गुरुवार, 25 सितंबर 2008

कैफी का आजमगढ ही क्यों है आतंक का निशाना?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
The article written by me on the Azamgarh and terrorism was published www.khabarexpress.com and www.newswing.com . you may visit theese sites to view the original articles.

कैफी का आजमगढ ही क्यों है आतंक का निशाना?





‘मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों में बॉट लिया भगवान को / धरती बॉटी , सागर बॉटा मत बॉटो इन्सान को’ और ‘क्या करेगा प्यार वो राम से क्या करेगा प्यार वो कुरान से / जन्म लेकर गोद में इंसान की कर ना पाया प्यार जो इंसान से’ ‘ जैसे कवितामयी नारे देने वाले हिन्दुस्तानी तहजीब के अजीम शायर मरहूम कैफी आजमी और‘‘वोल्गा से गंगा’ जैसी कालजयी कृति लिखकर हिन्दुस्तानी सभ्यता और संस्कृति को एक नई सोच देने वाले महापण्डित राहुल सॉकृत्यायन की सरजमीन अब बम पैदा कर रही है।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एक एन्काउन्टर में मारे गये और गिरफतार किये गये तथाकथित आतंकवादियों के कारण आजमगढ अब दुनिया के नक्शे पर दहशत के पर्याय के रुप में उभर कर आया है। जैसा कि दिल्ली पुलिस और गुजरात पुलिस का दावा है ( जो गलत भी हो सकता है ) कि दिल्ली अहमदाबाद और वाराणसी समेत हिन्दुस्तान के विभिन शहरो में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मुख्य साजिशकर्ता और कर्ता-धर्ता यही तालीमयाफता नौजवान थे। हालॉकि पुलिस द्वारा गढी गई कहानी में इतने ज्यादा उलझे हुए पेंच हैं कि किसी विवेकशील प्राणी को इस कहानी पर भरोसा करने में अभी काफी वक्त लगेगा।

जो पहला सवाल जेहन में कौंधता है वो इस पूरे शूट आउट पर सवालिया निशान लगाने के लिये पर्याप्त है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि उसे मुखबिरों से ही सूचना मिली थी कि बटला हाउस में आतंकवादी रह रहे हैं। अगर पुलिस का मुखबिर तन्त्र इतना सजग और सटीक था तो मुखबिर यह सूचना देने में नाकाम क्यो रहा कि दिल्ली में बम फटने वाले हैं और वो किन स्थानों पर फटेंगे ? दूसरा और अहम सवाल है कि गुब्बारे बेचने वाले जिस बच्च्ेा को चश्मदीद गवाह बताया जा रहा है उसे कई दिनों तक कहॉ छुपाकर रखा गया और क्यो ? तीसरा अहम सवाल यह है कि क्या एन्काउन्टर में मरने वाले और गिरफतार किये गये तथाकथित आतंकवादियों के चेहरे पुलिस द्वारा जारी किये गये स्केच से मिलते हैं ? और चौथा अहम सवाल कि क्या मृतक आतंकियों और गिरफतार आतंकियों की शिनाख्त परेड चश्मदीद गवाह से कराई गई ? अन्तिम और पॉचवा सवाल कि अब तो कहीं बम नहीं फटेंगे ? चकि पुलिस का दावा है कि उसने मास्टरमाइण्ड आतंकियों का पर्दाफाश कर दिया है। जब तक इन सवालों के जवाब दिल्ली पुलिस के पास नहीं होते तब तक उसकी शूट आउट कहानी अगर सही है तो सही होते हुए भी सन्देह के घेरे में रहेगी।

याद होगा कि जब अहमदाबाद बम विस्फोट काण्ड के अभियुक्त के रुप में अबू बशर पकडा गया था तब भी दावा किया गया था कि सिमी और इण्डियन मुजाहिदीन का मास्टरमाइण्ड पकडा गया है । लेकिन इस मास्टरमाइण्ड के गुजरात पुलिस की सेवा में होने के बाद भी दिल्ली में धमाके हो गये। इसका क्या मतलब निकाला जाये ? क्या अबू बशर इन धमाकों में शामिल नहीं था ? और अगर धमाकों का मुख्य कमाण्डर बशर ही था तो गुजरात पुलिस दो महीने तक उसके साथ क्या करती रही ? या फिर दिल्ली की पुलिस लापरवाह साबित हुई जिसने गुजरात पुलिस की सूचना पर कोई ध्यान नहीं दिया ? इन सारे सवालों के पीछे जो उत्तर निकल कर आयेगा वो या तो इन तथाकथित आतंकवादियों को बेगुनाह साबित करेगा अन्यथा गुजरात पुलिस को नाकारा और दिल्ली पुलिस को लापरवाह। बहरहाल यह सहज प्रश्न दिल्ली और गुजरात दोनों की पुलिस को परेशान करते रहेंगे।

अगर दिल्ली पुलिस का यह दावा सही मान लिया जाये कि इन विस्फोटों के पीछे इन आजमगढवासी नौजवानों का ही हाथ था ( ऐसा यकीन ना करने के अलावा अभी चारा ही क्या है?) तो हमें मौजूदा आजमगढ के आर्थिक और सामाजिक माहौल को समझना पडेगा। वर्ष २००२ के विधानसभा चुनावों के दौरान मुझे आजमगढ की फूलपुर और सरायमीर विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करने का अवसर मिला। मैं यह देखकर चौंक गया कि वहॉ पजेरो, सफारी, क्वालिस जैसी लग्जरी गाडियॉ बहुत बडी संख्या में नजर आ रही थीं। इन गाडियों पर नम्बर एम० एच० सीरीज के थे। एक बारगी लगा कि संभवतः किसी प्रत्याशी ने इन गाडियों को किराये पर लिया है। लेकिन स्थानीय लोगों से तहकीकात करने पर मालूम हुआ कि यह गाडिया स्थानीय लोगों की हैं और ९० फीसदी मुसलमानों की हैं।

कारण बहुत साफ था कि सरायमीर इलाके के अधिकॉश परिवारों के लोग मुम्बई और महाराष्ट्र के विभिन्न शहरो में यूपी के भैये बन कर बरसों पहले गये थे और अपनी हेकडी और लडाकू प्रवृत्ति के कारण मुम्बई की अर्थव्यवस्था पर हावी हो गये। आजमगढ में मुझे कई मदरसे देखने को मिले जिनमें एक सरकारी इन्टर कालेज से ज्यादा छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे थे । मालूम हुआ कि ये सारे मदरसे इन्हीं भैयों के आर्थिक सहयोग से चलते हैं।

इसी तरह २००७ के विधान सभा चुनाव में मैं गोरखपुर से आजमगढ के रास्ते से गुजरा तो एक गॉवनुमा कस्बे में भारतीय स्टेट बैंक की विदेशी मुद्रा विनिमय सुविधा प्रदत्त शाखा देखकर आश्चर्य हुआ। मालूम पडा कि उस गॉव व आस पास के गॉवों से बडी तादात में लोग दुबई और खाडी देशों में नौकरी करते हैं और वहॉ से घर पर रियाल और दीनार भेजते हैं। इस समृद्धि का अन्दाजा उस गॉव में संगमरमर के फर्श वाले घर और चमचमाती हुई मस्जिदें देखकर हुआ।

आजमगढ के लोगों की यह समृद्धि ही उनकी दुश्मन बन बैठी। महाराष्ट्र और गुजरात के लोगों को यह पुरबिये भैये अपने दुश्मन नजर आने लगे और यह व्यावसायिक प्रतिद्वन्दिता शनैः शनैः साम्प्रदायिक तनाव में बदल गई। आजमगढ में जो समृद्धि आई उसके परिणामस्वरुप अब ऊॅचे पायचे का पाजामा पहनने वाले मौलवियों के घर में इन्जीनियर, डॉक्टर, मैनेजर और कम्प्यूटर प्रोफेशनल्स की एक नई तालीमयाफता पीढी तैयार होने लगी।

यह उच्च शिक्षा इन आर्थिक सम्पन्न घरों के लिये नासूर बन जायेगी इसका अन्दाजा लगाना कठिन था। यह उच्च शिक्षित कम उम्र नौजवानों का तबका अलगाववादियों के लिये भी सॉफट टारगेट था और उनके आर्थिक प्रतिद्वन्दियों के लिये भी। गौर तलब यह है कि जिन भी नौजवानों पर इल्जाम लगे हैं उनकी उम्र बमुश्किल १७ बरस से लेकर २५ बरस के बीच है। यदि गौर किया जाये तो ६ दिसम्बर १९९२ को जब बाबरी मस्जिद को कुछ लाख गुण्डों ने गिराया और उसके बाद मुम्बई, सूरत अहमदाबाद की सडकों पर जिस तरीके से हैवानियत और वहशीपन का जो खेल खेला गया उन घटनाओं के ये बालमन मूक साक्षी थे। सडकों पर जलते टायरों में जिन्दा जलाये जाते लोग, कॉच की बोतलों पर नंगी नचाई जाती औरतों और बलात्कार की वीडियो रिकॉर्डिंग की घटनाऍ इन दिलों में बरसों बरस सुलगती रहीं।

१९८६ में लखनऊ में सम्पन्न विज्ञान कॉग्रेस में यह तथ्य रेखांकित किया गया था कि ४ से ५ साल का बच्चा धर्म से बेखबर होता है और ५ से ८ साल तक का बच्चा धर्म को समझने लगता है और किशोरावस्था तक आते आते वो धर्म के प्रति कट्टर हो जाता है। ६ दिसम्बर १९९२ को माओं के कलेजों से चिफ हुए यह मासूम चेहरे इस कदर बहशी और रक्तपिपासु हो जायेंगे, इस बात का अन्दाजा ना तो बाबरी मस्जिद गिराने वाले गुण्डों को रहा होगा और ना मुम्बई सूरत अहमदाबाद की सडकों पर बलात्कार और हत्याऍ करते कट्टर शूरवीरों को।

विज्ञान का नियम है कि हर कि्रया की प्रतिकि्रया होती है। लेकिन यह प्रतिक्रिया इतनी वीभत्स और बहशियाना होगी इसका अन्दाजा लगाना कठिन था। जो समझदार और सच्चे हिन्दुस्तानी हैं उनकी नजर में न कि्रया सही थी और ना प्रतिक्रिया को जायज ठहराया जा सकता है।

यह आग अभी ठण्डी भी ना होने पाई थी कि इसके ऊपर सियासी रोटियॉ सेंकने का काम प्रारम्भ हो गया है। शुरुआत हुई उ०प्र० की मुख्यमन्त्री मायावती के ऊलजलूल और बेहद बेहूदा बयान से। सुश्री मायावती को हिन्दुस्तान की हर बीमारी का वायरस मुलायम सिंह ही दिखाई देते हैं। परमाणु करार के मसले पर मुसलमानों की पहले से नाराजगी झेल रहे मुलायम सिंह को एक बार और घेरने का इससे बेहतर और सुनहरा मौका भला मायावती को कहॉ मिलता?

यह शूट आउट समाजवादी पार्टी के लिये भी गले की फॉस बन गया है। एक तो सपा के एक नेता के पुत्र का नाम इस काण्ड में आया है। दूसरे कॉग्रेस के साथ सपा का हनीमून अभी शुरु भी नहीं हो पाया था कि उसे नजर लग गई है। सपा की दिक्कत यह है कि परमाणु करार पर कॉग्रेस के पाले में जाकर उसने पहले ही मुस्लिम मतदाताओं को अपने खिलाफ कर लिया है और रही सही कसर इस शूट आउट ने पूरी कर दी है। आजमगढी मुसलमानों के दिल में यह फॉस गढ गई है कि मुलायम सिंह शिवराज पाटिल और डडवाल के सहयोगी हैं। सपा की समस्या यह है कि अगर वो इस शूट आउट के विरोध में उतरती है तो उसका मनमोहन सिंह से रिश्ता खराब हो जायेगा, जो वो कतई नहीं चाहती। चकि तब उसकी नम्बर एक दुश्मन मायावती सपा नेताओं को सताने लगेंगी।

उधर सपा यह चाहती थी कि आजमगढ के मुसलमानों को सबक सिखाये। चकि हाल ही के लोकसभा उपचुनाव में वहॉ मुसलमानों ने बसपा प्रत्याशी अकबर अहमद डम्पी को वोट देकर जिता दिया था जिसके चलते एक समय म जिले की सभी विधानसभाई सीटें जीतने वाली सपा के प्रत्याशी और पूर्वान्चल में ’’ मिनी मुलायम ‘‘ के रुप में मशहूर बलराम सिंह यादव बुरी तरह हारे । अब सपा नेतृत्व अजब -गजब द्वन्द में है कि आजमगढियों को सबक सिखाये कि अपने समीकरण ठीक करे।

मौजूदा हालात में अगर यह शूट आउट झूठा है, जैसा कि अधिकॉश आजमी भाइयों का मानना है तो यह बेहद चिन्ता जनक है चकि तब हमारी पुलिस अपनी नाकामी छिपाने के लिये देश के होनहार भविष्य को जबर्दस्ती आतंकवाद के रास्ते पर डाल रही है। इसके विपरीत अगर पुलिस का दावा सही है तो यह और भी ज्यादा चिन्ताजनक है। दोनों ही परिस्थितियों में यह कहना समीचीन होगा कि एक भस्मासुर को पैदा किया जा रहा है। एक पुरानी कहावत है कि जो दूसरों के लिये गड्ढा खोदता है एक दिन उसी में गिरता है। पाकिस्तान और अमरीका के साथ हम इस कहावत को चरितार्थ होते देख रहे हैं। जो फिदायीन और मुजाहिदीन पाकिस्तान ने भारत के लिये तैयार किये थे वो आज उसके लिये बवाल-ए-जान बने हुए हैं और साम्यवादी सोवियत संघ के खात्मे के लिये अमरीका द्वारा तैयार किये गये मुल्ला उमर और ओसामा बिन लादेन आज उसी के सिरदर्द साबित हो रहे है। एक शायर के लफजों में बस इतना ही--’’ वक्त हर जुल्म तुम्हारे तुम्हें लौटा देगा / वक्त के पास कहॉ रहम-ओ-करम होता है ?‘‘

--अमलेन्दु उपाध्याय ( लेखक राजनीतिक समीक्षक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

1 टिप्पणी:

Sarita Chaturvedi ने कहा…

ARE JANAB....AAP BHI PAHLE KE VICHARSIL LOGO ME SHAMIL HAI....DEKHIYE SAWAL TO HAR KOI KHADA KAR SAKTA HAI...PAR JAROORI HAI KI KAM SE KAM SAWAL BHI TARK PAR AADHARIT HO...YADI ISI TARAH SE SHANKAYE JAHIR KI JAYEGI TO BAHUT KAM UMMID HAI KI KOI BHI VIBHAG APNI KAM DHANG SE KAR PAAYEGA....KRIPA KARKE WO CHASMA HATA DIJIYE JO KISI AUR NE BAKCHI HAI................