सोमवार, 31 दिसंबर 2012
मोची का लड़का स्टालिन कैसे दुनिया का नेता बना ?
कथित दलित अथवा बहुजन स्वामी नेताओं और उनकी तलछनों का लक्ष्य अपनी भुखमरी दूर करके जनता को बेवकूफ बनाने में अधिक है, ये ताक़तें अपने आधार के साथ भारत के सबसे बडे प्रदेश में हकूमतें भी चला चुकी है और देश उनके तमाम कथित चमत्कारों से भलिभांति परिचित भी है। इनका सीमित चिंतन बुनियादी रूप से समाज के इस क्रांतिकारी तबके के गले में नौकरियों का सरकारी पट्टा डालता है बल्कि खतरनाक रूप से दुनिया के दूसरे देशों में चल रही क्रांतिकारी तहरीकों से भी जबरन दूर रखता है। उन्हें जनता के उन आन्दोलनों से अनभिज्ञ रखता है जहाँ दमित पीड़ित समाज ने अपनी तकदीरे स्वयं बदली हैं।
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दामिनी गैंग रेप प्रसंग और बहुजनस्वामियों का अट्टहास
गुरुवार, 13 दिसंबर 2012
बुधवार, 12 दिसंबर 2012
सोमवार, 10 दिसंबर 2012
रविवार, 9 दिसंबर 2012
शनिवार, 8 दिसंबर 2012
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012
मंगलवार, 4 दिसंबर 2012
सोमवार, 3 दिसंबर 2012
कांशीराम की पत्रकारिता
पुस्तक में कांशीराम के 77 संपादकीय लेख संकलित किये गये हैं। पहला लेख ‘समाचार सेवाओं की आवश्यकता’ पर है, जिसमें कांशीराम ने बहुत सही सवाल उठाया है कि जातिवादी हिन्दू प्रेस दलित और शोषित समाज के समाचारों को ब्लैक आउट करता है। वे इस लेख में लिखते हैं कि इसलिये डा. आंबेडकर ने निजी समाचार सेवा के महत्व को समझ कर 1920 में ‘मूकनायक’, 1927 में ‘बहिष्कृत भारत’, 1930 में ‘जनता’ और 1955 में ‘प्रबुद्ध भारत’ नाम से समाचार पत्र निकाले थे। लेख में ‘दि आपे्रस्ड इण्डियन’ पत्रिका की शुरुआत के सम्बन्ध में लिखा है, ‘आवश्यकता और अवसर दोनों से हमें चुनौती स्वीकार करने की पे्ररणा मिली है तथा समाचार सेवा के क्षेत्र में कूदने की तैयारी है।’ वे अन्त में लिखते हैं, अगले दो सालों में देश के कोने-कोने से समाचार सेवा का विस्तार हो जायगा।’
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सोमवार, 26 नवंबर 2012
राजनीतिक वर्चस्ववाद के दांव पर अंबेडकर स्मारक
रंगभेदी व्यवस्था के वर्चस्ववाद को यथावत बनाये रखने और उसे महिमामंडित करने के लिए मूर्तियां और स्मारक बेहद अनिवार्य हैं। व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी विचारधारा और उसके मिशन को तिलांजलि देने का श्राद्धकर्म सबसे महान कर्मकांड है, जिसकी जनमानस में अमिट छाप बन जाती है।
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राजनीतिक वर्चस्ववाद के दांव पर अंबेडकर स्मारक
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राजनीतिक वर्चस्ववाद के दांव पर अंबेडकर स्मारक
बुधवार, 21 नवंबर 2012
मंगलवार, 20 नवंबर 2012
सोमवार, 19 नवंबर 2012
शनिवार, 17 नवंबर 2012
शुक्रवार, 16 नवंबर 2012
बुधवार, 14 नवंबर 2012
रविवार, 11 नवंबर 2012
नायपाल ने खुद को भारतीय कब माना
................. उन्होंने खुद को भी भारतीय नहीं माना और यदि माना भी तो एक विचित्र रूप में । उनके वक्तव्य प्रायः विरोधभासी रहे जैसे एक तरफ उन्होंने माना कि उन्हें हिन्दुस्तान की राजनीति में कोई रूचि नहीं जबकि दूसरी तरफ वो हिन्दुस्तान को एक हिंदू राष्ट्र का दर्जा देने के हिमायती रहे और मुस्लिमों के कट्टर विरोधी रहे। वो मानते हैं कि मुस्लिमों ने हिन्दुस्तान को भ्रष्ट कर दिया।
...................भारतीय साहित्यकारों का एक धड़ा गाँव में कभी ना जाकर ना सिर्फ ग्रामीण जीवन पर उपन्यास लिख रहा है बल्कि पुरूस्कार भी प्राप्त कर रहे हैं, या विदेशी पृष्ठभूमि पर बेहिचक लिखकर वाह वाही लूट रहे हैं...................
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नायपाल ने खुद को भारतीय कब माना
...................भारतीय साहित्यकारों का एक धड़ा गाँव में कभी ना जाकर ना सिर्फ ग्रामीण जीवन पर उपन्यास लिख रहा है बल्कि पुरूस्कार भी प्राप्त कर रहे हैं, या विदेशी पृष्ठभूमि पर बेहिचक लिखकर वाह वाही लूट रहे हैं...................
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नायपाल ने खुद को भारतीय कब माना
शनिवार, 10 नवंबर 2012
नौ महीने में केवल दस दंगे : जियो मेरे युवराज
ये हालात सिर्फ इसलिये पैदा हो रहे हैं कि अफसरों का इकबाल खत्म हो चुका है। कानून-व्यवस्था के लिए सरकार लम्बा समय नहीं मांग सकती। वास्तविकता यह है कि मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री का तेवर देख कर ही अधिकारियों के काम करने का रवैया बदल जाता है और अगर तेवर दिखाने के लिए भी समय की जरूरत हो, तो इस पर आश्चर्य जरूर होता है।
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नौ महीने में केवल दस दंगे : जियो मेरे युवराज
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नौ महीने में केवल दस दंगे : जियो मेरे युवराज
गुरुवार, 8 नवंबर 2012
राहें चार अभियानों की
"अन्ना के अभियान से लाखों लोग इसलिए नहीं जुड़े कि वे लोकपाल कानून को अपने सभी दुखों की रामबाण दवा समझते थे। वे इसलिए जुड़े थे कि इसमें उन्हें अनंत संभावना दिख रही थी। इस संभावना को अन्ना की टीम ने बंटे दिमाग के कारण भंवर में फंसा दिया है। जो कल तक अन्ना की टीम थी, वह अब अन्ना की प्रतिद्वंद्वी है।"
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राहें चार अभियानों की
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राहें चार अभियानों की
मंगलवार, 6 नवंबर 2012
सोमवार, 5 नवंबर 2012
विशेष राज्य का दर्ज़ा बाद में, पहले नवरुणा दिलाओ सुशासन बाबू
बिहार के मुख्यमंत्री सुशासन बाबू जिस समय पटना में अधिकार रैली करके दहाड़ रहे थे ठीक उसी समय मुजफ्फरपुर के छात्र मुजफ्फरपुर से अपहृत ११ वर्षीय नववरूणा का 44 दिन बीतने के बाद भी पता न चलने पर दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना देकर बिहार में बढ़ती हत्या, बलात्कार और अपहरण की घटनाओं पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से मांग कर रहे थे कि आम बिहारियों कि सुरक्षा सरकार सुनिश्चित करें..................Read Moreon hastakshep.com
विशेष राज्य का दर्ज़ा बाद में, पहले नव वरुणा दिलाओ सुशासन बाबू
विशेष राज्य का दर्ज़ा बाद में, पहले नव वरुणा दिलाओ सुशासन बाबू
भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में गुम न हो जाय, इरोम शर्मिला की आवाज
इरोम शर्मिला ने जब भूख हड़ताल की शुरुआत की थी, उस वक्त वे 28 साल की युवा थीं। कुछ लोगों को लगा था कि यह कदम एक युवा द्वारा भावुकता में उठाया गया है। लेकिन समय के साथ इरोम शर्मिला के इस संघर्ष की सच्चाई लोगों के सामने आती गई। जिस अंधियारे के विरुध्द इरोम शर्मिला का संघर्ष है, इसमें उनके साथ कुछ भी हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में इरोम शर्मिला की आवाज गुम न हो जाय, यह सुनी व समझी जाय तथा इसके पक्ष में जनमत तैयार हो।................................Read More on hastakshep.com
भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में गुम न हो जाय, इरोम शर्मिला की आवाज
भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में गुम न हो जाय, इरोम शर्मिला की आवाज
हर कोई अयोध्या के धोबी की भूमिका निभाने को आतुर है
क्या भ्रष्टाचार ही हमारे राष्ट्रीय जीवन का एकमात्र मुद्दा बच गया है। अगर ऐसा है तो सार्वजनिक जीवन में शुचिता कायम करने के नाम पर हाल-हाल में जो आंदोलन हुए वे क्यों असफल हो गए।.................................................अरविंद केजरीवाल अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए व्यग्र हैं। राबर्ट वाड्रा के बहाने सोनिया गांधी पर हमला करने से उन्हें मीडिया में प्रचार और सस्ती लोकप्रियता मिल सकती है। शायद इसीलिए उन्होंने कानूनी कार्रवाई के बजाय मीडिया ट्रायल का रास्ता चुना।.....................................Read More on hastakshep.com
हर कोई अयोध्या के धोबी की भूमिका निभाने को आतुर है
हर कोई अयोध्या के धोबी की भूमिका निभाने को आतुर है
रविवार, 4 नवंबर 2012
शनिवार, 3 नवंबर 2012
बुधवार, 31 अक्टूबर 2012
शेखर जोशी को मिले श्रीलाल शुक्ल सम्मान की त्रासदी
इफ़्को और उदय शंकर अवस्थी को जानना चाहिए कि वह तो गाली नहीं सम्मान दे रहे हैं और इस तरह अपमानित कर के? इस से तो श्रीलाल शुक्ल की आत्मा भी कलप जाएगी !
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अब हालात बहुत बदल गए हैं। अब तो लोग सम्मान का जुगाड़ करते हैं, सम्मान खरीदते हैं, लॉबीइंग करते हैं। आदि-आदि, करते हैं। वगैरह-वगैरह करते हैं। राजनीतिक, उद्योगपति, फ़िल्म आदि के लोग तो यह सब अब खुल्लमा-खुल्ला करने लगे हैं। हमारे साहित्यकार आदि भी इसी चूहा दौड़ में खुल्लम-खुल्ला दौड़ लगाने लगे हैं। प्रायोजित-नियोजित आदि सब कुछ करने लगे हैं। कुछ लोग तो अब यह सब नहीं हो पाने पर खुद ही पुरस्कार आदि भी शुरु कर लेते हैं और ले भी लेते हैं। खुद ही संस्था गठित कर लेंगे। या पत्रिका निकाल लेंगे। या मित्रवत कह कर यह सब प्रायोजित करवा लेंगे। बाकायदा खर्चा-वर्चा दे कर।
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शेखर जोशी को मिले श्रीलाल शुक्ल सम्मान की त्रासदी
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अब हालात बहुत बदल गए हैं। अब तो लोग सम्मान का जुगाड़ करते हैं, सम्मान खरीदते हैं, लॉबीइंग करते हैं। आदि-आदि, करते हैं। वगैरह-वगैरह करते हैं। राजनीतिक, उद्योगपति, फ़िल्म आदि के लोग तो यह सब अब खुल्लमा-खुल्ला करने लगे हैं। हमारे साहित्यकार आदि भी इसी चूहा दौड़ में खुल्लम-खुल्ला दौड़ लगाने लगे हैं। प्रायोजित-नियोजित आदि सब कुछ करने लगे हैं। कुछ लोग तो अब यह सब नहीं हो पाने पर खुद ही पुरस्कार आदि भी शुरु कर लेते हैं और ले भी लेते हैं। खुद ही संस्था गठित कर लेंगे। या पत्रिका निकाल लेंगे। या मित्रवत कह कर यह सब प्रायोजित करवा लेंगे। बाकायदा खर्चा-वर्चा दे कर।
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शेखर जोशी को मिले श्रीलाल शुक्ल सम्मान की त्रासदी
शनिवार, 27 अक्टूबर 2012
गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012
एटीएस की विवादित कार्यशैली पर स्थिति स्पष्ट करने का अखिलेश सरकार पर दबाव
"दारापुरी ने एटीएस और खुफिया एजेंसियों पर इस्लामोफोबिया और असुरक्षा का माहौल फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह अभी पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की डेढ़ सौवीं वर्षगंाठ पर विस्फोट करने की फिराक में रहने का आरोप लगाकर पकड़ा था, बेगुनाह बरी हुए हैं। जिससे समझा जा सकता है कि राष्ट्रवाद के नाम पर असुरक्षा का भय दिखाने में किस तरह खुफिया एजेंसियां शामिल हैं।"
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एटीएस की विवादित कार्यशैली पर स्थिति स्पष्ट करने का अखिलेश सरकार पर दबावअखिलेश का यूपी अब गुजरात बनेगा-फैजाबाद शुरुआत करेगा
- फैजाबाद में दंगा राज्य सरकार के प्रोत्साहन से हुआ ?
- दंगे में खुफिया एजेंसी की भूमिका संदिग्ध ?
- दंगों में आईबी की भूमिका की जांच हो, एसीशर्मा को तत्काल हटाया जाय- रिहाई मंच की मांग
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अखिलेश का यूपी अब गुजरात बनेगा-फैजाबाद शुरुआत करेगा
बुधवार, 24 अक्टूबर 2012
पार्टनर आपकी पाॅलिटिक्स क्या है ?
तरुण भटनागर लिखते हैं कि ‘‘बस्तर में लूट मची है, शोषण, अन्याय और अत्याचार है।’’ लेकिन यह सब कौन कर रहा है और इसके पीछे कौन है ? इस पर वे एक बार फिर अपनी कहानी और पत्र दोनों ही जगह खामोश रहते हैं। कहीं कोई जरा सा भी इशारा नहीं। या यूं कहें, जानते हुए भी असल सवालों से किनाराकशी है। भटनागर यदि जरा सा भी तटस्थ होते, तो वे इस शोषण, अन्याय और अत्याचार के पीछे छिपे असली चेहरों को आसानी से पहचान लेते। उनकी इस बात से शायद ही कोई इत्तेफाक जतलाए कि जंगल में पहले आंदोलन पहुंचा। सच बात तो यह है कि आंदोलन से बहुत पहले सरकार पहुंच चुकी थी। वह भी अपने शोषणकारी चेहरे के साथ।
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पार्टनर आपकी पाॅलिटिक्स क्या है ?मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012
शिवमूर्ति की स्वीकृति का बैंड-बाजा
दलितोत्थान की गाथाएं अब सब की जुबान पर हैं। ए राजा से लगायत मायावती तक। राजधानियों के राजमार्गों से लगायत गांवों की मेड़ों तक।.......
शिवमूर्ति एक ईमानदार कथाकार हैं। इस लिए वह कथ्य में अपने जातिगत विरोध वाले मित्रों की तरह बेईमानी नहीं कर पाते
कोई कितना भी बेहतरीन रचनाकार क्यों न हो, हर कोई उसे पढ़ेगा ही यह भी कतई ज़रुरी नहीं है।
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शिवमूर्ति एक ईमानदार कथाकार हैं। इस लिए वह कथ्य में अपने जातिगत विरोध वाले मित्रों की तरह बेईमानी नहीं कर पाते
कोई कितना भी बेहतरीन रचनाकार क्यों न हो, हर कोई उसे पढ़ेगा ही यह भी कतई ज़रुरी नहीं है।
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शिवमूर्ति की स्वीकृति का बैंड-बाजा
रविवार, 21 अक्टूबर 2012
यही परम्परा रही है अपनी-आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियो निम्नतम
अगर गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली सीबीआई संदिग्ध हो सकती है तो पार्टी का लोकपाल भी हो सकता है। एक और बात की लोकपाल भले ही जज होगा पर होगा तो रिटायर्ड ही। संविधान के अनुसार शक्तियाँ पद को मिलती हैं व्यक्ति को नहीं
...
यही परम्परा रही है अपनी-आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियो निम्नतम। |
...
यही परम्परा रही है अपनी-आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियो निम्नतम। |
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शनिवार, 20 अक्टूबर 2012
जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैं
कहा क्या जा रहा है, संसदीय व्यवस्था बकवास है। तो कौन सी व्यवस्था सही है उसे बताओ ? राजनीति मे बेईमान लोग हैं। तो आपका एतराज उन बेईमानों पर है या राजनीति पर ? उस संदेश को तो देखिये जो बाहर ज़हर की तरह फैलाया जा रहा है। इतना ही नहीं राजनीति करने वाला कम से कम पाँच साल में ही सही लेकिन जनता के सामने जाता तो है उसकी जवाबदेही बनती है। लेकिन नौकरशाही को देखिये उसकी कौन सी जवाबदेही है ? उसका एक ही एजेंडा है – ‘देख तो रहे हैं ऊपर तक देना पड़ता है’
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जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैंअमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?
अब देखना यह है कि पंद्रह मंत्रियों और कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ने वाली अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी, केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करती है या नहीं?
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अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?
अब देखना यह है कि पंद्रह मंत्रियों और कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ने वाली अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी, केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करती है या नहीं?
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अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012
लो जी, बन गया जनलोकपाल ! पहली जांच प्रशांत भूषण की ?
अपने लोकपाल से पहली जांच में प्रशांत भूषण का नाम आने पर सवाल उठने लगे हैं कि स्वामी अग्निवेश, जस्टिस संतोष हेगड़े, किरण बेदी और अन्ना हजारे के बाद क्या केजरीवाल अब भूषण पिता पुत्र से मुक्ति चाहते हैं ?
बहरहाल खेल अभी शुरू हुआ है……
लो जी, बन गया जनलोकपाल ! पहली जांच प्रशांत भूषण की ?
बहरहाल खेल अभी शुरू हुआ है……
लो जी, बन गया जनलोकपाल ! पहली जांच प्रशांत भूषण की ?
बुधवार, 17 अक्टूबर 2012
उदारीकरण के जश्न के बीच जारी है किसान आत्महत्या वृद्धि दर
धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों का तेजी से चढ़ने का दौर शुरू हुआ| इधर किसानों व अन्य जनसाधारण हिस्सों के गिरने — मरने और आत्महत्याओं का दौर शुरू हुआ
उदारीकरण के जश्न के बीच जारी है किसान आत्महत्या वृद्धि दर
उदारीकरण के जश्न के बीच जारी है किसान आत्महत्या वृद्धि दर
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
"हम डोमेनवाले यह तो नहीं कह सकते कि हम फेसबुक हो जाएंगे या फिर कोई देशी गूगल खड़ा कर देंगे. लेकिन ये डोमेनवाले उन शोहदों और निठल्लों से ज्यादा आगे जरूर खड़े नजर आते हैं जो दिन रात फेसबुक पर बैठे बैठे लाइक खोजते रहते हैं."
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012
सोमवार, 15 अक्टूबर 2012
रविवार, 14 अक्टूबर 2012
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
स्पेशल एक्सप्लोइटेशन जोन (एस ई ज़ेड )
गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
केजरीवाल या तो बहुत भोले हैं या बहुत शातिर जो वे कहते हैं कि ग्राम पंचायतों को ज्यादा अधिकार देने से जनता के हाथों में सत्ता आ जायेगी। हर कोई जानता है कि पंचायतों पर धनी किसानों, गाँव के धनाढ्यों, दबंगों का कब्ज़ा है। पंचायती राज का ढाँचा लागू ही किया गया है ग्रामीण क्षेत्र के शासक वर्गों को सत्ता में भागीदार बनाने के लिए। गाँव में प्रधान वही चुना जाता है जो पैसे और डण्डे के दम पर वोट खरीद सकता है। ज्यादातर छोटे किसानों और मज़दूरों की उसमें कोई भागीदारी नहीं होती। हर पंचायती क्षेत्र में ज्यादातर धनी किसानों-कुलकों-दबंगों के परिवार के सदस्य या उनका कोई लग्गू-भग्गू ही चुनाव जीतता है। जब तक आर्थिक ढाँचे में कोई बदलाव न हो, तब तक कैसी भी चुनाव प्रणाली हो, आर्थिक रूप से ताक़तवर लोग ही चुनकर ऊपर जायेंगे।
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इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
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इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
शनिवार, 13 अक्टूबर 2012
एफ.डी.आई के लिए हरी झंडी है जंगीपुर की जीत
टीएमसी का यह मिथ टूटा है कि उसके समर्थन के बिना कॉग्रेस की जीत नहीं हो सकती। यह सच है कि लेफ्ट के वोटों के प्रतिशत में इजाफा हुआ है,लेकिन सच यही है कि वाम उम्मीदवार की हार हुई है।
एफ.डी.आई के लिए हरी झंडी है जंगीपुर की जीत
एफ.डी.आई के लिए हरी झंडी है जंगीपुर की जीत
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012
राइफल की छांव में, मुस्कान ओठों पर लिए, श्वेत खादी में अहिंसा के पुजारी आ गये
जहाँ तक बात मंत्री जी की है तो यह सर्व विदित है कि वो एक दबंग नेता है। ये माना जाता रहा है कि वो सपा प्रमुख मुलायम सिंह के बहुत करीबी है। ऐसे में पूर्ववर्ती माया सरकार में हर आरोपी मंत्री की बर्खास्तगी और जांच की मांग करने वाली समाजवादी पार्टी जांच कमेटी की रिपोर्ट आने पर तथा उस रिपोर्ट में मंत्री जी के दोषी होने पर उनके विरोध कार्यवाही करेगी या नहीं यह देखने योग्य होगा। पर इतना तय है कि जो व्यवस्था वर्तमान दौर में उत्तर प्रदेश में चल रही है उसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को २०१४ के लोकसभाचुनाव में भुगतना पड़ेगा। Read More on
राइफल की छांव में, मुस्कान ओठों पर लिए, श्वेत खादी में अहिंसा के पुजारी आ गये
राइफल की छांव में, मुस्कान ओठों पर लिए, श्वेत खादी में अहिंसा के पुजारी आ गये
गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012
बुधवार, 10 अक्टूबर 2012
मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012
तो मुलायम का परिवार भैंस चराता ?
दलितों की रहनुमाई का दावा करने वाली मायावती की रैली में मंच पर दलितों का प्रतिनिधित्व देखने को नहीं मिला। नसीमुद्दीन सिद्दकी, स्वामी प्रसाद मौर्या, के साथ ब्राह्मण कुलभूषण सतीश चंद्र मिश्र, सुरेंद्र प्रसाद मिश्र और रामवीर उपाध्याय मंच को सुशोभित कर रहे थे।
तो मुलायम का परिवार भैंस चराता ?
तो मुलायम का परिवार भैंस चराता ?
कैंसर से जूझते हुए शावेज़!!! …शावेज़… शावेज़ यहां से वहां तक…शावेज़
एक मशाल लगातार जल रही है, वेनेज़ुएला में, जो लातिनी अमरीका को ही नहीं पूरी दुनिया को प्रेरित कर रही है. विश्व पूंजीवाद को झन्नाटेदार तमाचा मार सकता है एक छोटा-सा देश,
कैंसर से जूझते हुए शावेज़!!! …शावेज़… शावेज़ यहां से वहां तक…शावेज़
कैंसर से जूझते हुए शावेज़!!! …शावेज़… शावेज़ यहां से वहां तक…शावेज़
सोमवार, 8 अक्टूबर 2012
“जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है”
अब चाहे, लंगोटी पहन कर मोदी दंगल में मनमोहन के मुकाबले उतरें या बंगाल की शेरनी राजग में दोबारा दाखिल हो जाएँ, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला!
“जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है”
“जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है”
रविवार, 7 अक्टूबर 2012
वाह भई वाह! देश में राष्ट्रवाद और गुजरात में हिंदूवाद ?
सवाल ये
उठता है कि अगर उसे मुसलमानों के वोटों की इतनी ही चिंता है तो क्यों कर मोदी जैसों को फ्रंट फुट पर खड़ा करती है? क्यों कट्टरवादी चेहरे के नाम पर गुजरात में हैट्रिक बनाना चाहती है?
वाह भई वाह! देश में राष्ट्रवाद और गुजरात में हिंदूवाद ?
उठता है कि अगर उसे मुसलमानों के वोटों की इतनी ही चिंता है तो क्यों कर मोदी जैसों को फ्रंट फुट पर खड़ा करती है? क्यों कट्टरवादी चेहरे के नाम पर गुजरात में हैट्रिक बनाना चाहती है?
वाह भई वाह! देश में राष्ट्रवाद और गुजरात में हिंदूवाद ?
जब इस कब्रिस्तान में जाग उठेंगे खेत! आमीन
जीवन जीने के संसाधनों के असमान वितरण के कारण देश में 35 अरबपतियों के चलते अस्सी करोड़ गरीब अपने हक से वंचित हो गए हैं। देश में 24 करोड़ लोग भूमिहीन हैं। सरकार की प्राथमिकता लोगों को भूमि स्वामी बनाने की नहीं बल्कि भूमिहीन करने की है। यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून के जरिए किसानों की जमीनों के अधिग्रहण की प्रक्रिया आसान की जा रही है। भूमि सुधार के बिना अधिग्रहण कानून में संशोधन का मकसद जल, जंगल जमीन और आजीविका के हक हकूक की लड़ाई को खत्म करना!
जिंदा कौमें वक्त बदलने का इंतजार नहीं करतीं, वक्त बदल देती हैं! हमे अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी और इसके लिए एकजुट होकर अपनी ताकत का एहसास कराना होगा।
जब इस कब्रिस्तान में जाग उठेंगे खेत! आमीन
जिंदा कौमें वक्त बदलने का इंतजार नहीं करतीं, वक्त बदल देती हैं! हमे अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी और इसके लिए एकजुट होकर अपनी ताकत का एहसास कराना होगा।
जब इस कब्रिस्तान में जाग उठेंगे खेत! आमीन
शनिवार, 6 अक्टूबर 2012
पश्चिम बंगाल के बहाने : मुरदे जिंदों को जकड़े हुए हैं …………….
अभी सिर्फ 16 महीने बीते हैं जब वाममोर्चा सरकार के लंबे 34 साल के शासन का, बल्कि एक क्रांतिकारी नाटक का पटाक्षेप हुआ था। यह कोई मामूली घटना नहीं थी। यदि वाममोर्चा का यह लंबा शासन अपने आप में एक इतिहास था तो इस शासन का पतन भी कम ऐतिहासिक नहीं कहलायेगा। वाममोर्चा सरकार के अवसान को सिर्फ ममता बनर्जी और उनकी टोली की करामात समझना या इसे वाममोर्चा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के कुछ भटकावों और कदाचारों का परिणाम मानना इसकी गंभीरता को कम करना और इसके ऐतिहासिक सार को अनदेखा करने जैसा होगा।
पश्चिम बंगाल के बहाने : मुरदे जिंदों को जकड़े हुए हैं …………….
पश्चिम बंगाल के बहाने : मुरदे जिंदों को जकड़े हुए हैं …………….
शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012
गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012
बुधवार, 3 अक्टूबर 2012
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