बुधवार, 16 जुलाई 2008

उ. प्र. अगले राजनीतिक दंगल की taiyyaree

अब लगभग यह तय हो गया है की सरकार के विश्वासमत की बिसात उ प्र में ही बिछेगी । सभी दल उ। प्र को अपना टारगेट बनाकर चल रहे हैं। लगभग डेढ़ दशक तक देश की राजनीतिक पटल से गायब हो चुके उ। प्रकी अहमियत यकायक बढ़ गई है.सबसे बड़ी समस्या समाजवादी पार्टी के सामने अ रही है.उसके netritv को अपनी kargujariyon का khamiyaja bhugatna पड़ रहा है। kangress का घर बचने के फेर में sapa का घर ख़ुद tootane के kagar पर है। ख़बर है की लगभग १४ सपा संसद नेतृत्व के खिलाफ खुली बगावत पर उतर आए हैं।
हालाँकि सपा और कांग्रेस दोनों ही व्हिप जरी करके अपनी घर की टूटन को रोकने का प्रयास करेंगे.लेकिन दोनों को ही अपना घर बचाना टेढी खीर लग रहा है.सपा के कई मुस्लिम संसद तो इस बात से घबराए हुए हैं की उनके क्षेत्रों में यह प्रचार ज़ोर पकड़ने लगा है की मुलायम सिंघ ने सद्दाम हुसैन के कातिल बुश से हाथ मिला लिया है। इस प्रचार से आतंकित सपा के मुस्लिम संसद यह सोच रहे हैं की अगर उन्होंने पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर सरकार के खिलाफ वोट कर भी दिया तो उनका कुछ नहीं बिगडेगा चूँकि ऐसी स्तिथि में सरकार गिर जायेगी और नया चुनाव होगा। ऐसे में दल बदल या व्हिप उल्लंघन का कोई जुर्म सुनने के लिए जगह ही नहीं बचेगी। ऐसे में यह मुस्लिम संसद अपने गृह क्षेत्र में कह सकेंगे की उन्होंने तो अम्रीका का साथ नहीं दिया है। फ़िर वोह बिना किसी दल के भी चुनाव जीतने की स्थिति में होंगे। चूँकि यह सभी मुस्लिम बहुल इलाकों से आते हैं।
सबसे अधिक गंभीर समस्या का सामना सलीम शेरवानी को करना पड़ रहा है। शेरवानी गाँधी परिवार के पुराने वफादार हैं और उनके निर्वाचन क्षेत्र बदायूं में यह चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी है की जब बाबरी मस्जिद शहीद की गई थी तब भी शेरवानी कांग्रेस में थे औरुन्होंने मुसलमानों के किसी सवाल पर स्कंग्रेस नहीं छोड़ी थी बल्कि संसद बन्ने के लिए वोह बाद में सपा में चले गए थे। उधर उनके क्षेत्र के यादव मतदाता इस बात पर उतारू हैं की शेरवानी को वोट नहीं देंगे चूँकि उनके ऊपर यह आरोप है की उनहोंने विधानसभा चुनाव में सभी सपा प्रत्याशियों की खिलाफत की थी और उन्हें हराने के लिए कम किया था। यहाँ तक की मुलायम सिंघ के खिलाफ बी स प से खड़े हुए आरिफ अली गुन्नौर में मुसलमानों के सरे वोट झटक ले गए थे। पूरे जिले में मुलायम सिंघ अकेले सपा उम्मीदवार के तौर पर जीते थे वोह भेई बहुत कम अन्तर से।
सहसवान सीस्त जिस पर मुलायम पहले जीत चुके हैं वहां भी शेरवानी समर्थकों ने दी पी यादव को समर्थन दिया जिसके चलते सपा यह सीट मात्र १०० वोट के अन्तर से हरी। शेरवानी को सबक सिखाने के लिए यहाँ सपा ने मुलायम के भतीजे धर्मेन्द्र यादव को चुनाव लड़ने की तैय्यारी शुरू कर दी है।
इन बदली परिस्थियों में अगर शेरवानी मुलायम के साथ भी रहें तो उन्हें घर के रहे न घाट के वाली कहावत से दो चार होना पड़ेगा। चूँकि यादव मतदाता उन्हें स्वीकार करेगा नहीं और अगर वोह स्पा के साथ गए तो मुस्लिम वोतोबं से भी हाथ धोना पड़ेगा। और अगर मुलायम सिंघ ने उन्हें तिच्कित देने का अपना वायदा नहीं निभाया, जिसकी सम्भावना ज्यादा है तो वोह कहाँ जायेंगे?
शेरवानी की मजबूरी यह है की वोह बदायूं छोड़ नहीं नहीं सकते चूँकि उनकी सियासी ज़मीन हिंदुस्तान भर में कहीं नहीं है। उनका घर अलाहाबाद में है और वोह सन १९८४ से लगातार [ केवल १९८९ से १९९५ को छोड़कर ] बदायूं से जीत्नते आए हैं। जबकि उनके मरहूम वलीद ज़िंदगी भर लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सके थे। ऐसे में शेरवानी आख़िरी वक्त में सपा को अंगूठा दिखा सकते हैं।
एक और संसद शफीकुर्ररहमान बर्क़ भी कुछ ऐसी ही दुविधा से घिरे हैं। पार्टी उनका भी पत्ता साफ करने का निर्णय ले चुकी थी। उनके पुत्र लोकदल से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं ऐसे में पार्टी उन्हें तिच्कित देने का अपना वायदा निभाएगी इसमें संदेह है। बर्क़ बाबरी मस्जिद आन्दोलन से जुड़े रहे हैं और वोह मुलायम सिंघ के किसी भी गुनाह का ठीकरा अपने सर फोड़ने से बचेंगे। उधर मुलायम के भाई रामगोपाल , बर्क़ के धुर विरोधी इकबाल मेमूद को संभल में प्रश्रय देते रहे हैं। ऐसे में बर्क़ सपा के साथ रहेंगे इसमें संदेह है।
एक औए मुस्लिम संसद मुनव्वर हसन पहले ही बसपा के सम,पार्क में हैं। इसी तरह घाटमपुर से सपा संसद राधेश्याम कोरी और मोहनलालगंज से संसद जयप्रकाश भी बसपा के साथ लगभग जा ही चुके बताये जाते हैं।
बंद से सपा संसद श्यामाचरण गुप्ता भी पार्टी से खफा चल रहे बताये जाते हैं। चर्चा है की वहां सपा उनका तिच्कित काटकर बसपा से ए आर के पटेल को लड़ने की घोषणा कर चुकी थी। उधर गुप्ता बी जे पी नेतायों के संपर्क में बताये जा रहे हैं । एक समय में वोह मुरली मनोहर जोशी के नज़दीकी रहे हैं।
फार्रूखाबाद से सपा संसद चंद्रभूषण सिंघ उर्फ़ मुन्नू बाबू भी सपा के साथ रहेंगे इसमें संदेह है। मुन्नू बाबु की समस्या यह है की बसपा यहाँ से नरेश अग्रवाल को चुनाव लड़ना चाहती है और अगर सपा और कांग्रेस का समझौता हुआ तो यह सीट सलमान खुर्शीद झटक ले जायेंगे॥ ऐसे में मुन्नू बाबु भी अपने पुराने घर बी जे पी का ही रुख करेंगे। वोह पहले भी बीजे पी के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं। गोंडा के संसद किर्तिवर्धन सिंघ भी पहले से बसपा के संपर्क में बताये जाते हैं।
हमीरपुर के सपा संसद राजनारायण बुधौलिया भी बी जे पी नेतृत्व के संपर्क में बताये जा रहे हैं, बताया जाता है की सपा ने वहदलों की यात्रा कर आए गंगा चरण राजपूत की टिकिट देने का मन बना लिया है।
एक और सपा संसद अंदरखाने बसपा के संपर्क में बताये जा रहे हैं। वोह हैं एस पी सिंघ बघेल। बघेल जलेसर लोकसभा सीट से लगातार तीन बार से संसद होते आए हैं। लेकिन अब उनका क्षेत्र नए परिसीमन में समाप्त हो गया है। विधान सभा चुनाव में उनकी पत्नी सपा के बैन्नेर टेल हाथरस जिले की सिकंद्रराऊ सीट से सपा उम्मीदवार थी। लेकिन सपा की स्तानीय इकाई ने उनकी खुली खिलाफत की जिसके चलते वोह मात्र ३००० वोट से हरीन। ऐसे में बघेल को लगता है की अगर वोह बसपा से विधानसभा चुनाव लादेन तो आसन रहेगा। उनके ज़ख्मों पर नमक छिडकने के लिए सपा ने उनके धुर विरोधी राकेश सिंघ रना को विधान परिषद् का सदस्य बना दिया है। अब रना भी सिकंद्रराऊ से चुनाव लड़ने की तैय्यार्रे कर रहे हैं। रना की वहां सक्रियता बघेल के सीने में जलन पैदा कर रही है। ऐसे में वोह सपा के साथ रहेंगे मुश्किल हैं, वोह पहले भे बसपा में रह चुके हैं।
कभी मुलायम सिंघ की नक् का बल रहे झांसी के संसद चंद्रपाल सिंघ यादव भी सपा नेतायों से नाराज़ हैं॥ उनकी पीड़ा यह है की पार्टी कभी उनके शागिर्द रहे गरौठा के विधायक दीप नारायण सिंघ उर्फ़ दीपक यादव को उनके स्थान पर लड़ने की तय कर चुकी थी। पिछले दो वर्ष से चंद्रपाल ५ विक्रमादित्य मार्ग से मिलने का समय मांगते रहे बताये जाते हैं लेकिन वोह दिन उनके नसीब में आया नहीं है।
पुराने समाजवादी रहे डोरिया के संसद मोहन सिंघ और अलाहाबाद के संसद रेवती रमन सिंघ कभी मुलायम सिंघ के सीनियर रहे है। विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में बताया जाता है की दोनों ने अमर सिंघ पर अप्रत्यक्ष हमला बोला था की उन्हें वोह जगह नहीं मालूम जहाँ पार्टी के बड़े बड़े फैसले ले लिए जाते हैं। चर्चा है की तब मुलायम सिंघ ने दोनों को धमकी दी थी की वोह पहले अपनी घर की बगावत रोकेंगे॥ ऐसे में मोहन सिंघ और रेवतीरमण यह बर्दाश्त करेंगे की इतना अहम् फैसल फ़िर बिना उनकी जानकारी के ले लिए जाए। मुश्किल हैं...दोनों ही हल की संसदीय बोर्ड की बैठक में अनुपस्थित थे.

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