सच रक्षा सौदों का
हमें न तो सत्य का संधान करने का धीरज है, और न अपनी अभिव्यक्ति में वाणी और लेखनी का संयम। स्थिति यह है कि जिसकी जो मर्जी आये वैसी बात कर रहा है। और समाज है कि कौआ कान ले उड़ा की तर्ज पर हर आरोप को साबित होने के पहले ही सच मानने लगता है।..............rad more
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सच रक्षा सौदों का