गुरुवार, 20 नवंबर 2008
बलात्कारी नहीं हो सकता मेरी भारत मां का बेटा
बलात्कारी नहीं हो सकता मेरी भारत मां का बेटा
--अमलेन्दु उपाध्याय
जब कोई बेटा अपने ही भाई के खून से अपनी भारत मां का आंचल गीला करे तो वो बेटा माफी के लायक नहीं है। नन से बलात्कार करते हुए 'भारत मां की जय' का नारा लगाने वाला मेरी भारत मां का बेटा नहीं हो सकता.....लेकिन अडवाणी जी, राजनाथ जी आपका?
पिछले दिनों लगातार हुए चर्चों पर हमलों और ननों से बलात्कार के बाद देश भर में तेजी से यह मांग उठी कि आतंकवादी संगठन बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया जाए। लेकिन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का यह कहकर विरोध किया कि बजरंग दल सिमी जैसा राष्ट्रद्रोही संगठन नहीं है। इस मुल्क में यह अजब तमाशा है कि अब राष्ट्रवादी होने का प्रमाणपत्र ब्लैक में वे लोग बेच रहे हैं, जिनके ऊपर न केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का वातावरण तैयार करने का आरोप है, बल्कि वो अंग्रेजों के एजेंट भी थे और 15 अगस्त 1947 को ''बेमिसाल गद्दारी का दिन'' भी बता रहे थे ।
हाल ही में मालेगांव बम विस्फोट में गिरफ्तार आतंकवादियों साध्वी प्रज्ञा और समीर कुलकर्णी , फर्जी शंकराचार्य सुधाकर द्विवेदी उर्फ स्वामी अमृतानंद की गिरफ्तारी के बाद देश की चिंताएं बढ़ गई हैं। चलिए राजनाथ सिंह की ही बात बड़ी करते हैं कि सिमी और बजरंग दल को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता! बजरंग दल आर.एस.एस. का बगलबच्चा है। आर एस एस वह संगठन है, जिसके विषय में तेल्लिचेरी(केरल) के दंगों की जांच रपट पर जस्टिस विथ्याथिल ने स्पष्ट कहा था कि-' निसंदेह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक बागी सांप्रदायिक संगठन है।.. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने तेल्लिचेरी के हिंदुओं में मुसलमान विरोधी भावनाएं भड़काने और दंगे की पृष्ठभूमि तैयार करने में सक्रिय भाग लिया।'( डी.आर. गोयल द्वारा 'सांप्रदायिक टकराव की राजनीति' में 'सैकुलर डेमोक्रेसी से उध्दृत)
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें संघ गिरोह अब अपनी बपौती बताने पर तुला है, ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पत्र लिखकर कहा था-'आर.एस.एस. की गतिविधियों से सरकार और राज्य दोनों के अस्तित्व को खतरा था।...संघ के लोग और ज्यादा राजद्रोहात्मक गतिविधियों में निमग्न होते जा रहे हैं।' अब क्या कहेंगे राजनाथ सिंह?
अगर कहा जाए कि सिमी और बजरंग दल में क्या समानता है? तो यही समानता है कि मोदी जी की पुलिस और बंद गले के कोट-पैंट के अंदर खाकी नेकर पहनने वाले शिवराज पाटिल की पुलिस अभी तक सिर्फ सिमी को दोषी ठहरा रही है, लेकिन उसे देशद्रोही साबित नहीं कर पाई है ( यूं तो पुलिस/सी.बी.आई. ने तो जिन्ना का गुणगान करने वाले एक बड़े नेता को भी हवाला कांड का आरोपी बताया था लेकिन वह अदालत से बरी हो गए), जबकि बजरंग दल का सेनापति दारा सिंह, आस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस और उसके बेटों को जिंदा जलाकर मारने के जुर्म में दोषी ठहराया जा चुका है। साथ ही देश में हाल ही में हुए जिन बड़े बम धमाकों में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग हुआ है, वह रसायन कानपुर में बजरंगदल के कार्यकर्ता प्रयोग कर रहे थे। इसलिए सिमी और बजरंग दल को राजनाथ के मुताबिक एक तराजू में नहीं तौला जाना चाहिए?
मालेगांव बम विस्फोट में जिस तरह से परत दर परत खुल रही है, इससे यह साबित हो रहा है कि कई सैन्य अफसर आतंकी वारदात में शामिल थे और संघ कबीला बाकायदा स्कूल खोलकर बम बनाने, हथियार चलाने और आतंकवादी बनाने की ट्रेनिंग दे रहा है। यह स्थिति बहुत चिंताजनक है। चूंकि सिमी, लश्कर,हूजी या हरकत-उल-अंसार का न तो अवाम में कोई आधार है और न सुरक्षा बलों में इनकी कोई घुसपैठ है।लेकिन कई हजार पूर्व सैन्य अफसर और सैनिक, संघ और उसके गिरोह में शामिल संगठनों से जुड़े हुए हैं।
मालेगांव, संघ कबीले के फासिज्म की ओर बढ़ते कदमों की आहट को बयां करता है। पहले संघ गिरोह राम जन्म भूमि/बाबरी मस्जिद विवाद का जन्म देने वाले फैजाबाद के पूर्व कलक्टर के.के. नायर और उसकी पत्नी शकुंतला नायर को सांसद बनाकर अपने फासिस्ट इरादों को जाहिर कर चुका है। बाद में यशवंत सिंहा, जगमोहन, भुवनचंद्र खंडूरी, टी.पी.एस. रावत, वी.पी. सिंहल जैसे सैन्य और प्रशासनिक अफसरों को अपने सियासी मुखौटे भाजपा के जरिए सीधे सीधे सत्ता में भागीदार बनाकर अपने खतरनाक मंसूबों को जाहिर कर चुका है। संघ को लग गया है कि अब इस मुल्क में सत्ता उसे जनता के द्वारा नहीं मिलेगी इसलिए वह देशद्रोहात्मक गतिविधियों के द्वारा ही सत्ता पर कब्जा करना चाहता है।
अभी तक हमारी सेना का चरित्र धर्मनिरपेक्ष रहा था और ऐसे देशद्रोही हमारी सेना में नहीं थे, जो देश तोड़ने वाली आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हों। सांप्रदायिक दंगों वाले स्थानों पर सेना को ही स्थिति संभालने के लिए भेजा जाता है, क्योंकि पुलिस और पी.ए.सी. जैसे अर्ध्दसैनिक बलों को सांप्रदायिक माना जाता है और हाशिमपुरा, मेरठ, मलियाना के दंगों में इन बलों की भूमिका भी साबित हो चुकी है। इस कांड से अब सेना से भरोसा टूटना शुरु हो जाएगा। मालेगांव को सिर्फ काउंटर टेररिज्म कह कर टाला नहीं जा सकता है। मालेगांव की घटना सिमी, लश्कर,हूजी से कई हजार करोड़ गुना खतरनाक है, जो न सिर्फ हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान को चोट पहुंचाती है बल्कि देश पर मर मिटने वाले शहीदों के बलिदान को भी झुठलाने की कोशिश करती है। कारगिल शहीदों के कफनचोर इस कदर देशद्रोही निकलेंगे, अंदाज लगाना कठिन था!
यहां एक तथ्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि भारत विभाजन के बाद भारत में जो मुसलमान रह गए थे, वह, वे लोग थे जिन्होंने सांप्रदायिक आधार पर पाकिस्तान जाना कुबूल नहीं किया था। इसलिए स्वतंत्र भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता कभी भी अपना आधार नहीं बना पाई।परंतु जमात-ए-इस्लामी और मुस्लिम लीग के जो अवशेष भारत में रह गए थे, वे मुस्लिमों में अपना आधार तलाशने की कोशिश कर रहे थे और हिंदू सांप्रदायिक उनका अंदरूनी सहयोग कर रहे थे। आश्चर्य है कि पुरानी दिल्ली के झंडेवालान से जहां से मुस्लिम लीग का मुखपत्र छपता था, उस स्थान को संघ कबीले से जुड़े संगठनों ने खरीदा। जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी व आर एस एस के प्रमुख गुरु गोलवरकर के विचारों में जबर्दस्त साम्य है।
रामपुर(उ.प्र.) में 1952 में जमात के अधिवेशन में उसके बड़े नेता मौलाना लईस ने कहा था कि-'राष्ट्रीयता और देशभक्ति शैतानी बीमारियां हैं, जो इंसानियत को तबाह कर रही हैं।' 1960 में इन्हीं मौलाना लईस ने भारतीय संविधान की आलोचना करते हुए कहा था कि-'हमारा भारत के संविधान से बुनियादी मतभेद है,क्योंकि इसमें अवाम को वह जगह दी गई है, जो खुदा को दी जानी चाहिए। हमारी राय में सारी बुराइयों की जड़ यही है।' ( सिमी इसी जमात से जुड़ा है)
और देखने में आया कि कानपुर से पकड़े गए आतंकवादी बाबा अमृतानंद ने भी कहा था कि 'धर्म पहले है, राष्ट्र बाद में' और पूर्व एन.डी.ए. सरकार भी मौलाना लईस से प्रेरित होकर 'संविधान समीक्षा आयोग' बना चुकी है? संघ प्रमुख गोलवरकर ने 15 अगस्त 1947 को बेमिसाल गद्दारी का दिन यूं ही नहीं कह दिया था। ऐसा वेवजह नहीं है कि संघ की शाखाओं में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को प्रणाम नहीं किया जाता है बल्कि भगवा ध्वज को प्रणाम किया जाता है और 'जन-गण-मन' नहीं गाया जाता बल्कि 'नमस्ते सदा वत्सले' गाया जाता है। इसलिए बिना कोई देर किए बजरंगदल को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाना चाहिए।
एक घटना पढ़ी थी कि एक बार शिवाजी के एक कमांडर ने सूरत नगर को लूटकर वहां के मुगल शासक की सुंदर शहजादी को बंधक बना लिया और शिवाजी के समक्ष पेश करते हुए कहा कि-'महाराज! मैं आपके लिए यह अमूल्य उपहार लाया हूं।' इतना सुनते ही शिवाजी की आंखें अंगारे की तरह दहकने लगीं। उन्होंने उस सरदार से कहा कि तुमने न केवल अपने धर्म का अपमान किया है, वरन् अपने महाराज के माथे पर भी कलंक का टीका लगाया है।' फिर उस शहजादी से कहा-'बेटी! तुम कितनी सुंदर हो। काश मेरी मां भी तुम्हारी तरह सुंदर होती तो मैं भी ऐसा ही सुंदर होता।' फिर उस शहजादी को ढेर सारे उपहार देकर सैनिक सुरक्षा में वापस भेजकर सूरत के मुस्लिम शासक से इस गलती के लिए माफी मांगी। बजरंगियों को कर्णवती की राखी की लाज रखने वाले हुमायूं से परहेज हो सकता है, कम से कम शिवाजी से ही कोर्इ्र सीख ले ली होती।
उड़ीसा में बजरंग दल के लोग न केवल हत्याएं कर रहे थे बल्कि नन के साथ बलात्कार करते समय 'भारत मां की जय' का नारा भी लगा रहे थे। जब इस मुल्क में भारत मां का नारा लगाया जाता है, तो इस मुल्क में रहने वाले आपस में भाई- बहन हुए। और जब कोई बेटा अपने ही भाई के खून से अपनी भारत मां का आंचल गीला करे तो वो बेटा माफी के लायक नहीं है। नन से बलात्कार करते हुए 'भारत मां की जय' का नारा लगाने वाला मेरी भारत मां का बेटा नहीं हो सकता.....लेकिन अडवाणी जी, राजनाथ जी आपका?
( लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं।)
अमलेन्दु उपाध्याय
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
मैं सर्व प्रथम आपको विचारों की इस गूढ़ता के लिए साधुवाद देता हूं। आपके इस लेख को मैं एक माह पहले ही पढ़ चुका हूं। कुछ ऎसे सवालात हैं, इस लेख में जिन्हें जानने-समझने की ज़रूरत आज सम्पूर्ण भारत को है। असल में आपने जो बातें लिखी हैं, उन्हें आसानी से पचाया नहीं जा सकता। इसलिए नहीं कि यह महज़ हक़कीत हैं और सच्चाई कड़वी होती है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि आज भारतीय समाज का धर्मांध ध्रुवीकरण हो चुका है। ऎसे समय में आपके विचार वैसे लोगों को ठीक लग सकते हैं, जो चीजों को जानने-समझने की कोशिश करते हैं लेकिन उन लोगों को कतई पसंद नहीं आयेंगे, जो किसी न किसी धारणा के साथ कोई काम करने के लिए आगे बढ़ते हैं। निजी तौर पर मुझे आपका लेख प्रासंगिक लगा और सामयिक भी, जिसमें सच्चाई का सर्वथा प्रवाह था। आपकी बातों ने कुछ लिखने को प्रेरित किया है लेकिन काबलियत इतनी नहीं कि आपकी तरह कुछ रच पाऊं, इसलिए आपके अगले लेख का खुसूसियत के साथ इंतज़ार रहेगा। धन्यवाद।
एक टिप्पणी भेजें