निखर कर आती और सरकार के माथे पर लगा होर्सेत्रदिंग का दाग भी धुल जाता .परिणामस्वरूप यह देश सारी दुनिया के सामने शर्मसार होने से बच जाता। सरकार तब ६ महीने चलती अब ८ महीने चलेगी। लेकिन मनमोहन ने देश की इज्ज़त बचने से बेहतर सरकार बचाना समझा ।
सरकार की सफलता पर खुश होने वाले अनजान खतरों की तरफ़ से मुंह फेर रहे हैं। मुझे वो मुलायम सिंह याद हैं [ पता नही कि सोनिया को याद हैं कि नहीं ?] जिन्होंने कहा था कि उन्होंने सोनिया को प्रधानमंत्री बन्ने से इसलिए रोका चूँकि वो देश को विदेशी हाथों में गिरवी रखने से बचाना चाहते थे। बेशक यह लेखक भी उस समय उन लोगों में था जिन्होंने उस समय सपा के उस कदम की मुखालिफत की थी। लेकिन आज मुलायम सिंह का वो जुमला मुझ जैसे एक आम हिन्दुस्तानी को बार बार उद्वेलित कर रहा है कि उस समय शायद मुलायम सही थे? हाँ एक बात निश्चित है कि कि जो सूरत-ऐ-हाल नज़र आ रहे हैं उसमें अगर मनमोहन सिंह भारत के घुर्बचौफ़ साबित हों तो कोई आश्चर्य नही । लेकिन तब इतिहास शायद ऊर्जा जरूरतों से समझौता करने के लिए लोगों को माफ़ भी कर दे लेकिन मुलायम सिंह को तो नहीं ही कर पयेगेया.....
मनमोहन सिंह के सामने असल चुनौतियां तो अब शुरू होंगीं । अभी तक वो यह आरोप लगा सकते थे कि वामपंथी दल मुनाफा कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने की राह में रोड़ा बन रहे थे, आर्थिक उधारीकरण में रोडा बन रहे थे। लेकिन अब पूंजीपति घरानों के झगडे , बॉलीवुड की नार्त्किओयों के किस्से भी प्रधानमंत्री को निपटाने होंगे। और सपा प्रमुख मुलायम सिंह को भी तैयार रहना पड़ेगा कि देश में १२.३% के स्टार तक पहुँचती महंगाई और देश में आत्महत्या करते किसानों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदारी उनकी भी उतनी ही होगी जितनी मनमोहन सिंह की।
सरकार के सामने अब अजब तरीके का दवाब होगा । सपा अपनी तयशुदा डील के तहत अब मायावती को जेल भिजवाना चाहेगी और अगर मनमोहन इस दवाब के आगे झुकेंगे तो देश यह समझेगा कि मायावती के आरोप सही थे और अगर वो यह नाजायज़ मांग नहीं मानेंगे तो जो तथाकथित दलाल सरकार को हलाल होने से बचाकर हराम कर सकते हैं वो कल सरकार को हलाल भी तो करवा सकते हैं
कुल मिलाकर सबक यह है कि दलाल चाहे सोनागाछी का हो या राजनीती का उसका चरित्र समान होता है और प्रश्न यह कि क्या बलात्कार और सुहागरात और वेश्याएं देश की सर्वोच्च सत्ता का निर्धारण भी करती हैं? सरदार मनमोहन सिंह असरदार तो साबित हुए हैं । उनहोंने केवल विश्वासमत जीता है लेकिन देश की जनता का भरोसा खोया है.....

शनिवार, 19 जुलाई 2008

करार पर देश की सत्ता से कुछ सवाल

परमाणु करार पर देश में घमासान मचा हुआ है। देश में जो वातावरण तैयार हो रहा है वोह साठ साला लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोतने का प्रयास मात्र है । पहली बार ऐसा हो रहा है कि देश को गिरवी रखने के लिए एक डील पर डील हो रही है। अभी तक बड़े पूंजीपति परदे के पीछे से सरकार से संपर्क किया करते थे और लाभ कमाते थे। लेकिन अब खुल्लमखुल्ला यह धनपशु न केवल अपने व्यावसायिक हित साध रहे हैं बल्कि देश की राजनीतिकी दिशा और दशा भी तय कर रहे हैं। तथाकथित राष्ट्रिय मीडिया भी इन व्यावसायिक घरानों और सरकार के प्रवक्ता की भूमिका अदा कर रहा है । सरकार रहे या जाए लेकिन इस बहानेदेश के राजनीति के चरित्र पर बहस करने का एक अवसर देश की जनता को नसीब हुआ है।
एक समाचार पत्र की सुर्खी थी कि " सरकार को हलाल नहीं होने देगा यह दलाल " । बहुत तथ्यपरक और विचारणीय सुर्खी थी यह । इसे सिर्फ़ सुर्खी मात्र कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है । बल्कि यह एक चिंतन का अवसर है कि देश की राजनीति किधर जा रही है ? क्या इसका जवाब यह है कि -" यह दलाल सरकार को हराम कर देगा ?"
बार बार बहस की जा रही है कि डील देश हित में है। सरकार और सपा का दावा सही माना जा सकता है । लेकिन सपा से एक प्रश्न तो पूछा जा सकता है कि अगर यह डील इतनी ही देशभक्तिपूर्ण थी तो उस समय जब जॉर्ज बुश भारत आए थे तब विरोध प्रदर्शन में सपा शरीक क्यों हुयी थी?
सरकार से भी तो प्रश्न पुछा जा सकता है की जब वामपंथी दलों ने सेफ गार्ड और १२३ करार पर का मसौदा माँगा तो सरकार ने कहा की यह दस्तावेज गोपनीय हैं और तीसरे पक्ष को नहीं बताये जा सकते हैं । अगर सरकार सच बोल रही थी तो महत्वपूर्ण सवाल है की अमर सिंघ और मुलायम सिंह ने बयां दिया की उन्हें पूर्व राष्ट्रपति ए० पेए० जे० अब्दुल कलाम और राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार एम् ० के० नारायणन ने डील का मसौदा बताया और आश्वस्त किया कीडील देश हित में है । यक्ष प्रश्न यह है की जो दस्तावेज सरकार को समर्थन दे रहे दलों को गोपनीय बताकर नहीं दिखाए गए वो बाहरी व्यक्ति अमर सिंघ और मुलायम सिंघ को क्यों दिखा दिए गए?
क्या कलाम और नारायणन को यह दस्तावेज इसलिए मालूम थे की वो राष्ट्रपति रह चुके थे और राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार हैं ? तब तो यह देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं । चूँकि कलाम को तो देश के पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते और नारायणन को राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार होने के नाते बहुत से गंभीर राज मालूम होंगे और क्या यह दोनों किसी सरकार को बचाने के लिए किसी को भी देश के राज बता देंगे?
सरकार से यह भी पुछा जा सकता है की जब ४ नवम्बर को बुश रिटायर हो रहे हैं और व्हाइट हाउस spasht कह चुका है की डील को amreekee sansad से manjooree मिलने kee कोई garantee नहीं है तथा IAEA के pravakta ने spasht कहा है की उनकी तरफ़ से aisee कोई badhyata नहीं थी की डील का खुलासा नहीं किया जाए तब वो कौन सा कारन था की डील देश से छुपायी गई ? मनमोहन सरकार को बुश से किया वायदा यद् है लेकिन देश की जानता से किया एक भी वायदा यद् नहीं है ।
सरकार ने डील पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए एक विज्ञापन जरी किया जिसमें वैज्ञानिक अनिल काकोडकर के बयां को दोहराया गया की देश को उर्जा जरूरतों के साथ अगर समझौता किया गया तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा। बेहतर होता की काकोडकर इतिहास पढ़ने से बचकर विज्ञानं में कोई नया आविष्कार करते।
अब मुलायम सिंघ और अमर सिंह कह रहे है की अगर डील न हुयी तो BJP आ jayegee यह gazab का tarq है । yahee samajwadee neta pahle कह रहे थे की सोनिया आ गयी तो देश को videshee hathon बेच dengeen। अब समझ में नही आता की inka कौन सा बयां सही था ?
अमर सिंघ जी कह रहे हैं की mayavatee उनके sansadon को तोड़ने के लिए ३० karore rupee दे रही हैं। Gazab है mayavtee ने अमर सिंघ का hunar सीख लिया?
लोगों को आश्चर्य है की सपा ने यु टार्न ले लिया है । लेकिन यह झूठा सच है .मुलायम सिह तो नर्सिहराओ की सरकार भी बचा चुके हैं । फ़िर यु टर्न किस?
करार हो या न हो । सरकार रहे या जाए लेकिन एक नई बात हो रही है, अब भारतीयता का पाठ सोनिया पदायेंगी , देशभक्ति का पाठ मनमोहन सिंह , इतिहास अनिल काकोडकर पढायेंगे , धर्मनिरपेक्षता का पाठ अमर सिंह पढायेंगे , मुलायम सिंह राजनीतिक सदाचार पढायेंगे, और वेश्याएं सतीत्व का पाठ पढायेंगी ? क्या देश की राजनीती इसी मुहाने पर आ पहुँची है ?
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अमलेंदु उपाध्याय

बुधवार, 16 जुलाई 2008

उ. प्र. अगले राजनीतिक दंगल की taiyyaree

अब लगभग यह तय हो गया है की सरकार के विश्वासमत की बिसात उ प्र में ही बिछेगी । सभी दल उ। प्र को अपना टारगेट बनाकर चल रहे हैं। लगभग डेढ़ दशक तक देश की राजनीतिक पटल से गायब हो चुके उ। प्रकी अहमियत यकायक बढ़ गई है.सबसे बड़ी समस्या समाजवादी पार्टी के सामने अ रही है.उसके netritv को अपनी kargujariyon का khamiyaja bhugatna पड़ रहा है। kangress का घर बचने के फेर में sapa का घर ख़ुद tootane के kagar पर है। ख़बर है की लगभग १४ सपा संसद नेतृत्व के खिलाफ खुली बगावत पर उतर आए हैं।
हालाँकि सपा और कांग्रेस दोनों ही व्हिप जरी करके अपनी घर की टूटन को रोकने का प्रयास करेंगे.लेकिन दोनों को ही अपना घर बचाना टेढी खीर लग रहा है.सपा के कई मुस्लिम संसद तो इस बात से घबराए हुए हैं की उनके क्षेत्रों में यह प्रचार ज़ोर पकड़ने लगा है की मुलायम सिंघ ने सद्दाम हुसैन के कातिल बुश से हाथ मिला लिया है। इस प्रचार से आतंकित सपा के मुस्लिम संसद यह सोच रहे हैं की अगर उन्होंने पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर सरकार के खिलाफ वोट कर भी दिया तो उनका कुछ नहीं बिगडेगा चूँकि ऐसी स्तिथि में सरकार गिर जायेगी और नया चुनाव होगा। ऐसे में दल बदल या व्हिप उल्लंघन का कोई जुर्म सुनने के लिए जगह ही नहीं बचेगी। ऐसे में यह मुस्लिम संसद अपने गृह क्षेत्र में कह सकेंगे की उन्होंने तो अम्रीका का साथ नहीं दिया है। फ़िर वोह बिना किसी दल के भी चुनाव जीतने की स्थिति में होंगे। चूँकि यह सभी मुस्लिम बहुल इलाकों से आते हैं।
सबसे अधिक गंभीर समस्या का सामना सलीम शेरवानी को करना पड़ रहा है। शेरवानी गाँधी परिवार के पुराने वफादार हैं और उनके निर्वाचन क्षेत्र बदायूं में यह चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी है की जब बाबरी मस्जिद शहीद की गई थी तब भी शेरवानी कांग्रेस में थे औरुन्होंने मुसलमानों के किसी सवाल पर स्कंग्रेस नहीं छोड़ी थी बल्कि संसद बन्ने के लिए वोह बाद में सपा में चले गए थे। उधर उनके क्षेत्र के यादव मतदाता इस बात पर उतारू हैं की शेरवानी को वोट नहीं देंगे चूँकि उनके ऊपर यह आरोप है की उनहोंने विधानसभा चुनाव में सभी सपा प्रत्याशियों की खिलाफत की थी और उन्हें हराने के लिए कम किया था। यहाँ तक की मुलायम सिंघ के खिलाफ बी स प से खड़े हुए आरिफ अली गुन्नौर में मुसलमानों के सरे वोट झटक ले गए थे। पूरे जिले में मुलायम सिंघ अकेले सपा उम्मीदवार के तौर पर जीते थे वोह भेई बहुत कम अन्तर से।
सहसवान सीस्त जिस पर मुलायम पहले जीत चुके हैं वहां भी शेरवानी समर्थकों ने दी पी यादव को समर्थन दिया जिसके चलते सपा यह सीट मात्र १०० वोट के अन्तर से हरी। शेरवानी को सबक सिखाने के लिए यहाँ सपा ने मुलायम के भतीजे धर्मेन्द्र यादव को चुनाव लड़ने की तैय्यारी शुरू कर दी है।
इन बदली परिस्थियों में अगर शेरवानी मुलायम के साथ भी रहें तो उन्हें घर के रहे न घाट के वाली कहावत से दो चार होना पड़ेगा। चूँकि यादव मतदाता उन्हें स्वीकार करेगा नहीं और अगर वोह स्पा के साथ गए तो मुस्लिम वोतोबं से भी हाथ धोना पड़ेगा। और अगर मुलायम सिंघ ने उन्हें तिच्कित देने का अपना वायदा नहीं निभाया, जिसकी सम्भावना ज्यादा है तो वोह कहाँ जायेंगे?
शेरवानी की मजबूरी यह है की वोह बदायूं छोड़ नहीं नहीं सकते चूँकि उनकी सियासी ज़मीन हिंदुस्तान भर में कहीं नहीं है। उनका घर अलाहाबाद में है और वोह सन १९८४ से लगातार [ केवल १९८९ से १९९५ को छोड़कर ] बदायूं से जीत्नते आए हैं। जबकि उनके मरहूम वलीद ज़िंदगी भर लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सके थे। ऐसे में शेरवानी आख़िरी वक्त में सपा को अंगूठा दिखा सकते हैं।
एक और संसद शफीकुर्ररहमान बर्क़ भी कुछ ऐसी ही दुविधा से घिरे हैं। पार्टी उनका भी पत्ता साफ करने का निर्णय ले चुकी थी। उनके पुत्र लोकदल से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं ऐसे में पार्टी उन्हें तिच्कित देने का अपना वायदा निभाएगी इसमें संदेह है। बर्क़ बाबरी मस्जिद आन्दोलन से जुड़े रहे हैं और वोह मुलायम सिंघ के किसी भी गुनाह का ठीकरा अपने सर फोड़ने से बचेंगे। उधर मुलायम के भाई रामगोपाल , बर्क़ के धुर विरोधी इकबाल मेमूद को संभल में प्रश्रय देते रहे हैं। ऐसे में बर्क़ सपा के साथ रहेंगे इसमें संदेह है।
एक औए मुस्लिम संसद मुनव्वर हसन पहले ही बसपा के सम,पार्क में हैं। इसी तरह घाटमपुर से सपा संसद राधेश्याम कोरी और मोहनलालगंज से संसद जयप्रकाश भी बसपा के साथ लगभग जा ही चुके बताये जाते हैं।
बंद से सपा संसद श्यामाचरण गुप्ता भी पार्टी से खफा चल रहे बताये जाते हैं। चर्चा है की वहां सपा उनका तिच्कित काटकर बसपा से ए आर के पटेल को लड़ने की घोषणा कर चुकी थी। उधर गुप्ता बी जे पी नेतायों के संपर्क में बताये जा रहे हैं । एक समय में वोह मुरली मनोहर जोशी के नज़दीकी रहे हैं।
फार्रूखाबाद से सपा संसद चंद्रभूषण सिंघ उर्फ़ मुन्नू बाबू भी सपा के साथ रहेंगे इसमें संदेह है। मुन्नू बाबु की समस्या यह है की बसपा यहाँ से नरेश अग्रवाल को चुनाव लड़ना चाहती है और अगर सपा और कांग्रेस का समझौता हुआ तो यह सीट सलमान खुर्शीद झटक ले जायेंगे॥ ऐसे में मुन्नू बाबु भी अपने पुराने घर बी जे पी का ही रुख करेंगे। वोह पहले भी बीजे पी के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं। गोंडा के संसद किर्तिवर्धन सिंघ भी पहले से बसपा के संपर्क में बताये जाते हैं।
हमीरपुर के सपा संसद राजनारायण बुधौलिया भी बी जे पी नेतृत्व के संपर्क में बताये जा रहे हैं, बताया जाता है की सपा ने वहदलों की यात्रा कर आए गंगा चरण राजपूत की टिकिट देने का मन बना लिया है।
एक और सपा संसद अंदरखाने बसपा के संपर्क में बताये जा रहे हैं। वोह हैं एस पी सिंघ बघेल। बघेल जलेसर लोकसभा सीट से लगातार तीन बार से संसद होते आए हैं। लेकिन अब उनका क्षेत्र नए परिसीमन में समाप्त हो गया है। विधान सभा चुनाव में उनकी पत्नी सपा के बैन्नेर टेल हाथरस जिले की सिकंद्रराऊ सीट से सपा उम्मीदवार थी। लेकिन सपा की स्तानीय इकाई ने उनकी खुली खिलाफत की जिसके चलते वोह मात्र ३००० वोट से हरीन। ऐसे में बघेल को लगता है की अगर वोह बसपा से विधानसभा चुनाव लादेन तो आसन रहेगा। उनके ज़ख्मों पर नमक छिडकने के लिए सपा ने उनके धुर विरोधी राकेश सिंघ रना को विधान परिषद् का सदस्य बना दिया है। अब रना भी सिकंद्रराऊ से चुनाव लड़ने की तैय्यार्रे कर रहे हैं। रना की वहां सक्रियता बघेल के सीने में जलन पैदा कर रही है। ऐसे में वोह सपा के साथ रहेंगे मुश्किल हैं, वोह पहले भे बसपा में रह चुके हैं।
कभी मुलायम सिंघ की नक् का बल रहे झांसी के संसद चंद्रपाल सिंघ यादव भी सपा नेतायों से नाराज़ हैं॥ उनकी पीड़ा यह है की पार्टी कभी उनके शागिर्द रहे गरौठा के विधायक दीप नारायण सिंघ उर्फ़ दीपक यादव को उनके स्थान पर लड़ने की तय कर चुकी थी। पिछले दो वर्ष से चंद्रपाल ५ विक्रमादित्य मार्ग से मिलने का समय मांगते रहे बताये जाते हैं लेकिन वोह दिन उनके नसीब में आया नहीं है।
पुराने समाजवादी रहे डोरिया के संसद मोहन सिंघ और अलाहाबाद के संसद रेवती रमन सिंघ कभी मुलायम सिंघ के सीनियर रहे है। विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में बताया जाता है की दोनों ने अमर सिंघ पर अप्रत्यक्ष हमला बोला था की उन्हें वोह जगह नहीं मालूम जहाँ पार्टी के बड़े बड़े फैसले ले लिए जाते हैं। चर्चा है की तब मुलायम सिंघ ने दोनों को धमकी दी थी की वोह पहले अपनी घर की बगावत रोकेंगे॥ ऐसे में मोहन सिंघ और रेवतीरमण यह बर्दाश्त करेंगे की इतना अहम् फैसल फ़िर बिना उनकी जानकारी के ले लिए जाए। मुश्किल हैं...दोनों ही हल की संसदीय बोर्ड की बैठक में अनुपस्थित थे.

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

Baat ke mayne: करार पर मुलायम और अमर सिंघ का दांव

Baat ke mayne: करार पर मुलायम और अमर सिंघ का दांव

करार पर मुलायम और अमर सिंघ का दांव

लगभग एक्वर्ष pahle मैं apne ek mitr , jo chhatr rajneeti ke daur ke mere sathee hain ke sath Samajwadee Party ke ek bade neta, jo SP kee Delhi ki DUKAN samhalte hain, se milne gaya।Neta ji mujhse parichit nahi the so khule hokar vampanthee neta GuruDas Das Gupta aur vampanthee dalon ko galiyan de rahe the।Unkee peeda yeh thee ki vampanthiyon ne Mulayam-Amar ko Mayavatee se bachane ke liye Kendr sarkar par dawab naheen dala।Baharhal jab mera unse parichay karaya gaya to woh kuchh asahaj ho gaye.Halanki is ghatna ka zikr karna siddhant ke khilaf hai choonki isase mere mitr jo SP ki up men sarkar banne par Minister banne ka sapna pal rahe hain unhe nuksan ho sakta hai, [ Vaise is ghatna ka ullekh apradh naheen hai, jab Amar Singh Deelon ka khulasa kar rahe hain to itna adhikar to mujhe bhee hai.]Ek anya ghatna Meerut kee hai. SP ke pradesh Sammelan men Mulayam Singh ne Party workers se kaha ki woh Jail chale jayenge par Congress se dostee naheen karenge.Isee Sammelan men Mohd.Azam khan ne Amar Singh par Tanz kaste huye kaha ki woh[Azam Khan] to emergency ke daur men Jail ho aaye hain Amar Singh Apnee soche jo kal hee Tajmahal ka deedar karke aaye hain.[Amar singh usee samay Agra se Abhishek aur Aishwarya ke sath ghoom kar aaye the.]Ab in vakayun se SP kee rajneeti samjhee ja saktee hai.Samajwadee Party ke samne sabse badee samasya Mayavatee hain aur unka gussa Vampanthiyon se yeh hai ki unhonne Mayavatee ko gherne me SP kee madad naheen kee[halanki congress se Mulayam sarkar ko barkhast hone se kayi bar vam,panthee bacha chuke the.]U.P. men pichhale Ek varsh men jis tareeke se BSP sarkar ne SP netaon par Farzee muqadmen lagaye [ Halanki iskee avashyakta naheen thee choonki unke khilaf aslee mukdme hee bahut the ] usase SP men bechainee hai aur woh kisee bhee tarah Mayavatee se mukti chahte hain.Udhar Congress kee bhee apnee majboori hai ki woh Rahul ko Pradhanmantri banana chahte hain lएक Manmohan Singh ne Desh men aisa vatavaran taiyyar kar diya hai ki Rahul Baba mahngayi ke jinn se nipatne men asmarth hain.Aise men agar congress manmohan singh se mukti pakar vampanthiyon se sulah safayi ka koyi rasta nikaltee bhee to Rahul baba aur adhik museebaton men fans jate.Aise men SP aur congress donon ke liye yahee mufeed tha ki aapas men hath milaya jaye aur sajha Dushman Mayavatee ko filhal kinare lagaya jaye.Udhar vampanthee dal bhee isee samy sahee mauke kee talash men the jo Manmohan Singh ke America prem ne asanee se unhen uplabdh kara diya hai.Chunav se poorv to unhen Congress ka daman chhodna hee tha.Varna woh kis munh se Kerala ,Bengal, aur Tripura men janta ke beech jate?Kul milakar sabhee ke liye mamla sahee hai.Vampanthee dal bhee samarthan vapsee kee अपने e rasm adaygee kar lenge aur sarkar bhee chaltee rahegee udhar SP Mayavatee se hisab kitab chukta kar legee aur congress SP ke kandhe par bandook rakhkar use doosre pradeshon men nuksan pahuncha rahee BSP ko sabak sikha degee.Rahee bat SP aur vampanthiyon kee dostee kee to yeh dostee to tabhee toot chukee thee jab SP ne Rashtrpati chunav men A.P.J. Abdul Kalam, jo BJP ke ummeedvar the, ko samarthan diya tha aur usee parche par hastakshar kiye the jis parche par BJP Netayon ne hastakshar kiye the.Us samay bhee Amar Singh ne Vampanthiyon ke khilaf zahar ugla tha,[Ab agar iske bad bhee Comunist SP ko apna dost mante rahen to ismen SP ka kya dosh?] aur san1942 ke bharat chhodo andolan men vampanthiyon kee bhoomika ko deshdrohiyon se joda thaa.aaj fir Amar Singh BJP ko rokne ke nam par bhashan de rahe hain[ halanki woh अपने marhoop pita ko marte dam tak samajwadee naheen bana sake]. Kamal hai jab Sw. Pramod Mahajan par Shiwanee Bhatnagar Hatyakand men aarop lagen to unhen sachcharitra hone ka pramanpatr mulayam singh jaree karen?Rahul Mahajan Druges lete pakde jayen to mada karne Amar Singh jayen? BJP neta Jaswant Singh Din ke ujale men Amar singh ke ghar ho aayen aur dharmnirpekshta par certificate bhee Amar Singh jaree karen?Vampanthiyon se samajwadiyon ki dushmanee ka itihas kafee purana hai aur iske antarrashtriy adhar hain.Germeny men bhee yahee samajwadee Comuniston ko dhoka dekar Hitler se ja mile the aur bad men Hitler ne unhen bhee gas chambers men comuniston ke sath mara tha.Jahan tak Mulayam singh yadav ka sawal hai to Unke dal men unkee pakad kamzor pad chukee hai. Wahan poonjipatiyon aur nachaniyon ka bolbala hai.Mulayam singh chahkar bhee wahan अपने e bat manva naheen sakte hai. Dekhen Ek TV Channel ne darshakon se ray mangee i Bharat Bhagy vidhata kaun hai?-Amar SIngh, Prakash Karat ya Manmohan singh? Ismen Mulayam singh ko naheen pioochha gaya Amar singh ko poochha gaya. Yahan Bharat Bhagy Vidhata Amar Singh ho ya naheen lekin Mulayam singh ke Bhagy Vidhata to Amar Singh hain hee....Jo log rajneeeti ke pandit hain aur Mulayam singh ke itihas se bhalee bhanti parichit hain woh jante haionki Mulayam Singh par Comuniston ke anginat ehsan hain. Jab Amar Singh , Veer Bahadur Singh, Madhavrao SINdhiya aur Birla parivar kee raksha kar rahe the , us samay Comunist Mulayam singh kee jeevan raksha kar rahe the.Kya Mulayam singh yeh Bhool jayenge ki jab U.P. men Ajeet singh ne Lokdal todkar 1984 ke bad LOKDAL[A] bana liya thaa tab Comuniston ne Krantikaree morcha banakar Mulayam Singh kee jeevan raksha kee thee.Aur jab पहले e dafa mukhyamantree bane Mulayam singh Sampradayik shaktiyon se jhoojh rahe the Us samay Atul Anjan aur Subhashinee Ali hee Sampradayikta virodhee railiyan karke unhen majboot kar rahe the.Uske bad bhee jab jab Mulayam singh par sankat ke badal aaye to Comuniston ne Mulayam singh kee jeevan raksha kee.Tab Amar Singh kahan The?Vaise agarMulayam singh chahte to hamesha ke liye sankat se mukti paa sakte the. BSP sarkar Amar Singh ko hamesha ke liye Amar singh ko sahee raste laga detee aur Mulayam singh apna Kunba bacha pane men safal rahte.Sawal yahan yeh bhee hai ki ab kis munh se Ambika Soni aur Amar Singh ek doosre ke samne baithenge? khair jab satta ke liye Soniya Karunanidhi se samjhauta kar saktee hain to fir yeh sab choti baten hain>>>Sp ke maujooda faisale se wahan jabardast tootan hogee aur kayi bade nam party ko alvida kah sakte hain.sabse bada aghat SP ko Azam khan ka lag sakta hai, jo Amar singh mandalee se पहले se hee naraz chal rahe hain.Aise men Atomee deel par Mulayam ka Congress prem Azam khan ke liye ek sadma hoga.Azam Khan uin logon men gine jate hain jo usoolon ke liye satta ko thokar mar sakte hain.Kal tak Mulayam Singh ko Rafeeq-ul-Mulk[Desh ka dost] kee upadfhi se navajne wale Azam Bhayio agar kal MUlayam ko Dushman-e-Mulk kee upadhi se navajte nazar aayen toashchary naheen.Ab dekhna yeh hai ki Mayavatee se khaufjada Mulayam -Amar singh apna ghar kaise bacha pate hain>?Ab Mulayam Singh Ke karykartayon men hee unkee vishwasneeyta par sandeh kiya jane laga hai. Varna 1996 se पहले tak Mulayam singh kee chhavi thee ki woh jo kahte hai wahee karte hain Lekin Amar Singh kee sangat se ab woh chhavi badal gayi hai.Amar Singh jee ka tark hai ki Congress ko na bachaya to BJaa jayegee.Gazab ka tark hai.Sawal to yeh bhee kiya ja sakta hai ki Congress aise karm hee kyon kar rahee hai ki BJP aa jaye? Amar Singh uvach ki Advanee desh ke liye Bush se bada khatra hain. Ab Itna adhik gyan to unhen hee ho sakta hai lekin itna avashy hai ki Mulayam Singh ke liye sabse bada khatra to sakshat yahee hain....Yeh Rajneeti kee vidambana hai ki Congress ka bhavishy woh Manmohan Singh tay kar rahe hain jo Rajy Sabha men jane ke liye bhee ASAM ka munh taqte hain aur SP ka bhavishy woh Amar Singh tay kar rahe jo kabhee Zindagee men Janta se gram pradhanee ka chunav bhee naheen jeet paye hain.IS beech men janta kahan hai?

बुधवार, 9 जुलाई 2008

आएने में समय के हम फ़िर खड़े

JayNarayan Vyas Vishwavidyalay Jodhpur ke Hindee vibhag men Associate Professar Kaushalnath Upadhyaya ka pahala kavya sangrah “aaene men samay ke hum fir khade” Pichhale dinon prakashit hua hai.Isase poorva unkee kayi aalochnatmak pustaken prakashit ho chukee hain.aaj ke daur men jab manushya ke beech fasle badh rahe hain aur samvada ke silsile toot rahe hain , Kaushalnath kee kavitayen Aaene se samna karate hain aur aaaena hai ki jhooth bolta hee naheen . Parantu hamne aaene se samna karne kee kshamta kho dee hai, choonki hamen ehsas hai ki aaena hamare andar chhipa hua sab kuchh bahar nikal dega. Is dhartee par mitrata ho ya dushmanee , Swarth ho ya parmarth, Ghrina ho ya pyar, achchha ho ya bura kuchh bhee niradhar naheen hai.Yadi hum yeh sochte hain ki yeh sare jazbat niradhar hain to yeh soch swayam ke sath chhal hai.Sach se bahut samay tak munh naheen churaya ja sakta choonki ek na ek din aaene se samna karma hee padta hai.
Kaushal sawal karte hain ki doosaron men tez dhar ho, aag ho, aur swar rasyukt ho ,yeh chah aapmen hai parantu yeh dhar, aag aur swar aapka kyon naheen hai?yeh dava to who naheen karte hain ki weh bhoot-bhavishya, aagat-anagat,desh-videsh, aur samay va samay se pare sabhee ko padh sakte hain. Aadarshon ka jeevan ab naheen bacha choonki ab dooshit hawa chal padee hai jisne apnee reeti gawan dee hai.
Halanki yeh Lekhak ka pahla Kavya sangrah hai parantu sangrah men ek bhee rachna aisee naheen jise aparipakva kaha ja sake, han kabhee kabhee adhyapakeeyata parilakshit hotee hai, parantu yeh unke karm kshetra ka prabhav hai. In kavitaon ke madhyam se Kaushal swayam se aur samaj donon se muthbhed karte chalet hain .Isee udhedbun men aaena chamka magar dhundhla gaya, sach kahte kahte shayad thak gaya ho , parantu samay ke aaene men hum fir khade hain aur sach ko jhuthla pana hansee khel naheen hain, choonki chetna ko chamak, chah ko janm aaene ne hee diya hai aur tez ko bheetar jagaya hai. Sangrah men 43 rachnayen hain aur apne men poorn hain. Pustak men do shabd ya Bhoomika naheen hai choonki sach ko kisee bhoomika kee avashyakta hee kahan hai?
Pustak:--Aaene men samay ke hum fir khade
Lekhak:--Kaushalnath Upadhyaya
Moolya:--80Rs.
Prakashak:--Rajasthane Sahitya Sansthan, Jodhpur.

JayNarayan Vyas Vishwavidyalay Jodhpur ke Hindee vibhag men Associate Professar Kaushalnath Upadhyaya ka pahala kavya sangrah “aaene men samay ke hum fir khade” Pichhale dinon prakashit hua hai.Isase poorva unkee kayi aalochnatmak pustaken prakashit ho chukee hain.aaj ke daur men jab manushya ke beech fasle badh rahe hain aur samvada ke silsile toot rahe hain , Kaushalnath kee kavitayen Aaene se samna karate hain aur aaaena hai ki jhooth bolta hee naheen . Parantu hamne aaene se samna karne kee kshamta kho dee hai, choonki hamen ehsas hai ki aaena hamare andar chhipa hua sab kuchh bahar nikal dega. Is dhartee par mitrata ho ya dushmanee , Swarth ho ya parmarth, Ghrina ho ya pyar, achchha ho ya bura kuchh bhee niradhar naheen hai.Yadi hum yeh sochte hain ki yeh sare jazbat niradhar hain to yeh soch swayam ke sath chhal hai.Sach se bahut samay tak munh naheen churaya ja sakta choonki ek na ek din aaene se samna karma hee padta hai.
Kaushal sawal karte hain ki doosaron men tez dhar ho, aag ho, aur swar rasyukt ho ,yeh chah aapmen hai parantu yeh dhar, aag aur swar aapka kyon naheen hai?yeh dava to who naheen karte hain ki weh bhoot-bhavishya, aagat-anagat,desh-videsh, aur samay va samay se pare sabhee ko padh sakte hain. Aadarshon ka jeevan ab naheen bacha choonki ab dooshit hawa chal padee hai jisne apnee reeti gawan dee hai.
Halanki yeh Lekhak ka pahla Kavya sangrah hai parantu sangrah men ek bhee rachna aisee naheen jise aparipakva kaha ja sake, han kabhee kabhee adhyapakeeyata parilakshit hotee hai, parantu yeh unke karm kshetra ka prabhav hai. In kavitaon ke madhyam se Kaushal swayam se aur samaj donon se muthbhed karte chalet hain .Isee udhedbun men aaena chamka magar dhundhla gaya, sach kahte kahte shayad thak gaya ho , parantu samay ke aaene men hum fir khade hain aur sach ko jhuthla pana hansee khel naheen hain, choonki chetna ko chamak, chah ko janm aaene ne hee diya hai aur tez ko bheetar jagaya hai. Sangrah men 43 rachnayen hain aur apne men poorn hain. Pustak men do shabd ya Bhoomika naheen hai choonki sach ko kisee bhoomika kee avashyakta hee kahan hai?
Pustak:--Aaene men samay ke hum fir khade
Lekhak:--Kaushalnath Upadhyaya
Moolya:--80Rs.
Prakashak:--Rajasthane Sahitya Sansthan, Jodhpur.

शुक्रवार, 6 जून 2008

सत्य जीतता है.

Bhoomandleekaran ke aagman ke bad bhautikta kee daud shuru ho gayee hai aur Is daud men har koyi uchak kar who sab kuchh hasil kar lena chahta hai, jo ek bhautikwadee sansar men aavashyak hai. Lekin is daud men agr kuchh badhak hai to who antaratma hai. Iseeliye aadmee antratma ko girvee rakhne par aamada hai.Isee antaratma ko “Satya jeetta hai” kavya sangrah men Murlee Manohar Shreevastava ne jhakjhorne ka prayas kiya hai.
Prayag ke mool nivasee aur peshe se abhiyanta Murlee Manohar Shreevastava ne apne taza kavya Gazal sangrah “Satya Jeetta hai” men jeevan ke anek pehluon par kalam chalayee hai jismen unka prernasrot kisee ek nayika ke ird gird naheen ghoomta hai. Unkee chinta hai ki aadmee ka hridaya[heart] machine ho gaya hai jo har sahee galat baat par bas oopar neeche sar hilata hai. Murlee Manohar Shreevastava kee drishti men shoonya matr khaleepan naheen hai balki shoonya ek uplabdhi hai choonki kabhee kabhee shoonya se khaleepan bhara jata hai. Bhagwan ko bhee who chunautee dene se hichakte naheen hain ki Bhagwan banna to asan hai lekin Insan banna bahut mushkil.
Lekhak aur prakashak ke sambandhon par bhee Murlee Babu war karne se choke naheen hain.Unkee peeda hai ki ek rachna ko lekhak hriday men dheere dheere seta hai, aseem peeda ke sath jam deta hai aur Saraswatee ke putra kee yeh rachna jab prakashnarth Luxmeeputra Prakashak ke pas pahunchtee hai to who rachna ke sath balatkar kar koode kee tokree men fenk deta hai.
Sangrah kee bhoomika jane mane kavi Ashok Chakrdhar ne likhee hai.Sangrah men 48 kavitayen hain aur 6 Gazalen hain. Parantu Murlee babu Gazalon ke sath nyay naheen kar paye hain ya belag kahen to Gazal kee taang unhone jabardastee marodee hai choonki yahan bhashagat va vyakarneey ashuddhiyan hain. Behtar hota ki Murlee babu Kavita men hee hath aajmate choonki jyada likhna jarooree naheen hai parantu achchha likhna jarooree hai.baharhal kulmilakar Kavya sangrah ausat darze se kuchh behtar hai ‘theme’ ke karan. Agar Ashok Chakrdhar ke shabdon men kahen to-“ In kavitaon ko padhiye naheen inse miliye.”

Pustak:-- Satya jeetta hai
Lekhak:-- Murlee Manohar Shreevastava
Moolya:--80 Rs.
Prishth:--72
Prakashak:-- Sahitya Veethee, Delhi.

Review by

Amalendu Upadhyaya

सोमवार, 5 मई 2008

नेहरू-गाँधी खंडन का लेखा jokha

This Book Reviw were published By “SWATANTRA BHARAT” Hindi daily

VIRASAT fojklr

AMALENDU UPADHYAYA

&&veysUnq mik/;k;

Jab Bharat ke Swatantrata Sangram ka Itihas likha jayega to who Nehru- Gandhi khandan ke bina adhoora rahega aur jab aadhunik Bharat ke Nirman ka Itihads likha jayega to who bhi Javahar lal Nehru, Indira Gandhi, ke bina adhoora rahega. Nehru Gandhi Parivar ke Itihas ko bujurg patrakar”KalaKumar “ ne “VIRASAT” ke roop me sanjone ka prayas kiya hai. Shri Kalakumar varishtha patrakar hain aur lambe samay tak reporting aur sampadan se jude rahe hain., parantu “Virasat” me jis tarah se unhonne apne bhavon abhivyakti dee hai usase nishchit roop se patrakarita jaise sammanit karm ko thes pahunchi hai aur “ virasat” kisi congressi karyakarta ki chatukarita ki parakashtha maloom padati hai, jaise Lalu Chalisa.
Is tathya se inkar nahin kiya ja sakta ki pt. Jawahar lal Nehru aur Pt. Moti lal Nehru jabardast rashtravadi aur ajadi ke deevane the. Parantu kya Bharat ka Swatantrata sangram keval Nehru parivar ka hi aandolan tha? Kya isme Communiston, samajvadiyon, Neta ji subhash Chandra Bose, Shaheed-E-Azam Sardar bhagat singha Chandra Shekhar azad, Shripad Amrit Dange ,Ajay Ghosh, Dr. Ram Manohar Lohiya , Jai Prakash Narayan, Aruna Asaf Ali Jaise Hazaron gya aur agyat azadi ke deewanon ka koi yogdan nahin tha? Agar Kalakumar ji ki manen to aisa hi hai aur communist va samajwadi to deshdrohi hain.Ise chahe to tathyon ki satahi jankari kahen ya anbhigyata, kalakumar ji ne itihas ke sath nainsafi ki hai.Lahore shadyantra case, meerut shadyantra case jaisi ghatnaon se hi Swatantrata sangram ka aandolan apne urooz par pahuncha.san 1942 ke aandolan ke hero to Samajwadi hi the aur nishchit roop se who sab ke sab Pt. Nehru ke virodhi the. Aur jab, royal Indian Navy ka vidroh hua{ jiskne angrejon ke kamar tod kar rakh dee} usme nausainikon ke hathon me congress ke jhande ke sath sath communist party aur Muslim league ke bhi a jhande the.
Kalakumar ji ko poora adhikar hai ki who pt. Nehru, Indira Gandhi,Rajeev, Soniya,Rahul, Priyanka-Robert Badhera aur unke doodhmunhe bachchon Rehan aur Meera ki vandana Karen, unka itihas likhen, unke yashaswavi jeevan ki kamna Karen, parantu unhen Nehru –Gandhi khandan ke virodhiyon ko deshdrohi sabit karne ka koi haq nahin hai.Choonki “ Indira is India” aur “India is Indira” nahin hai.Bhavavesh me ya apni shraddha abhivyakt karne ke pher me Kalakumar ji Aligarh Muslim Vishwavidyalay{AMU} Nadva aur Jauhar vishvavidyalaya ko mohd. Ali Jinnah ki virasat sabit karne par tule hain.,
Bharat Vibhajan par Kalakumar ji ka mat hai ki Communiston aur samajvadiyon ne muslim league ki mang ka samarthan kiya. Parantu who yeh bhool gaye ki muslim league ki mang ko sabse pahle sweekar karne wale tathakathit lauh purush sardar Vallabh Bhai Patel aur Pt. Nehru hi the. Kya yeh sahi nahin hai ki salman Khursheed ke Taoo Marhoom Sultan Alam Khan 15 August 1947 ki subah tak Muslim League me the aur unki ginati Jinnah ke bad number do par hoti thee Raton rat congressi ban gaye the?
Ali bandhuon me se ek Maulana Mohd. Ali ko kalakumar ji ne Jinnah ka shagird kaha hai.Lekin Ali Bandhuon ke Swatantrata sangram me mahatva ko nakarne ki , himmat kisi bhi samajhdar Hindustani me nahin hai.
Pt. Gangadhar Nehru ke vanshajoj ka shijra likhate samay Kalakumar ji kalam ke sath nyay nahin kar paye hain. Lekhak ne jahan Pt. Motilal Nehru ke itihas ko 5 prishthon me Feeroz Gandhi ke itihas ko 5 prishtha me aur Sanjay Gandhi ke itihas ko 3 prishtha me niptaya hai to Jawahar lal Nehru par kul 23 prishtha kharch kiye hain aur indira Gandhi ke itihas ko 23 prishthaon me sameta gaya hai Aur Soniya par 45 prishtha barbad kiye gaye hain.Shayad Kalakumar ji sahmat honge {agar who sahmat hona chahen} ki Jawahar lal Nehru aur Indira Gandhi ke bina to Bharat ka itihas adhoora hailekin Soniya me aisa kya hai?
Nehru parivar ki virasat ka lekha jokha rakhate samay Kalakumar ji Vijay luxmi pabdit, Arun Nehru,Menaka aur Varun ko to bhool gaye lekinRehan aur Meera ko nahin.Kalakumar ji “Virasat” ko na to aitihasik dastavez ko roop de paye hain aur na hi jeevanee ka. Vishay se bhatkav anek bar dekhane ko mila hai aur vicharon me tartamya nahin hai.Yadi Kalakumar ji ki pustak Rajneetik halkon me padi gayi to Nishchit roop se kai kai bade vivadon ko janm degi.
Prakkathan Uttar Pradesh committee ke adhyaksh Salman Khursheed ne likha hai. Bakaul Salman Khursheed—“ Mere khyal me Nehru-Ghandhi parivar ke tyag evam balidan ki nishpaksh gatha ko samagra roop me ek sath sanjone vali yeh ek matra pustak hai.”

Salman sahib kya Kalakumar ji se sahmat hain?---“jahan tak hinduon ki dharmik aastha ka prashna hai Ramlala ke band dwar congress ne hi tala khulvakar poora kiya.Ram Mandir nirman hetu mahan gauravshali shilapoojan kaka karya swargiya Rajeev Gandhi ke kar kamlon dwara hi sampann hua.Ram Mandir nirman bhi congress ab tak poora kara chuki hoti. agar yeh hi vishwa hindu parishad ke swayambhoo neta vivadit bhoomi ka nam lekar usme adanga na lagaye hote.” {Page143} Agar Kalakumar ji ki pustak congress ki nishpaksh gatha hai to Salman Sahib Ram mandir bhi congress{Nehru-Gandhi Khandan} hio banvayehi ?
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In “Kurtidev011” font
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