परमाणु करार पर देश में घमासान मचा हुआ है। देश में जो वातावरण तैयार हो रहा है वोह साठ साला लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोतने का प्रयास मात्र है । पहली बार ऐसा हो रहा है कि देश को गिरवी रखने के लिए एक डील पर डील हो रही है। अभी तक बड़े पूंजीपति परदे के पीछे से सरकार से संपर्क किया करते थे और लाभ कमाते थे। लेकिन अब खुल्लमखुल्ला यह धनपशु न केवल अपने व्यावसायिक हित साध रहे हैं बल्कि देश की राजनीतिकी दिशा और दशा भी तय कर रहे हैं। तथाकथित राष्ट्रिय मीडिया भी इन व्यावसायिक घरानों और सरकार के प्रवक्ता की भूमिका अदा कर रहा है । सरकार रहे या जाए लेकिन इस बहानेदेश के राजनीति के चरित्र पर बहस करने का एक अवसर देश की जनता को नसीब हुआ है।
एक समाचार पत्र की सुर्खी थी कि " सरकार को हलाल नहीं होने देगा यह दलाल " । बहुत तथ्यपरक और विचारणीय सुर्खी थी यह । इसे सिर्फ़ सुर्खी मात्र कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है । बल्कि यह एक चिंतन का अवसर है कि देश की राजनीति किधर जा रही है ? क्या इसका जवाब यह है कि -" यह दलाल सरकार को हराम कर देगा ?"
बार बार बहस की जा रही है कि डील देश हित में है। सरकार और सपा का दावा सही माना जा सकता है । लेकिन सपा से एक प्रश्न तो पूछा जा सकता है कि अगर यह डील इतनी ही देशभक्तिपूर्ण थी तो उस समय जब जॉर्ज बुश भारत आए थे तब विरोध प्रदर्शन में सपा शरीक क्यों हुयी थी?
सरकार से भी तो प्रश्न पुछा जा सकता है की जब वामपंथी दलों ने सेफ गार्ड और १२३ करार पर का मसौदा माँगा तो सरकार ने कहा की यह दस्तावेज गोपनीय हैं और तीसरे पक्ष को नहीं बताये जा सकते हैं । अगर सरकार सच बोल रही थी तो महत्वपूर्ण सवाल है की अमर सिंघ और मुलायम सिंह ने बयां दिया की उन्हें पूर्व राष्ट्रपति ए० पेए० जे० अब्दुल कलाम और राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार एम् ० के० नारायणन ने डील का मसौदा बताया और आश्वस्त किया कीडील देश हित में है । यक्ष प्रश्न यह है की जो दस्तावेज सरकार को समर्थन दे रहे दलों को गोपनीय बताकर नहीं दिखाए गए वो बाहरी व्यक्ति अमर सिंघ और मुलायम सिंघ को क्यों दिखा दिए गए?
क्या कलाम और नारायणन को यह दस्तावेज इसलिए मालूम थे की वो राष्ट्रपति रह चुके थे और राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार हैं ? तब तो यह देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं । चूँकि कलाम को तो देश के पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते और नारायणन को राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार होने के नाते बहुत से गंभीर राज मालूम होंगे और क्या यह दोनों किसी सरकार को बचाने के लिए किसी को भी देश के राज बता देंगे?
सरकार से यह भी पुछा जा सकता है की जब ४ नवम्बर को बुश रिटायर हो रहे हैं और व्हाइट हाउस spasht कह चुका है की डील को amreekee sansad से manjooree मिलने kee कोई garantee नहीं है तथा IAEA के pravakta ने spasht कहा है की उनकी तरफ़ से aisee कोई badhyata नहीं थी की डील का खुलासा नहीं किया जाए तब वो कौन सा कारन था की डील देश से छुपायी गई ? मनमोहन सरकार को बुश से किया वायदा यद् है लेकिन देश की जानता से किया एक भी वायदा यद् नहीं है ।
सरकार ने डील पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए एक विज्ञापन जरी किया जिसमें वैज्ञानिक अनिल काकोडकर के बयां को दोहराया गया की देश को उर्जा जरूरतों के साथ अगर समझौता किया गया तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा। बेहतर होता की काकोडकर इतिहास पढ़ने से बचकर विज्ञानं में कोई नया आविष्कार करते।
अब मुलायम सिंघ और अमर सिंह कह रहे है की अगर डील न हुयी तो BJP आ jayegee यह gazab का tarq है । yahee samajwadee neta pahle कह रहे थे की सोनिया आ गयी तो देश को videshee hathon बेच dengeen। अब समझ में नही आता की inka कौन सा बयां सही था ?
अमर सिंघ जी कह रहे हैं की mayavatee उनके sansadon को तोड़ने के लिए ३० karore rupee दे रही हैं। Gazab है mayavtee ने अमर सिंघ का hunar सीख लिया?
लोगों को आश्चर्य है की सपा ने यु टार्न ले लिया है । लेकिन यह झूठा सच है .मुलायम सिह तो नर्सिहराओ की सरकार भी बचा चुके हैं । फ़िर यु टर्न किस?
करार हो या न हो । सरकार रहे या जाए लेकिन एक नई बात हो रही है, अब भारतीयता का पाठ सोनिया पदायेंगी , देशभक्ति का पाठ मनमोहन सिंह , इतिहास अनिल काकोडकर पढायेंगे , धर्मनिरपेक्षता का पाठ अमर सिंह पढायेंगे , मुलायम सिंह राजनीतिक सदाचार पढायेंगे, और वेश्याएं सतीत्व का पाठ पढायेंगी ? क्या देश की राजनीती इसी मुहाने पर आ पहुँची है ?
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अमलेंदु उपाध्याय
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