जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैं
कहा क्या जा रहा है, संसदीय व्यवस्था बकवास है। तो कौन सी व्यवस्था सही है उसे बताओ ? राजनीति मे बेईमान लोग हैं। तो आपका एतराज उन बेईमानों पर है या राजनीति पर ? उस संदेश को तो देखिये जो बाहर ज़हर की तरह फैलाया जा रहा है। इतना ही नहीं राजनीति करने वाला कम से कम पाँच साल में ही सही लेकिन जनता के सामने जाता तो है उसकी जवाबदेही बनती है। लेकिन नौकरशाही को देखिये उसकी कौन सी जवाबदेही है ? उसका एक ही एजेंडा है – ‘देख तो रहे हैं ऊपर तक देना पड़ता है’
जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैं