शनिवार, 20 अक्तूबर 2012
जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैं
कहा क्या जा रहा है, संसदीय व्यवस्था बकवास है। तो कौन सी व्यवस्था सही है उसे बताओ ? राजनीति मे बेईमान लोग हैं। तो आपका एतराज उन बेईमानों पर है या राजनीति पर ? उस संदेश को तो देखिये जो बाहर ज़हर की तरह फैलाया जा रहा है। इतना ही नहीं राजनीति करने वाला कम से कम पाँच साल में ही सही लेकिन जनता के सामने जाता तो है उसकी जवाबदेही बनती है। लेकिन नौकरशाही को देखिये उसकी कौन सी जवाबदेही है ? उसका एक ही एजेंडा है – ‘देख तो रहे हैं ऊपर तक देना पड़ता है’
अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?
अब देखना यह है कि पंद्रह मंत्रियों और कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ने वाली अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी, केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करती है या नहीं?
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अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?
अब देखना यह है कि पंद्रह मंत्रियों और कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ने वाली अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी, केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करती है या नहीं?
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अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012
लो जी, बन गया जनलोकपाल ! पहली जांच प्रशांत भूषण की ?
अपने लोकपाल से पहली जांच में प्रशांत भूषण का नाम आने पर सवाल उठने लगे हैं कि स्वामी अग्निवेश, जस्टिस संतोष हेगड़े, किरण बेदी और अन्ना हजारे के बाद क्या केजरीवाल अब भूषण पिता पुत्र से मुक्ति चाहते हैं ?
बहरहाल खेल अभी शुरू हुआ है……
लो जी, बन गया जनलोकपाल ! पहली जांच प्रशांत भूषण की ?
बहरहाल खेल अभी शुरू हुआ है……
लो जी, बन गया जनलोकपाल ! पहली जांच प्रशांत भूषण की ?
बुधवार, 17 अक्तूबर 2012
उदारीकरण के जश्न के बीच जारी है किसान आत्महत्या वृद्धि दर
धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों का तेजी से चढ़ने का दौर शुरू हुआ| इधर किसानों व अन्य जनसाधारण हिस्सों के गिरने — मरने और आत्महत्याओं का दौर शुरू हुआ
उदारीकरण के जश्न के बीच जारी है किसान आत्महत्या वृद्धि दर
उदारीकरण के जश्न के बीच जारी है किसान आत्महत्या वृद्धि दर
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
"हम डोमेनवाले यह तो नहीं कह सकते कि हम फेसबुक हो जाएंगे या फिर कोई देशी गूगल खड़ा कर देंगे. लेकिन ये डोमेनवाले उन शोहदों और निठल्लों से ज्यादा आगे जरूर खड़े नजर आते हैं जो दिन रात फेसबुक पर बैठे बैठे लाइक खोजते रहते हैं."
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012
सोमवार, 15 अक्तूबर 2012
रविवार, 14 अक्तूबर 2012
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
स्पेशल एक्सप्लोइटेशन जोन (एस ई ज़ेड )
गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
केजरीवाल या तो बहुत भोले हैं या बहुत शातिर जो वे कहते हैं कि ग्राम पंचायतों को ज्यादा अधिकार देने से जनता के हाथों में सत्ता आ जायेगी। हर कोई जानता है कि पंचायतों पर धनी किसानों, गाँव के धनाढ्यों, दबंगों का कब्ज़ा है। पंचायती राज का ढाँचा लागू ही किया गया है ग्रामीण क्षेत्र के शासक वर्गों को सत्ता में भागीदार बनाने के लिए। गाँव में प्रधान वही चुना जाता है जो पैसे और डण्डे के दम पर वोट खरीद सकता है। ज्यादातर छोटे किसानों और मज़दूरों की उसमें कोई भागीदारी नहीं होती। हर पंचायती क्षेत्र में ज्यादातर धनी किसानों-कुलकों-दबंगों के परिवार के सदस्य या उनका कोई लग्गू-भग्गू ही चुनाव जीतता है। जब तक आर्थिक ढाँचे में कोई बदलाव न हो, तब तक कैसी भी चुनाव प्रणाली हो, आर्थिक रूप से ताक़तवर लोग ही चुनकर ऊपर जायेंगे।
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इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
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