इफ़्को और उदय शंकर अवस्थी को जानना  चाहिए कि वह तो गाली नहीं सम्मान दे रहे हैं और इस तरह अपमानित कर के? इस  से तो श्रीलाल शुक्ल की आत्मा भी कलप जाएगी !
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अब हालात बहुत बदल गए हैं। अब तो लोग सम्मान का जुगाड़ करते हैं,  सम्मान खरीदते हैं, लॉबीइंग करते हैं। आदि-आदि, करते हैं। वगैरह-वगैरह करते  हैं। राजनीतिक, उद्योगपति, फ़िल्म आदि के लोग तो यह सब अब खुल्लमा-खुल्ला  करने लगे हैं। हमारे साहित्यकार आदि भी इसी चूहा दौड़ में खुल्लम-खुल्ला  दौड़ लगाने लगे हैं। प्रायोजित-नियोजित आदि सब कुछ करने लगे हैं। कुछ लोग  तो अब यह सब नहीं हो पाने पर खुद ही पुरस्कार आदि भी शुरु कर लेते हैं और  ले भी लेते हैं। खुद ही संस्था गठित कर लेंगे। या पत्रिका निकाल लेंगे। या  मित्रवत कह कर यह सब प्रायोजित करवा लेंगे। बाकायदा खर्चा-वर्चा दे कर। 
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शेखर जोशी को मिले श्रीलाल शुक्ल सम्मान की त्रासदी
 
